श्री सिद्धि माता जी (Shree Siddhi Mata Ji) का जन्म और परिवार
श्री सिद्धि माता जी (Shree Siddhi Mata Ji) का जन्म 1928 में चैत्र नवरात्र के दसवें दिन अल्मोड़ा में श्री प्यारे लाल साह और श्रीमती रेवती देवी के यहाँ हुआ था | ऐसा माना जाता है कि साह मूलतः चाँद राजवंश के कोषाध्यक्ष थे, जिन्होंने 1563 में अपनी राजधानी को अल्मोड़ा में स्थानांतरित कर दिया | माताजी के परिवार में आठ बहनें थी | माताजी के जन्म के बाद परिवार में सुख और आनन्द छा गया | सभी बहुत प्रसन्न हुए, परिवार और पड़ोस के सभी लोग श्री सिद्धि माताजी से बहुत ही ज्यादा प्रेम और स्नेह करते थे और उन्हें देखकर अत्यंत ही प्रसन्न हो जाया करते थे | श्री सिद्धि माताजी अपने बाल्य-काल में अपने आंगन में अन्य बच्चों के साथ रामायण के अलग-अलग रूप देखकर बड़ी प्रसन्न हो जाती थीं और सभी के साथ बड़ा ही आनंद महसूस करती थीं |
श्री सिद्धि मां की कुंडली के अनुसार उनकी जन्मतिथि 31 मार्च थी | उन्हें हरिप्रिया नाम दिया गया था, लेकिन उनके पिता उन्हें सिद्धि कह कर बुलाते थे | श्री सिद्धि माता जी (Shree Siddhi Mata Ji ) अपने पिताजी के साथ समय बिताना पसंद करती थीं और स्कूल के बाद दुकान में मदद करती थीं | कई वर्षों के बाद भी, श्री सिद्धि मां को कांच की जार में रखे रंगीन पन्नी में लिपटे चॉकलेट याद होते जो कभी -कभी उनके पिता उन्हें विशेष उपहार के रूप में देते थे |
समृद्ध ना होते हुए भी परिवार कभी किसी चीज की चाहत नहीं रखता था और घर में गहरी संतुष्टि की भावना व्याप्त थी |
श्री सिद्धि माता जी (Shree Siddhi Mata Ji) का विवाह और सन्तान
श्री सिद्धि माता जी (Shree Siddhi Mata Ji) का विवाह नैनीताल के श्री तुलाराम साह जी के साथ हुआ था | श्री सिद्धि माताजी के 2 पुत्र होटल Association के अध्यक्ष श्री दिनेश लाल साह और श्री योगेश साह और एक पुत्री श्री गीता साह जी हैं जो नैनीताल में रहते हैं |
श्री सिद्धि माता जी(Shree Siddhi Mata Ji) का धार्मिक जीवन
श्री सिद्धि माता जी (Shree Siddhi Mata Ji) बचपन से ही ईश्वर में बहुत आस्था रखती थीं और वो 6 वर्ष की आयु से ही मन्दिर जाती थीं और अपनी माताजी द्वारा बनाए दीप प्रज्वलित करती थीं | जब श्री सिद्धि माताजी सिर्फ 7 वर्ष की थीं उसी समय श्री नीम करोली बाबाजी ने उन्हें जाकर दर्शन दिए थे शायद उसी समय पूर्व जन्म का सम्बंध जाग्रत हो गया था |
श्री सिद्धि माताजी बचपन से ही अपनी पूज्य माताजी के साथ श्री आनन्दमयी मां और श्री नारायण स्वामी जी जैसे संतों के सत्संग में जाया करती थीं | एक अवसर पर श्री आनंदमयी मां अपने भक्तों के बीच बैठी श्री मीराबाईजी के भजनों का आनन्द ले रही थीं उसी समय श्री सिद्धि माताजी अपनी 7 वर्ष की छोटी सी उम्र में उठीं और आनंदमयी होकर नृत्य करने लगीं , जैसे ही भजन समाप्त हुआ उसी समय श्री आनंदमयी माताजी अपने आसन से उठीं और श्री सिद्धि माताजी को अपने गोद में उठाकर गले लगा लिया और कहा कि ये तो जगत की माता है |
कुछ समय के बाद श्री सिद्धि माता जी (Shree Siddhi Mata Ji) अपने परिवार के साथ श्री नीम करोली बाबाजी के दर्शनों के लिए गईं | श्री नीम करोली बाबाजी ने जैसे ही श्री सिद्धि माताजी को देखा वे बोले कि हर समय ईश्वर की आराधना में लीन रहती है और उन्होंने आशीर्वाद दिया कि तेरे लिए वृन्दावन में एक कुटिया बनवाऊंगा | आगे चलकर श्री सिद्धि माताजी की वृन्दावन में कुटिया बनी |
सन् 1940 के प्रारम्भ में श्री नीम करोली बाबाजी को कुमाऊं का पर्वतीय क्षेत्र और नैनीताल इतने प्रिय लगे कि उन्होंने वहां मन्दिरों का निर्माण कराना शुरू कर दिया था साथ ही साथ श्री सिद्धि माताजी का निवास स्थान इंडिया होटल सभी भक्तों के लिए एक धार्मिक और आध्यात्मिक कार्यों का एक केंद्र बन चुका था | कई दिनों तक भक्त वहां रामायण का पाठ और कीर्तन निरन्तर किया करते थे | कभी-कभी श्री नीब करोरी बाबाजी अचानक वहां पहुंचकर भक्तों को दर्शन देकर आनन्द से सराबोर कर देते थे | मन्दिरों के निर्माण के उपरान्त अक्सर श्री सिद्धि माताजी और श्री तुलाराम शाह जी श्री कैंची धाम और श्री भूमियाधार धाम श्री नीब करोरी बाबाजी के साथ रुका करते थे | श्री नीम करोली बाबाजी के साथ उन्होंने श्री जगन्नाथ पुरी धाम, श्री रामेश्वरम् धाम, श्री द्वारकापुरी धाम, एवम श्री बद्रीनाथ धाम स्थानों की यात्रायें कीं |
सन् 1962 से श्री सिद्धि माताजी पूर्ण रूप से श्री कैंची धाम में रहने लगीं और श्री सिद्धि माताजी श्री जीवन्ती माताजी के साथ सेवा में लग गईं | श्री नीब करोरी बाबाजी के प्रति श्री सिद्धि माताजी की भक्ति एक मिसाल है | श्री सिद्धि माताजी की श्री महाराज जी के प्रति भक्ति और समर्पण की तुलना श्री राम भगवानजी के प्रति श्री भरत भगवानजी की भक्ति और समर्पण की तरह ही है | जैसे श्री भरत भगवानजी ने श्री राम भगवानजी के चरण पादुकाओं की पूरी जिन्दगी पूजा करके अयोध्या के राज-काज को चलाया था वैसे ही श्री सिद्धि माताजी ने श्री जीवन्ती माताजी के साथ मिलकर श्री नीम करोली बाबाजी के कम्बल की पूरी उम्र पूजा की थी | जैसे ही कोई भक्त अपनी समस्या को चिट्ठी में लिखकर भेजता था तो उस चिट्ठी को श्री नीम करोली बाबाजी के कम्बल के नीचे रखा जाता था और यदि भक्त वहां स्वयं उपस्थित होते थे तो श्री सिद्धि माताजी कहती थीं की श्री बाबाजी से प्रार्थना करो वो सब ठीक करेंगे | ये नियम अभी तक चला आ रहा है |
श्री नीम करोली बाबाजी स्वयं सभी भक्तों को श्री सिद्धि माताजी के अलौकिक स्वरूप के बारे मे बताते थे | एक चांदनी रात में श्री पाषाण देवी मन्दिर झील के पास श्री नीम करोली बाबाजी श्री पूरनचन्द जोशी जी के साथ बैठे हुए थे तभी उन्होने इंडिया होटल की तरफ इशारा करते हुए कहा कि यहां श्री कात्यानी देवी का वास है उन्ही के लिए श्री हनुमान जी को स्वयं यहां आना पड़ा | इस प्रकार श्री नीम करोली बाबाजी ने अपना और श्री सिद्धि माताजी का बातों ही बातों मे स्वयं परिचय दे दिया |
महासमाधि से 2 दिन पूर्व श्री नीम करोली बाबाजी अपनी कुटी में बैठकर श्री राम नाम लिख रहे थे एवम सभी भक्तों को दर्शन दे रहे थे सभी भक्त श्री नीम करोली बाबाजी के चारों तरफ बैठे हुए थे जिनमे विशेष रूप से श्री सिद्धि माताजी बैठी हुई थीं उनके साथ ही साथ वहां श्री जीवन्ती माताजी जिन्हें हम श्री छोटी माताजी कहते हैं, श्री के सी तिवारी जी, श्री कुरुप्रिय माताजी और श्री मोहनी माताजी थीं | श्री नीब करौरी बाबाजी ने 9 सितम्बर 1973 की दिनांक लिखकर श्री राम नाम से वह पृष्ठ पूरा कर दिया अगले पृष्ठ पर 10 सितम्बर की दिनांक लिखकर वह पृष्ठ भी श्री राम नाम से पूरा लिख दिया उसके बाद 11 सितम्बर की दिनांक लिखकर उस पृष्ठ को खाली छोड़ दिया और श्री सिद्धि माताजी की तरफ ईशारा करते हुए बोले कि अब से आप ही इस पर लिखोगी | इस प्रकार श्री नीब करौरी बाबाजी ने अपना यह कार्य श्री सिद्धि माता जी (Shree Siddhi Mata Ji) को सौंप दिया | श्री नीब करौरी बाबाजी के भौतिक शरीर का त्याग करने के बाद सभी भक्त भारी दुःख के सागर मे डूब गए उस समय श्री सिद्धि माताजी की करुण प्रेम और कृपा सभी भक्तों के लिए आधार बन गई | एक भक्त ने ये कहा कि हमारे गुरु श्री नीब करौरी बाबाजी बहुत ही दयालु थे हमे अनाथ ना छोड़कर हमे श्री सिद्धि माताजी की गोद मे छोड़ गए |
श्री नीब करौरी बाबाजी के भक्त श्री भगवान सिंह जी बताते हैं कि श्री सिद्धि माता जी (Shree Siddhi Mata Ji) ने ही सन् 1980 मे ऋषिकेश मे आश्रम बनवाया था |
श्री सिद्धि माता जी (Shree Siddhi Mata Ji) ने अपनी मानव देह लीला कब और कैसे समाप्त की ?
श्री नीब करौरी बाबाजी के मानव देह लीला समाप्त करने के बाद श्री सिद्धि माता जी (Shree Siddhi Mata Ji) ने अपने करुणामयी रूप में सभी आश्रमों का मार्ग प्रशस्त किया और यह सुनिश्चित किया कि श्री नीम करोली बाबाजी के सभी आश्रम और मन्दिरों में उनकी दिव्य उपस्थिति के स्थान हों | हम श्री सिद्धि माताजी के चरण कमलों में नमन करते हैं और उनका धन्यवाद करते हैं | श्री सिद्धि माता जी (Shree Siddhi Mata Ji) के नाम का अर्थ है आध्यात्मिक शक्ति की मां |
श्री नीम करोली बाबाजी के मानव देह लीला समाप्त करने के बाद श्री सिद्धि माता जी (Shree Siddhi Mata Ji) ने 44 वर्षों तक उनके कार्य को आगे बढ़ाया और श्री सिद्धि माता जी (Shree Siddhi Mata Ji) ने अपनी मानव देह लीला 92 वर्ष की आयु में 28 दिसम्बर 2017 में नैनीताल के मल्लीताल प्रसादा भवन के आवास तीर्थम में समाप्त की |