श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाओं (Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathaon) में कथा संख्या 1 से लेकर 129 पहले ही प्रकाशित हो चुकी हैं | कथा संख्या 130,131,132,133 इस प्रकार हैं –
श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाएं ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen) || कथा संख्या -130
कटोरी का चमत्कार
श्रीमति मंजू जो कि नैनीताल की निवासी थीं शादी से पहले अक्सर कैंची जाती थी | अपने साथ श्री नीम करोली बाबाजी का भोग और उनके पीने के लिये भी कुछ लाया करती थीं | एक दिन श्रीमती मंजू को श्री महाराज जी ने कटोरी दी और वे बोले ,” तू भी इसमें जल पीना |”श्रीमती मंजू जी ने उस कटोरी को बहुत ही जतन से रखा और शादी के बाद भी वे उस कटोरी को ससुराल ले गईं |
कुछ सालों बाद मंजू जी बहुत बिमार पड़ गईं | उन्हें लगा कि अब नहीं बचेंगी | पति और बच्चों को भी कह दिया कि मै अब नहीं बचूंगी | वे श्री बाबाजी को याद करती रहीं |रात में महाराजजी स्वप्न में प्रगट हुए और आदेश दिया ,” कटोरी से जल पी |” सुबह होते ही मंजू ने बक्से में से वे कटोरी निकलवाई | उसे साफ़ कराया | उसमें जल भर के पहले महाराजजी के सामने रखा , और फिर खुद पी लिया |
इसके बाद उनकी सेहत में निरन्तर सुधार होता गया और कुछ ही दिनों में वे पूरी तरह स्वस्थ हो गईं |
श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाएं ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen) || कथा संख्या -131
एक मुस्लमान का आत्मसमर्पण
गाड़ी चलने से पूर्व एक फलवाला मुस्लमान अपनी फलों की टोकरी लिये चला आया | वे फल बेचने हल्द्वानी जा रहा था | इस कक्ष में श्री बाबा जी के आगे भक्तजन कीर्तन कर रहे थे | वे फलवाला श्री बाबा जी के दर्शन से मन्त्रमुग्ध हो गया | वे उनके चरणों के पास बैठ गया और एकटक उन्हें देखता रहा | उसने अपने फलों का टोकरा श्री नीम करोली बाबा जी के लिये प्रस्तुत कर दिया | प्रसाद के रूप में वे फल सभी भक्तजनो को बँट गये और टोकरा ख़ाली हो गया | श्री नीम करोली बाबा जी ने उसके सर पर हाथ रख कर जो उसे आशीर्वाद दिया तो उसके आन्नद की कोई सीमा न रही | उसके नेत्र सजल हो उठे , देह मे पुलकावली छा गयी और कण्ठ रूँध गया | उसे अपनी सुध-बुध ही न थी |
श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाएं ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen) || कथा संख्या -132
एक दिन एक नौजवान बहुत आर्त होकर श्री नीम करोली बाबाजी के पास एक ऐसी नौकरी दिलवा देने के लिये आ गया जिसके लिये गुप्तचर विभाग के किसी बड़े अफ़सर की संस्तुति परमावश्यक थी | श्री नीम करोली बाबा जी उसे सीधे त्रिपाठी जी के पास ले कर गये और उनसे कहा- ” तू लिख दे इसे कि ये मेरा लड़का है | ” त्रिपाठी जी नि: संतान थे | तब एक ऊँचे ओहदे पर प्रतिष्ठित सरकारी अफसर के लिये इतनी स्पष्ट झूठ लिखना तो दरकिनार , बोलना तक उसके व्यक्तिगत चरित्र पर कितने बड़े लाँछन का कारण बन जाता और क़ानूनन भी कितना बड़ा अपराध हो़ता ? कल्पना की जा सकती है | पर श्री नीम करोली बाबा जी केवल एक बार ही के कहने पर त्रिपाठी जी ने उस लड़के की अर्जी पर आँख मूँदकर लिख दिया- ” यह मेरा लड़का है |” लड़के को नौकरी मिल गई और श्री नीम करोली बाबा जी की आज्ञापालन में किया गया ये अपराध त्रिपाठी जी को छू तक न सका |
श्री नीम करोली बाबाजी उसे कहते , ” जब श्री जानकीनाथ सहाय करें तब कौन बिगाड़ सके नर तेरो |”
श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाएं ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen) || कथा संख्या -133
एक बार की बात है सूबेदार मेजर जगदेव सिंह , ज़िला रायबरेली , सन १९३२ में अपने एक सहायक सिख आफिसर के अपने साथ श्री नीम करोली बाबा जी के दर्शन कराने ले गये | आपने उनसे कहा कि आप श्री नीम करोली बाबा जी से जो भी पूछेंगे , सही उतर देंगे महाराज जी |सिख अफ़सर को अपने एक मित्र गैंडा सिंह के सम्बंध में कुछ विशेष बात पूछनी थी , पर वे श्री नीम करोली बाबाजी के पास जाकर कुछ पूछ न पाये | श्री महाराज जी उन्हें देखते ही स्वत: ही बोलने लगे,” गैंडा साहब के लड़के के बारे में पूछना चाहता है, जो घर से भाग गया है | वे अमृतसर गुरुद्वारे में ग्रन्थी से शिष्य बनाने की प्रार्थना कर रहा है | उसकी स्त्री मर गयी है ,पर माँ जीवित है | माँ की आज्ञा के बिना ग्रन्थी उसे शिष्य बनाने को तैयार नही |” गैंडा सिंह उस समय फरूर्खाबाद में जेलर थे | पत्नी के वियोग से दुःखी हो उनका लड़का लापता हो गया था | सिख अफ़सर ने जब ये सूचना अपने मित्र को दी तो वे अमृतसर जाकर उसे वापस ले आये | उस घटना के बाद से गैंडा सिंह श्री नीम करोली बाबा जी के भक्त हो गये |