Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen ||श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथायें || कथा संख्या – 143,144,145

श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाओं (Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathaon) में कथा संख्या 1 से लेकर 142 पहले ही प्रकाशित हो चुकी हैं | कथा संख्या 143,144,145 इस प्रकार हैं –

श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाएं ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen) || कथा संख्या -143

बाबा जी के कहे शब्द

बाबा ईश्वर प्राप्ति मे मोह और अभिमान को सबसे बडा बाधक बताते हैं और कहते,” घट मे जब तक मोह अभिमान पण्डित मूरख एक समान

” संत वही होता है जो साधू-असाधू , गुण – अवगुण , पात्र- कुपात्र ,भक्त-अभक्त , आदि को विभाजित करने वाली बीच की रेखा को देखता है परन्तु जानता नही – वरन सूर्य की प्रकाश- किरणों , वर्षा की बूँदों और वायु के झोंके की भाँति किसी में भेद-भाव किये बिना दोनों के लिये समान दृष्टि होती है ।”

श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाएं ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen) || कथा संख्या -144

रात में घनघोर अंधेरा छाया था | लोग गहरी नींद में थे |बाबा ने सभी भक्तों को जगा दिया | बोले उपर सड़क पर लगभग आधा मिल दूर एक जीप ख़राब हो गयी है | आप लोग वहाँ यात्रियों को चाय दे आऐ | बाबा के जल्दी जाने के आदेश से भक्त लोगों ने तुरंत चाय बनाई और दौड़ते हुए गये | किसी तरह उबड – खाबड़ रास्ता तय करके वे जीप तक पहूँचे और देखा कि जीप अटकी हुई है और उसमें चार महिलायें और एक आदमी ठण्ड से सिकुड़ रहे थे | बाबा ने पुनः चाय बनवाई और कुछ भक्तों को जीप तक देकर भेजा | कि पहले वाली चाय ठण्डी हो गयी होगी | अन्त में भक्तगण जब जीप में फँसे लोगों को साथ लेकर आश्रम आए तो श्री नीम करोली बाबा जी बोले ,” हम ३० साल पहले इन महिलाओं के घर जाया करते थे | उन्होंने हमें एक कम्बल दिया और हमारी बड़ी सेवा की |” फिर श्री महाराजजी ने उन्होंने उन महिलाओं को कम्बल दिलवाये और सुबह होने पर वे आश्रम से विदा हुईं |

श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाएं ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen) || कथा संख्या -145

माँ के रूप में भगवान

बाबा किसी भी स्त्री की मान मर्यादा का सम्मान करने को कहते थे | हमेशा अपनी पत्नी , माँ , बहन , बेटी की इज़्ज़त करो | बाबा के द्वारा कहे कुछ शब्द :-
“एक औरत जो कि अपने पति की सेवा करती है , वो भगवान की सेवा करने के बराबर है “!

” जो पत्नी अपने पति के प्रति ईमानदार है ( पतिव्रता ) वे सौ योगियों से भी उपर है |”

” माँ भगवान का रूप है । क्यूँकि माँ और भगवान ही हमारी ग़लतियाँ माफ़ करते है |”

” कई बार माईयां , महाराजजी को स्वंय अपने हाथों से भोजन खिलाती थीं | श्री नीम करोली बाबाजी कहते,” मैं स्वंय खा सकता हूँ पर माईयां मुझे स्वंय खिलाती है क्यूँकि हर औरत माँ का रूप होती है |”

वे उन पुरुषों पर हमेशा क्रोध करते थे जो अपनी पत्नी पर ग़ुस्सा करते थे क्यूँकि महाराजजी के अनुसार पत्नी लक्ष्मी का रूप होती है |एक बार मेरे दामाद बाबा के दर्शन करने गये तो बाबा ने उनसे बात नहीं की | आख़िर में बोले,” कहाँ है मेरी बेटी? तुम यहाँ अकेले पहाड़ों पर मस्ती करने आये हो । जाओ वापस और मेरी बेटी के साँथ लेकर आओ |”
औरत की हमेशा इज़्ज़त करो वे हर रूप में वे आद्ध शक्ति हैं , जो पुरूष का उद्धार करती हैं |

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