Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen ||श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथायें || कथा संख्या – 127,128,129

श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाओं (Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathaon) में कथा संख्या 1 से लेकर 126 पहले ही प्रकाशित हो चुकी हैं | कथा संख्या 127,128,129 इस प्रकार हैं –

श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाएं ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen) || कथा संख्या -127

एक युवक को दर्शन ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen)

अगस्त १९८२ मे एक दिन दोपहर में स्व. किशोरी लाल जी के सुपुत्र अपनी मां के साथ नैनीताल जा रहे थे | रास्ते में वे कैंची आश्रम गये | दोनों ने एक साथ बाबा के विग्रह के दर्शन किये | आपकी मां दर्शन कर के आगे निकल गईं | आप वही खड़े रहे | आपको मूर्ति नहीं साक्षात बाबा दिखाई दे रहे थे | आप ये देखकर स्तब्ध रह गये | आप भ्रम समझ कर आगे बड़ गये | कुछ देर बाद फिर वही आये , फिर आपको बाबा के साक्षात दर्शन हुए | आप आन्नदित हो गये और श्री मां को जाकर ये अनुभव बताया |

श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाएं ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen) || कथा संख्या -128

एक बार श्री महाराजजी श्री बांके बिहारी जी के मन्दिर से निकलकर , उसके पिछवाड़े के एक घर में जाकर भोजन मांगने लगे | बाहर सड़क पर एक साधू-महात्मा रोटी मांग रहे थे – सिर्फ एक रोटी | श्री नीम करोली बाबाजी ने उसे अन्दर बुलाया | वे ऐसे साधू थे , जो केवल एक दिन में दो ही रोटी मांगते थे | श्री नीम करोली बाबा जी ने उससे “पूछा तुम्हारी रोटी कहां है ?और उससे उसकी रोटी लेकर खा ली । जब श्री महाराज जी से पूछा गया कि वे कौन हैं तो श्री बाबा जी बोले,” वे आदमी ईराक़ के रहने वाले हैं | ४० साल पहले वे वृन्दावन आए थे | पर जो भक्त वहां उपस्थित थे उन्हें वे व्यक्ति इस संसार का नहीं लगा | तो कौन था वे आदमी ? जिसकी रोटी श्री बाबा जी ने खायी , श्री बिहारी जी के मन्दिर से निकल कर |देवता भी जाने श्री बाबा जी से मिलने कौन भेष में आते थे | ये तो श्री बाबा जी ही जाने |

श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाएं ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen) || कथा संख्या -129

हमें तो नहीं आया ग़ुस्सा ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen)

यू. पी . शिक्षा सचिव का पुत्र श्री महाराजी का भक्त हो चला था | वे नित्य श्री बाबा जी के दर्शन करने बजरंगगढ़ आता था | उसका मन करता था श्री बाबाजी उसके घर चले पर अपने पिता के डर से , जो साधू- सन्तों से चिढ़ते थे , उग्र स्वभाव के थे इसलिये वह हिम्मत नहीं जुटा पाता थे|
एक दिन श्री बाबाजी के एक और भक्त श्री कैलाश चन्द्र जोशी जी ने श्री बाबा जी से कहा ,” महाराज आज से मैंने गुस्सा करना छोड़ दिया | ” अब श्री बाबाजी की लीला चल पड़ी | सुनकर हंस पड़े और उसी दिन शिक्षा सचिव के बेटे से बोले,” चल तेरे घर चलते हैं |” लड़का घबरा गया जाने पिताजी कैसा व्यवहार करेंगे | श्री बाबा जी से पहले ही पहुंच कर पिताजी को शांत रहने की प्रार्थना करने लगा | परन्तु श्री बाबाजी तो कोई और ही खेल खेलने जा रहे थे | लड़के के घर जाकर उसके पिता से बोले,” तू बड़ा सन्त है |” पिता का मुंह तू सुनकर लाल हो गया | श्री बाबा जी फिर उससे बोले,” तू तो बड़ा सन्त है |” तब वे क्रोध से उठकर खड़े हो गये तभी श्री बाबा जी फिर बोल उठे,” तू तो बड़ा सन्त है |” तब क्या था पिताजी अंग्रेजी में गुस्से में बदतमीज, असभ्य श्री बाबा जी को बोलने लगे | सुनते ही कैलाश जी जो श्री बाबा जी के साथ थे गुस्से में आ गये और उन्हें मारने दौड़े | तभी श्री बाबा जी कैलाश जी को अपनी बांहों में लपेटे हुए बाहर आ गये और हंसते हुए बोले,” तू तो कह रहा था गुस्सा करना छोड़ दिया | हमें तो गुस्सा नहीं आया |”

 

Leave a comment