Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen ||श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथायें || कथा संख्या – 136,137,138

श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाओं (Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathaon) में कथा संख्या 1 से लेकर 136 पहले ही प्रकाशित हो चुकी हैं | कथा संख्या 136,137,138 इस प्रकार हैं –

श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाएं ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen) || कथा संख्या -136

एक बार जब श्री सिद्धि माँ को श्री नीम करोली बाबा जी के बारे में जानने की जिज्ञासा उत्पन्न हुई तो श्री नीम करोली बाबा जी ये जान गये , श्री सिद्धि माँ को अपने दिव्य दर्शन देते हुए श्री नीम करोली बाबा जी श्री सिद्धि माँ से बोले,” तूने श्री गीता के सातवें अध्याय का सातवाँ श्लोक पढ़ा है?”
मत: परतरं नान्यत्
किण्चदस्ति धनण्जय ।
मयि सर्वमिंद प्रोतं
सूत्रे मणिगणा इव । ।

मेरे सिवा किंचित् – मात्र भी दूसरी वस्तु नहीं है | यह सम्पूर्ण जगत् सूत्र में मणियों सदृश मेरे में गूँथा है | अर्थात माला की मणियाँ ( सृष्टि ) एक सूत्र में मूझमे गुँथी है |

श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाएं ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen) || कथा संख्या -137

पनकी, श्री हनुमान मन्दिर में स्थापना की तिथि निर्धारित करते हुए श्री नीम करोली बाबा जी ने कहा था कि उस दिन कानपुर में बहुत सर्दी पड़ेगी , पर पनकी में शीत का प्रकोप नहीं होगा | ये बात बिल्कुल सत्य निकली |

बाबा के अन्नय भक्त दिक्षित जी , जो वहाँ उपस्थित बताते है कि खाद्य सामग्री बढ़ती चली गई | जितना प्रबन्ध हूआ था उससे ८०० गूना व्यक्तियों ने प्रसाद पाया और सभी को घर के लियेभी प्रसाद दिया | इतना होने पर भी ६० प्रतिशत प्रसाद बचा रहा | सम्पूर्ण वनस्पति घी वे असली घी में परिवर्तित हो गया था |

इस अवसर पर श्री नीम करोली बाबा जी पनकी नहीं गये ४ चर्चलेन इलहाबाद में एक बन्द कमरे में पड़े रहे लेकिन श्री नीम करोली बाबा जी की लीला ऐसी रही कि पनकी में कई भक्तों के श्री नीम करोली बाबाजी के दर्शन हुए और श्री नीम करोली बाबा जी घण्टों तक उनके साथ रहे | एक समय में बाबा जी दो दो जगह उपस्थित रहे , इलाहाबाद भी और कानपुर भी | श्री नीम करोली बाबा जी एक समय में दो जगह क्या कई जगह उपस्थित पाये जाते , ऐसी लीला कई भक्तों के साथ हुई |

श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाएं ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen) || कथा संख्या -138

अभिलाषा की पूर्ति

इलहाबाद में डा़. ब्रहम्स्वरूप का मकान था और वही वे सेवाभाव से होमियोपैथिक चिकित्सा भी किया करते थे |आपने बताया कि मेरे पास कभी कभी असाध्य रोगो के मरीज आते थे और कहते हमे बाबा नीब करौरी ने आप के पास भेजा है | मैं उनका इलाज करता और वह शीघ्र ठीक हो जाते | मुझे बहुत आश्चर्य होता कि मेरी दवा बाबा के भेजे भक्तो पर कितना अच्छा कार्य करती है , उतना दूसरे मरीजों पर नही | मैं बाबा को जानता नही था ,और उन्हे देखा भी नही था | इस कारण मुझे उनके दर्शनों की बहुत अभिलाषा थी | मगर धन्धे को छोड़कर उन्हें खोजना मेरे लिये सम्भव नही था |

एक दिन अपने नम्बर पर एक लम्बा चौड़ा व्यक्ति , कम्बल ओढ़े , नंगे पैर , अपने एक व्यक्ति के साथ मेरे कमरे में प्रविष्ट हुआ | पूछने पर उसने बताया कि वह हथेली मे कुछ गर्मी महसूस कर रहा है | मैने निदान के लिये कुछ प्रश्न पूछे पर किसी का खास उतर नही मिला और वे व्यक्ति बोला ” जो तेरी समझ में दवा आए वो दे दे |” मै , उसके व्यवहार पर अत्यंत विचलित हुआ , पर मैने ३ दिन की दवाई बना दी | वह बोला “इतनी थोडी दवा से क्या होगा ?बहुत तायदाद में बना दे , अब हम जा रहे है , फिर नही आयेगे |” उसने अपने साथ आये आदमी को मुझे २० रूपये देने को कहा पर मैने मना कर दिया , क्योंकि वह देखने पर मुझे कोई बाबा लग रहे थे | मैं अपनी व्यस्तता के कारण सोच नही पाया कि वह नीब करौरी बाबा भी हो सकते है | जाते हुये २० रूपये वह मेरे मेज पर रख गये | मैने दान-पेटी में उन नोटों को डाल दिया |

इसके बाद दूसरा मरीज मेरे कमरे में आया तो वह बोला ” आप जानते है कि अभी आपके कमरे से जो बाहर गये है , वह कौन थे ?” मेरे मना करने पर उसने कहा कि वह बाबा नीब करौरी थे | भारत की यह महान विभूति आपके द्वार पर दो घण्टे आपकी प्रतीक्षा मे बैठी रही | यह सुनकर मैं स्तब्ध रह गया | मुझे अत्याधिक ग्लानि हुई कि मै अज्ञानता वश श्री नीम करोली बाबाजी का यथोचित सम्मान ना कर सका | मैं बाहर भागा , बहुत खोजा मगर बाबाजी ना मिले |

 

 

 

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