Shree Saraswati Mataji : श्री सरस्वती माताजी: श्री सरस्वती माताजी सम्पूर्ण परिचय

श्री सरस्वती माताजी को ज्ञान, विद्या, कला, बुद्धि की माता माना जाता है |

श्री सरस्वती माताजी की जन्म कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्री ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि की रचना की थी उस समय समस्त सृष्टि में किसी भी प्रकार की ध्वनि मौजूद नहीं थी , संसार का कोई भी प्राणी ना तो बोल सकता था और ना ही सुन सकता था ,नदियों की धाराओं तथा समुद्र की लहरों में भी किसी प्रकार की कोई ध्वनि नहीं थी और ना ही पेड़ पौधों में फल और फूल खिला करते थे। चारों ओर का वातावरण एकदम शांत और नीरस था, जिसके बाद भगवान श्री ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना को पूरा करने के लिए अपने कमंडल के जल को अभिमंत्रित कर उसे धरती पर गिरा दिया इस प्रकार भगवान श्री ब्रह्मा जी की माया से माता श्री सरस्वती जी का प्राकट्य हुआ । कमल पुष्प पर विराजमान माता श्री सरस्वती जी अपने एक हाथ में माला ,एक हाथ में ग्रंथ और दोनों हाथों में वीणा धारण करके चतुर्भुज रूप में अवतरित हुई थीं । भगवान श्री ब्रह्मा जी की आज्ञा से माता श्री सरस्वती जी ने समस्त चराचर जगत तथा प्राणियों में बोलने तथा सुनने की क्षमता उत्पन्न करने के लिए अपनी वीणा को बजाया ,इसके बाद सृष्टि के समस्त मनुष्यों जीव – जंतुओं तथा पक्षियों में बोलने और सुनने की शक्ति विकसित हुई नदियों की धाराओं और समुद्र की लहरों में भी मधुर आवाज उत्पन्न हो गई ,पेड़ पौधों पर भी फल और फूल खिलने लगे । ऐसा माना जाता है कि जिस दिन माता श्री सरस्वती जी का प्राकट्य हुआ था उस दिन माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी का दिन था , इस कारण इस दिन को पूरे भारतवर्ष में बसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है इस दिन पीले वस्त्र धारण करना ,नए कार्य का शुभ आरंभ करना, दान पुण्य करना,वृक्षारोपण और जीवन का संरक्षण करना अत्यंत कल्याणकारी माना गया है।

हम सभी इस सृष्टि के निर्माता के रूप में परमपिता श्री ब्रह्मा भगवान जी को देखते हैं जबकि संचालक की भूमिका भगवान श्री हरि विष्णु और संहारक स्वयं श्री महादेव हैं | सृष्टि निर्माता भगवान श्री ब्रह्मा जी की पत्नी का नाम माता श्री सरस्वती जी है |

माता श्री सरस्वती जी के जन्म के विषय में एक पौराणिक कथा है जो इस प्रकार है –

यह उस समय की बात है जब भगवान श्री ब्रह्मा जी को भगवान श्री शिव ने पृथ्वी के निर्माण का आदेश दिया था ,महादेव के आदेश अनुसार भगवान श्री ब्रह्मा जी ने सृष्टि और इस पृथ्वी का निर्माण किया उन्होंने पृथ्वी में समुद्र ,नदियां ,पहाड़ जीव-जंतु, पेड़-पौधे इत्यादि सभी चीजों का निर्माण कर दिया | अपने द्वारा पृथ्वी के निर्माण किए जाने के पश्चात जब भगवान श्री ब्रह्मा जी ने देखा तो उन्हें अपनी बनाई रचना में कुछ कमी लगी पृथ्वी देखने में बहुत सुंदर थी लेकिन चारों ओर केवल मौन और उदासी छाई थी कहीं कोई ध्वनि का संवाद नहीं था और सब कुछ सूना-सूना सा प्रतीत हो रहा था | कहने का तात्पर्य हुआ कि पृथ्वी में कहीं भी कोई ध्वनि या संगीत नहीं था, जिस कारण पक्षियों के चहचहाने ,नदियों के बहाने ,हवा की सरसराहट इत्यादि कुछ भी सुनाई नहीं पड़ रहा था | यह देखकर भगवान श्री ब्रह्मा जी अपनी रचना पर अत्यंत दुखी हो गए और इसका उपाय निकालने भगवान श्री हरि विष्णु के पास गए | दुखी मन से भगवान श्री ब्रह्मा जी विष्णु लोक पहुंचे और और भगवान श्री विष्णु के सामने अपनी समस्या रखी | उन्होंने भगवान श्री विष्णु जी को बताया कि क्योंकि अब यह सृष्टि उन्हें ही चलानी है लेकिन वह उन्हें यह सुनसान सृष्टि नहीं सौंप सकते इसीलिए इसका कोई मार्ग निकालें | भगवान श्री विष्णु, श्री ब्रह्मा भगवान जी की चिंता का कारण समझ गए और इसके लिए उन्होंने आदिशक्ति को बुलाने का आह्वान किया |भगवान श्री विष्णु जानते थे कि किसी भी चीज को पूर्ण केवल पुरुषत्व नहीं कर सकता इसीलिए उसमें स्त्रीत्व का होना अति आवश्यक है | भगवान श्री विष्णु के आह्वान के द्वारा माता श्री आदिशक्ति वहां प्रकट हुईं | श्री माताजी के प्रकट होने के बाद भगवान श्री ब्रह्मा जी ने उन्हें सृष्टि का अवलोकन कर उसकी कमी को दूर करने की याचना की | श्री आदिशक्ति माताजी ने इस सृष्टि का पूर्ण और अत्यन्त गहन अध्ययन किया और पाया कि इसमें सभी तत्व तो उपस्थित हैं लेकिन ध्वनि और संवाद की कमी है साथ ही सृष्टि में बुद्धि और ज्ञान का भी अभाव था ,अब माता श्री आदिशक्ति को एक नई शक्ति का विकास करना था जो सृष्टि की इस कमी को दूर कर सके सृष्टि की कमी को दूर करने के लिए माता श्री दुर्गा जी के शरीर से एक तेज उत्पन्न हुआ और उसमें से श्वेत वस्त्रों में चार हाथों वाली एक दिव्य नारी प्रकट हुईं ,उन्होंने अपने दोनों हाथों में वीना पकड़ रखी थी और तीसरे में वर्णमाला और चौथे हांथ में पुस्तक ले रखी थी ,उस नारी का नाम माता श्री सरस्वती जी रखा गया | मां श्री सरस्वती ने प्रकट होते ही अपनी वीणा से अत्यन्त ही सुरीला एवं मधुर संगीत बजाया | वीणा से मधुर एवम सुरीले संगीत के बजते ही विश्व के सभी जीव – जंतुओं में वाणी का विकास हुआ , वायु में मधुर सी सरसराहट होने लगी ,जलधारा में मधुर कोलाहल हुआ और पूरा विश्व मानो चहचहा उठा ,पूरी पृथ्वी में विभिन्न प्रकार की ध्वनियां गुंजायमान हो उठीं ,जिस कारण हर किसी में एक नए उत्साह और उमंग का संचार हुआ ,इसी के साथ उन्होंने विश्व के सभी प्राणियों और जीव-जंतुओं की प्रजातियों में उनकी क्षमता के अनुसार विद्या का विकास किया | माता श्री सरस्वती जी के प्रभाव के कारण ही हर जीव के अंदर विभिन्न कार्यों को करने की दक्षता थी और सभी में इस प्रकार कौशल विकसित हुआ, इसके बाद माता श्री आदि शक्ति जी ने श्री ब्रह्मा भगवानजी से कहा कि जिस प्रकार माता श्री लक्ष्मी भगवान श्री विष्णु की आदिशक्ति हैं ,माता श्री पार्वती श्री महादेव की आदिशक्ति हैं उसी प्रकार माता श्री सरस्वती जी आपकी आदिशक्ति और धर्मपत्नी होंगी |मां श्री आदि शक्ति के कहे अनुसार भगवान श्री ब्रह्मा जी ने माता श्री सरस्वती जी को अपने अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लिया इसलिए हम सब श्री सरस्वती माताजी को बुद्धि, विद्या, संगीत और वीणा की देवी के रुप में पूजा करते हैं | हर स्थान पर सभी विद्यार्थी श्री सरस्वती माता जी की आराधना मुख्य तौर पर करता है |संगीतकार भी माता श्री सरस्वती जी को अपनी आराध्य देवी मानते हैं |

श्री सरस्वती माताजी का नाम श्री शारदा कैसे पड़ा ?

श्री सरस्वती माता जी का एक नाम ‘ श्री शारदा’ है | इस संबंध में एक कथा प्रचलित है जो इस प्रकार है-

एक बार प्रभु श्री शंकर जी और माता श्री पार्वती जी भ्रमण पर निकल रहे थे और श्री ब्रह्मा भगवानजी माता श्री सरस्वती जी को ढूंढ रहे थे और माता श्री सरस्वती जी को ढूंढते हुए श्री ब्रह्मा भगवान जी जब श्री शंकर भगवान जी के समक्ष पहुंचे तब भगवान श्री शंकर जी से श्री ब्रह्मा भगवान जी ने कहा कि आप यदि कहीं श्री सरस्वती जी को देखें तो मेरे पास भेज दीजिएगा | श्री शंकर भगवान जी ने इस समय श्री पार्वती माता जी से कहा कि श्री पार्वती जैसे एक स्त्री जो पतिव्रता धर्म का पालन करने वाली है, जो पति को परमेश्वर मानने वाली होती है, तो वह पर- पुरुष का स्मरण नहीं करती उसी तरह एक पति जो अपनी अर्धांगिनी के साथ में रहे और अर्धांगिनी के साथ चले तो पर- नारी का स्मरण नहीं होना चाहिए तो तुम एक काम करो कि तुम श्री सरस्वती को बुलाना प्रारंभ करो तब श्री पार्वती जी ने कहा कि श्री सरस्वती जी मेरी बहन की तरह हैं तो मैं अगर उन्हें बुलाऊं आवाज दूं तो अच्छा नहीं लगेगा तो माता श्री पार्वती जी जब ढूंढते-ढूंढते श्री शंकर भगवान जी के साथ में भ्रमण करती हुई पहुंची तो माता क्या देखती हैं की एक सरोवर के पास में माता श्री सरस्वती जी बैठकर सरोवर में अपना मुखारबिंदु देख रहीं थीं | उन्होंने श्वेत वस्त्र धारण किया हुआ था और उन्होंने अपने गले में एक बड़ी ही सुंदर माला पहन रखी थी और सरोवर में माता श्री सरस्वती जी अपने मुख को निहार रही थीं, उस दर्पण के भाव में अपने प्रतिबिंब को देख रहीं हैं तो उस समय पर माता श्री पार्वती जी ने कहा ‘ शारदा’ | माता श्री सरस्वती जी को लगा कि मेरा यह संबोधन किसने किया उन्होंने पलट कर देखा माता श्री सरस्वती जी ने कहा कि ‘ श्री पार्वती ‘ आप तो माता श्री पार्वती जी ने कहा हां मैंने आपका दर्पण में जो प्रतिबिंब देखा है, आपका स्वरूप देखा, आप इतनी सुंदर हो परंतु आपका जल में जो स्वरूप देखा वह नीला दिखाई दिया, थोड़ा सा श्याम दिखाई दिया इसलिए मैंने आपको ‘ शारदा ‘ कह दिया ,आपको श्री ब्रह्मा जी बुला रहे हैं | माता श्री सरस्वती जी ने कहा श्री पार्वती जी आपने मुझे जो नाम दिया है जगत के लोग संसार के लोग मुझे इस नाम से जब पुकारेंगे तो यह शारदा स्वयं उनके कंठ पर उसके मस्तिष्क पर सदा विराजमान रहेगी |

आज भी हमारे मध्य प्रदेश के कटनी और सतना के बीच में मैहर में माता श्री शारदा भवानी जी विराजमान हैं | धार जिले में बाग क्षेत्र में माता श्री बागेश्वरी के रूप में मां शारदा आज भी विराजमान हैं |

श्री सरस्वती माताजी को ज्ञान की देवी क्यों कहा जाता है?

माता श्री सरस्वती जी विद्या, संगीत और बुद्धि की देवी मानी गई हैं | देवी पुराण में श्री सरस्वती माता जी को गायत्री ,सावित्री, अंबिका ,लक्ष्मी नाम से संबोधित किया गया है | प्राचीन ग्रंथो में उन्हें वाग देवी , वानी, शारदा ,भारती , बीना पानी,विद्या धारी ,सर्व मंगला आदि नामों से अलंकृत किया गया है | इनकी उपासना से हर प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं | यह संगीत शास्त्र की भी अधिष्ठात्री देवी हैं | ताल ,स्वर लय ,राग, रागिनी आदि का प्रादुर्भाव भी इन्हीं से हुआ है | सात प्रकार के स्वरों द्वारा इनका स्मरण किया जाता है ,इसलिए माता श्री सरस्वती जी को स्वरात्मिका भी कहा जाता है | सप्त विधि स्वरों का ज्ञान प्रदान करने के कारण ही इनका नाम सरस्वती पड़ा | वीणा वादिनी सरस्वती संगीतमय आह्लादित जीवन जीने की प्रेरणा अवस्था है | वीणा वादन शरीर यंत्र को एकदम स्थैर्य प्रदान करता है इसमें शरीर का अंग-अंग परस्पर गुंथ कर समाधि अवस्था को प्राप्त हो जाता है | माता श्री सरस्वती जी के सभी अंग श्वेतांब हैं ,कमल गतिशीलता का प्रतीक है, यह जीवन को निरपेक्ष होकर जीने की प्रेरणा देता है | हाथ में पुस्तक सभी कुछ जान लेने ,सभी कुछ समझ लेने की सीख देती है |देवी श्री भागवत पुराण के अनुसार माता श्री सरस्वती जी को भगवान श्री ब्रह्मा जी भगवान श्री विष्णु जी तथा भगवान श्री महेश जी द्वारा पूजा जाता है, जो श्री सरस्वती जी की आराधना करते हैं उसमें उनके वाहन हंस के नीर- क्षीर विवेक गुण अपने आप ही आ जाते हैं | लेखक, कवि, संगीतकार ,विद्यार्थी सभी विधि विधान से बसंत पंचमी के दिन माता श्री सरस्वती जी की पूजा करते हैं सभी माता श्री सरस्वती की प्रथम वंदना करते हैं उनका विश्वास है कि इससे उनके भीतर रचना की ऊर्जा शक्ति उत्पन्न होती है | इसके अलावा माता श्री सरस्वती जी की पूजा करने से सभी प्रकार के रोग- शोक चिंताएं और मन में संचित विकार भी दूर हो जाते हैं | एक समय श्री ब्रह्मा भगवानजी ने माता श्री सरस्वती जी से कहा कि तुम किसी योग्य पुरुष के मुख में कवित्व शक्ति होकर निवास करो उनकी आज्ञा अनुसार माता श्री सरस्वती जी योग्य पात्र की तलाश में निकल पड़ीं | पीड़ा से तड़प रहे एक पक्षी को देखकर जब महर्षि वाल्मीकि जी ने द्रवीभूत होकर एक बहुत ही सुंदर श्लोक कहा ,महर्षि श्री वाल्मीकि जी की इस दुर्लभ योग्यता और अद्भुत प्रतिभा का परिचय पाकर श्री सरस्वती माताजी ने उन्हीं के मुख में सबसे पहले प्रवेश किया | माता श्री सरस्वती जी के कृपा पात्र होकर महर्षि वाल्मीकि जी ही आदि कवि के नाम से संसार में विख्यात हुए | रामायण के एक प्रसंग के अनुसार ,जब कुंभकरण की तपस्या से संतुष्ट होकर श्री ब्रह्मा जी उसे वरदान देने पहुंचे तो उन्होंने सोचा यह दुष्ट राक्षस कुछ ना भी करे केवल और केवल बैठकर भोजन ही करे तो भी इसकी वजह से यह संसार उजड़ जाएगा इसलिए श्री ब्रह्मा भगवानजी ने माता श्री सरस्वती जी को अपने पास बुलाया और कहा कि इसकी बुद्धि को भ्रमित कर दीजिए |माता श्री सरस्वती जी ने कुंभकरण की बुद्धि विकृत कर दी परिणाम यह हुआ कि कुंभकरण 6 महीने की नींद मांग बैठा इस प्रकार कुंभकरण में माता श्री सरस्वती जी का प्रवेश उसकी मृत्यु का कारण बना ।

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