श्री शत्रुघ्न भगवानजी किसके अवतार हैं ?
श्री शत्रुघ्न भगवानजी श्री राम के छोटे भाई हैं जो भगवान श्री हरि विष्णु के हाथ में धारण शंख शैल के अवतार माने जाते हैं |
श्री शत्रुघ्न भगवानजी का जन्म
श्री शत्रुघ्न भगवान का जन्म 11 जनवरी 5114 ईसा पूर्व सुबह 11:30 बजे कर्क लग्न और अश्लेषा नक्षत्र में हुआ था | श्री शत्रुघ्न भगवान जी श्री राम भगवानजी , श्री भरत भगवानजी, श्री लक्ष्मण भगवानजी के छोटे भाई हैं और राजा श्री दशरथ जी और रानी श्री सुमित्रा जी के पुत्र हैं |
श्री शत्रुघ्न भगवानजी का विवाह और जन्म
श्री शत्रुघ्न भगवान जी की पत्नी का नाम माता श्री श्रुतिकीर्ति है, वह महाराजा जनक के छोटे भाई श्री कुशध्वज की पुत्री हैं तथा माता श्री सीता की छोटी बहन हैं श्री कुशध्वज जी की दो पुत्रियां थीं माता श्री मांडवी और माता श्री श्रुतिकीर्ति और महाराज श्री जनक की दो पुत्रियां थीं माता श्री सीता और माता श्री उर्मिला | श्री सीता माता जी का विवाह प्रभु श्री राम से हुआ था |श्री उर्मिला माता जी का विवाह प्रभु श्री लक्ष्मण से हुआ था |श्री मांडवी माता जी का विवाह प्रभु श्री भारत से हुआ था तथा श्री श्रुतिकीर्ति माता जी का विवाह प्रभु श्री शत्रुघ्न से हुआ था |
श्री शत्रुघ्न भगवान जी और श्री श्रुति कीर्ति माता जी के दो पुत्र थे जिनके नाम थे श्री सुबाहु हो और श्री शत्रुघाती | श्री सुबाहु को उन्होंने मथुरा नगरी का राजा बनाया तथा श्री शत्रुघाती को विदिशा नगरी का राज्य सौंपा गया जिसे भेलसा के नाम से भी जाना जाता है |
श्री शत्रुघ्न भगवानजी की श्री रामायण में भूमिका
श्री शत्रुघ्न भगवान का चरित्र अत्यंत ही विलक्षण था ,यह मौन सेवा व्रती थे | बचपन से ही श्री भरत जी का अनुगमन एवं सेवा ही इनका मुख्य व्रत था | यह मित्र-भाषी ,सदाचारी, सत्यवादी, विषय-बैरागी तथा भगवान श्री राम के दासानुदास थे | जिस प्रकार श्री लक्ष्मण हाथ में धनुष लेकर श्री राम की रक्षा करते हुए उनके पीछे चलते थे, उसी प्रकार श्री शत्रुघ्न जी भी श्री भरत जी के साथ रहते थे | जब श्री भरत जी के मामा श्री युधाजित श्री भरत जी को अपने साथ ले गए तब श्री शत्रुघ्न भगवान जी भी श्री भारत भगवान जी के साथ ननिहाल चले गए | इन्होंने माता-पिता ,भाई नवविवाहिता पत्नी सभी का मोह छोड़कर श्री भरत जी के साथ रहना एवं उनकी सेवा करना ही अपना कर्तव्य मान लिया | श्री शत्रुघ्न जी भी अपने अन्य भाइयों की तरह प्रभु श्री राम से बहुत स्नेह करते थे ,जब श्री भरत जी के साथ अपने ननिहाल से लौटने पर उन्हें अपने पिता श्री के मरने और श्री लक्ष्मण और श्री सीता जी सहित प्रभु श्री राम जी के वनवास जाने का समाचार मिला तब इनका हृदय दुख और शोक से व्याकुल हो गया उसी समय इन्हें सूचना मिली कि जिस क्रूरा और पापिनी के षड्यंत्र से प्रभु श्री राम को वनवास हुआ है, वह वस्त्राभूषणों से सज-धज कर खड़ी है तभी ये क्रोध से व्याकुल हो गए और ये मंथरा की चोटी पड़कर उसे आंगन में घसीटने लगे ,इनके लात के प्रहार से उसका कूबर टूट गया और सिर फट गया | उसकी दशा देखकर श्री भरत जी को उस पर दया आ गई और उन्होंने उसे छुड़ा दिया इस घटना से श्री शत्रुघ्न जी की प्रभु श्री राम के प्रति दृढ़ निष्ठा और भक्ति का परिचय मिलता है | चित्रकूट से प्रभु श्री राम की पादुकाएं लेकर लौटते समय जब श्री शत्रुघ्न जी ,श्री राम जी से मिले तब उनके तेज स्वभाव को जानकर प्रभु श्री राम ने कहा कि शत्रुघ्न तुम माता श्री कैकेई जी की सेवा करना और उन पर कभी भी क्रोध मत करना | जब श्री रघुनाथ 14 वर्षों तक वनवास में थे तब श्री शत्रुघ्न जी ने श्री भरत जी का अयोध्या में पूरा साथ दिया क्योंकि श्री भरत जी भी प्रभु श्री राम की चरण पादुका को सिंहासन पर रखकर दूर नंदीग्राम में एक कुटिया में वनवासी की तरह जीवन व्यतीत करने लगे तब वह श्री शत्रुघ्न जी ही थे जिन्होंने अयोध्या में रहते हुए राज्य का कार्य सुचारू रूप से चलने में सहायता की ,एक निडर सिपाही की तरह राज्य की रक्षा की और अपनी सभी माता को अन्य तीन भाइयों के न होने की कमी नहीं महसूस होने दी |
श्री शत्रुघ्न भगवान जी का शौर्य भी अनुपम था |श्री सीता जी के वनवास के बाद एक दिन ऋषियों ने भगवान श्री राम की सभा में उपस्थित होकर लवनासुर के अत्याचारों का वर्णन किया और उसका वध करके उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की | श्री शत्रुघ्न जी ने भगवान श्री राम की आज्ञा से वहां जाकर प्रबल पराक्रमी लवनासुर का वध किया और मधुपुरी बसाकर वहां बहुत दिनों तक उस पर शासन किया |
श्री शत्रुघ्न भगवानजी ने अपनी मानव देह लीला कैसे समाप्त की?
भगवान श्री राम के परधाम पधारने के समय मथुरा में अपने पुत्रों का राज्याभिषेक करके श्री शत्रुघ्न जी अयोध्या पहुंचे और प्रभु श्री राम के पास आकर और उनके चरणों में प्रणाम करके उन्होंने विनीत भाव से कहा , भगवान मैं अपने दोनों पुत्रों को राज्याभिषेक करके आपके साथ चलने का निश्चय करके ही यहां आया हूं ,आप अब मुझे कोई दूसरी आज्ञा ना देकर अपने साथ चलने की अनुमति प्रदान करें |भगवान श्री राम ने श्री शत्रुघ्न जी की प्रार्थना स्वीकार की और वह श्री राम जी के साथ ही साकेत धाम पधारे थे |