Shree Ram :श्री राम : प्रभु श्री राम का संपूर्ण परिचय

श्री राम भगवान जी (Shree Ram Bhagwan Ji) का संपूर्ण परिचय इस प्रकार है –

श्री राम भगवान जी (Shree Ram Bhagwan ji ) किस भगवानजी के अवतार हैं ?

एक बार श्री सनकादी मुनि भगवान श्री विष्णु के दर्शन करने बैकुंठ आए | उसे समय बैकुंठ के द्वार पर जय, विजय नाम के दो द्वारपाल पहरा दे रहे थे | जब श्री सनकादी मुनि द्वारा से होकर जाने लगे तब जय विजय ने हंसी उड़ाते हुए उन्हें बेंत अड़ाकर रोक लिया | क्रोधित होकर श्री सनकादी मुनि ने उन्हें तीन जन्मों तक राक्षस होने का श्राप दे दिया | क्षमा मांगने पर श्री सनकादी मुनि ने कहा की तीनों ही जन्म में तुम्हारा अंत श्री हरि विष्णु करेंगे , इस प्रकार तीन जन्मों के बाद तुम्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी | पहले जन्म में जय विजय ने हिरण्यकश्यप और के रूप में हिरण्याक्ष जन्म लिया | भगवान श्री विष्णु ने वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का तथा नरसिम्हा अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया | दूसरे जन्म में जय विजय ने रावण और कुंभकरण के रूप में जन्म लिया इनका वध करने के लिए श्री हरि विष्णु ने श्री राम (Shree Ram) के रूप में पृथ्वी पर अवतार लिया | तीसरे जन्म में जय विजय ने शिशुपाल और दंतवक्र के रूप में पृथ्वी पर जन्म लिया , इस जन्म में भगवान श्री कृष्ण ने इनका वध किया |

एक अन्य प्रसंग के अनुसार मनु और उनकी पत्नी शतरूपा से ही मनुष्य जाति की उत्पत्ति हुई ऐसा पुराणों में उल्लेख मिलता है |उन दोनों पति-पत्नी के धर्म और आचरण बहुत ही पवित्र थे |वृद्ध होने पर मनु अपने पुत्र को राज पाठ देकर वन में चले गए | वहां जाकर मनु और शतरूपा ने कई साल तक भगवान श्री विष्णु को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की प्रसन्न होकर भगवान श्री हरि विष्णु प्रकट हुए और उन दोनों को वर मांगने के लिए कहा मनु और शतरूपा ने श्री हरि विष्णु से कहा कि हमें आपका समान ही पुत्र की अभिलाषा है | उन दोनों की इच्छा सुनकर श्री हरि ने कहा कि संसार में मेरे सामान कोई और नहीं है इसलिए तुम्हारी अभिलाषा पूरी करने के लिए मैं स्वयं तुम्हारे पुत्र के रूप में जन्म लूंगा कुछ समय बाद आप अयोध्या के राजा श्री दशरथ के रूप में जन्म लेंगे उसी समय मैं आपका पुत्र बनकर आपकी इच्छा पूरी करूंगा | इस प्रकार मनु और शतरूपा के दिए वरदान के कारण भगवान श्री हरि विष्णु को श्री राम का अवतार लेना पड़ा था |

इस विषय में एक अन्य प्रसंग भी है इस प्रसंग के अनुसार देवर्षि श्री नारद को एक बार इस बात का घमंड हो गया था कि श्री कामदेव भी उनकी तपस्या और ब्रह्मचर्य को भंग नहीं कर सकते | श्री नारद जी ने यह बात भगवान श्री शिव को बताई देव ऋषि के शब्दों में अहंकार भर चुका था भगवान श्री शिव जी यह समझ चुके थे कि नारद अभिमानी हो गए हैं | भोलेनाथ ने श्री नारद से कहा कि भगवान श्री हरि विष्णु के सामने अपना अभिमान इस प्रकार प्रदर्शित मत करना इसके पश्चात श्री नारद श्री हरि विष्णु के पास गए और भगवान श्री शिव के समझाने के बाद भी उन्हें पूरा प्रसंग सुना दिया | श्री नारद भगवान श्री हरि विष्णु के सामने भी अपना घमंड प्रदर्शित कर रहे थे | भगवान श्री हरि विष्णु ने सोचा कि नारद का घमंड तोड़ना होगा, यह शुभ लक्षण नहीं है | जब श्री नारद कहीं जा रहे थे तब रास्ते में उन्हें एक बहुत ही सुंदर नगर दिखाई दिया जहां किसी राजकुमारी के स्वयंवर का आयोजन किया जा रहा था श्री नारद भी वहां पहुंच गए और राजकुमारी को देखते ही उस पर मोहित हो गए | यह सब भगवान श्री हरि विष्णु की माया ही थी राजकुमारी का रूप और सौंदर्य श्री नारद के तब को भंग कर चुका था इस कारण उन्होंने राजकुमारी के स्वयंवर में हिस्सा लेने का मन बनाया श्री नारद भगवान विष्णु के पास गए और कहा कि आप मुझे अपना सुंदर रूप दे दीजिए जिससे कि वह राजकुमारी स्वयंवर में मुझे ही अपने पति के रूप में चुने भगवान श्री हरि विष्णु ने ऐसा ही किया | लेकिन जब श्री नारद मुनि स्वयंवर में गए तो उनका मुख वानर के समान हो गया उसे समय उसे स्वयंवर में भगवान श्री शिव के दो गण भी थे | वे यह सभी बातें जानते थे और ब्राह्मण का वेष बनाकर यह सब देख रहे थे जब राजकुमारी स्वयंवर में आई तो बंदर के मुख वाले श्री नारद को देखकर बहुत क्रोधित हुई इस समय भगवान श्री हरि विष्णु एक राजा के रूप में वहां आए और सुंदर रूप देखकर राजकुमारी ने उन्हें अपने पति के रूप में चुन लिया यह सब देखकर श्री शिवगण श्री नारद जी की हंसी उड़ाने लगे और कहां की पहले अपना मुख दर्पण में देखिए | जब श्री नारद जी ने अपना चेहरा वानर के समान देखा तो उन्हें बहुत गुस्सा आया | श्री नारद मुनि ने श्री शिवगणों को राक्षस योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया | श्री शिवगणों को श्राप देने के बाद श्री नारद जी भगवान श्री हरि विष्णु के पास आए और क्रोधित होकर उन्हें बहुत भला बुरा कहने लगे माया से मोहित होकर श्री नारद मुनि जी ने श्री हरि विष्णु जी को श्राप दे दिया कि जिस तरह आज मैं स्त्री के लिए व्याकुल हो रहा हूं इस तरह मनुष्य जन्म लेकर आपको भी स्त्री वियोग सहना पड़ेगा उस समय वानर ही आपकी सहायता करेंगे | भगवान श्री हरि विष्णु ने कहा कि ऐसा ही हो और श्री नारद मुनि को माया से मुक्त कर दिया तब श्री नारद मुनि को अपने कटु वचन और व्यवहार पर बहुत ज्यादा ग्लानि हुई और उन्होंने भगवान श्री हरि विष्णु से बहुत क्षमा मांगी | भगवान श्री हरि विष्णु ने कहा कि यह सब मेरी ही इच्छा से हुआ है अतः तुम शोक ना करो | इस समय वहां भगवान श्री शिव के गण आए जिन्हें श्री नारद मुनि ने श्राप दिया था ,उन्होंने श्री नारद मुनि से क्षमा मांगी तब श्री नारद मुनि ने कहा कि तुम दोनों राक्षस योनि में जन्म लेकर सारे विश्व को जीत लोगे तब भगवान श्री हरि विष्णु मनुष्य रूप में तुम्हारा वध करेंगे और तुम्हारा कल्याण होगा | श्री नारद मुनि के इन्हीं श्रापों के कारण इन श्री शिवगणों ने रावण और कुंभकरण के रूप में जन्म लिया था और श्री राम (Shree Ram) के रूप में अवतार लेकर भगवान श्री हरि विष्णु को स्त्री वियोग को सहना पड़ा था |

श्री राम भगवान जी (Shree Ram Bhagwan ji ) की जन्म कथा

अयोध्या नगरी के राजा श्री दशरथ और महारानी श्री कौशल्या को एक पुत्री थी जिनका नाम श्री शांता था | उन्होंने श्री शांता को राजा श्री रोमपद जो अंगदेश के राजा थे को गोद दिया और जब वह विवाह के योग्य हो गई तब राजा ने ऋषि श्री श्रृंग के साथ उनका विवाह कर दिया परंतु श्री शांता को गोद देने के पश्चात कई वर्षों तक राजा श्री दशरथ को कोई संतान प्राप्त नहीं हुई और इसीलिए पुत्र प्राप्ति के लिए उन्होंने पुत्रकमेष्ठी यज्ञ करवाया | महाराज की आज्ञा अनुसार चार्मकरण घोड़ा चतुरंगिनी सेना के साथ छुड़वा दिया गया | महाराजा श्री दशरथ ने समस्त मनस्वी ,तपस्वी ,वेदांग ऋषि मुनियों तथा प्रकांड पंडितों को यज्ञ संपन्न करने के लिए बुलावा भेजा | निश्चित समय आने पर समस्त अभ्यगतों के साथ महाराज श्री दशरथ अपने गुरु श्री वशिष्ठ ऋषि जी तथा श्री श्रृंगी ऋषि जी को लेकर यज्ञ मंडप में पधारे | इस प्रकार महान पुत्रकामेष्ठि यज्ञ का विधिवत शुभारंभ किया गया | संपूर्ण वातावरण वेदों की ऋचाओं के उच्च स्वर में पाठ से गूंजने तथा सुगंध में महकने लगा | समस्त पंडितों ब्राह्मण ऋषियों आदि को यथोचित धन-धान्य आदि भेंट कर सदर विदा करने के साथ यज्ञ की समाप्ति हुई | राजा श्री दशरथ ने यज्ञ के प्रसाद खीर को अपने महल में ले जाकर अपनी तीनों रानियां में वितरित कर दिया | प्रसाद ग्रहण करने के परिणाम स्वरूप तीनों रानियां ने गर्भधारण किया |

त्रेतायुग के अन्त में जब चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में श्री सूर्य ,श्री मंगल, श्री शनि, श्री बृहस्पति और श्री शुक्र अपने-अपने उच्च स्थान में विराजमान थे तथा कर्क लग्न का उदय होते ही श्री चन्द्रमा के साथ श्री बृहस्पति के स्थित होने पर महाराजा श्री दशरथ की बड़ी महारानी श्री कौशल्या के गर्भ से एक शिशु का जन्म हुआ जो कि नील वर्ण चुंबकीय आकर्षक वाला अत्यंत तेजमय ,परम कांतिमान तथा अत्यंत सुंदर था | उसे शिशु को देखने वाले देखते ही रह जाते थे | कुछ विद्वानों का मानना है की महारानी श्री सुमित्रा का प्रसाद एक पक्षी उड़ाकर ले गया जिसकी वजह से महारानी श्री कौशल्या और महारानी श्री कैकेई ने अपने हिस्से में से थोड़ा-थोड़ा प्रसाद महारानी श्री सुमित्रा को दिया और इसी कारणवश महारानी श्री सुमित्रा ने दो पुत्रों को जन्म दिया महारानी श्री कैकेई ने भी एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया |चारों पुत्रों के जन्म से पूरी अयोध्या में उत्सव मनाए जाने लगे राजा श्री दशरथ के पिता बनने पर देवता भी अपने विमान में बैठकर पुष्प वर्षा करने लगे |अपने पुत्रों के जन्म की खुशी में महाराज श्री दशरथ ने अपनी प्रजा को बहुत दान दक्षिणा दी | पुत्रों के नाम करण के लिए महर्षि श्री वशिष्ठ को बुलाया गया और उन्होंने महाराजा श्री दशरथ के चार पुत्रों के नामकरण संस्कार करते हुए उन्हें श्री राम (Shree Ram), श्री भरत श्री लक्ष्मण तथा श्री शत्रुघ्न नाम दिए |

भारत की प्राचीन नगरियों में से एक अयोध्या को हिंदू पौराणिक इतिहास में पवित्र सप्त पुरियों में अयोध्या मथुरा माया काशी कांची अवंतिका और द्वारका में शामिल किया गया है | अयोध्या को अथर्ववेद में ईश्वर का नगर बताया गया है और इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है त्रेता युग में भगवान श्री राम (Shree Ram) का जन्म यहीं  हुआ था |

श्री राम भगवान जी (Shree Ram Bhagwan ji ) तथा श्री सीता माता जी (Shree Sita Mata Ji) के विवाह की कथा

ब्रह्म ऋषि श्री विश्वामित्र जी प्रभु श्री राम (Shree Ram) व प्रभु श्री लक्ष्मण को लेकर मिथिला राज्य गए जहां माता श्री सीता जी का स्वयंवर हो रहा था स्वयंवर के लिए महाराजा श्री जनक जी ने एक प्रतियोगिता आयोजित की थी कि जो भी पुरुष वहां रखे श्री शिव धनुष को उठायेगा तथा उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ा देगा वह अपनी सबसे बड़ी पुत्री श्री सीता जी का विवाह उन्हीं से करेंगे | प्रतियोगिता शुरू हुई तथा वहां उपस्थित सभी राजाओं ने श्री शिव धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने का प्रयास किया परंतु प्रत्यंचा चढ़ाना तो बहुत ही दूर की बात है वह उस धनुष को थोड़ा सा हिला भी ना सके अंत में श्री विश्वामित्र जी ने प्रभु श्री राम को उस धनुष को उठाने की आज्ञा दी अपने गुरु की आज्ञा अनुसार प्रभु श्री राम ने श्री शिव धनुष को सबसे पहले प्रणाम किया और एक ही बार में धनुष को पूरी तरह उठाया और उस धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ने लगे | प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह धनुष टूट गया और इसके उपरांत प्रभु श्री राम और माता श्री सीता का विवाह हो गया |

श्री राम भगवान जी (Shree Ram Bhagwan ji ) तथा श्री सीता माता जी (Shree Sita Mata Ji) की सन्तान

पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रभु श्री राम (Shree Ram) और माता श्री सीता के दो पुत्र थे श्री लव और श्री कुश जिनका जन्म महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में हुआ था | दोनों ही पुत्र अत्यंत वीर और पराक्रमी थे |

श्री राम भगवान जी (Shree Ram Bhagwan ji ) की शिक्षा

अपने जन्म के पश्चात कुछ वर्षों तक भगवान श्री राम (Shree Ram) अपने भाइयों श्री भारत , श्री लक्ष्मण, श्री शत्रुघ्न के साथ अयोध्या के राजमहल में रहे | जब शिक्षा ग्रहण करने का समय आया तब उनका उपनयन संस्कार करके उन्हें अध्ययन के लिए गुरुकुल भेज दिया गया |

भगवान श्री राम (Shree Ram) अयोध्या के राजकुमार थे तथा भगवान श्री हरि विष्णु के अवतार थे परंतु फिर भी उन्होंने विधिवत रूप से गुरुकुल में रहकर अपनी पूरी शिक्षा ग्रहण की | उनके गुरु महर्षि वशिष्ठ थे चारों भाई गुरुकुल में आम शिष्यों की तरह ही रहते थे जब प्रभु ने पूरी शिक्षा ग्रहण कर ली तब वह पुनः अयोध्या आ गए |

प्रभु श्री राम ने गुरुकुल में रहकर कभी भी अपने तीनों भाइयों प्रभु श्री लक्ष्मण ,प्रभु श्री भारत और प्रभु श्री शत्रुघ्न को माता-पिता की याद नहीं आने दी उन्होंने हमेशा अपने भाइयों के लिए सोचा |

ब्रह्मर्षि श्री विश्वामित्र जी (Shree Vishwamitra Ji) श्री राम भगवान जी (Shree Ram Bhagwan ji ) और श्री लक्ष्मण भगवान जी (Shree Laxman Bhagwan Ji) को अपने साथ क्यों ले गए ?

ब्रह्मऋषि श्री विश्वामित्र जी का प्रभु श्री राम (Shree Ram) और प्रभु श्री लक्ष्मण को अपने साथ लेकर जाने का कारण – जब प्रभु श्री राम (Shree Ram) शिक्षा ग्रहण करने के उपरांत अयोध्या आए तब ब्रह्मऋषि श्री विश्वामित्र जी वहां पधारे उन्होंने महाराज श्री दशरथ को बताया कि उनके आश्रम पर राक्षस आए दिन आक्रमण करते रहते हैं जिससे उन्हें यज्ञ करने में अत्यंत बाधा उत्पन्न हो जाती है अतः वे भगवान श्री राम को उनके साथ ले जाना चाहते हैं | पहले तो महाराज श्री दशरथ ने कुछ आनाकानी की परंतु बाद में प्रभु श्री राम को उनके साथ जाने की आज्ञा प्रदान कर दी |

क्योंकि श्री लक्ष्मण अपने भाई श्री राम के साथ हमेशा रहते थे इसलिए वह भी ब्रह्मऋषि श्री विश्वामित्र जी के साथ गए | अपने गुरु श्री विश्वामित्र जी के आदेश पर प्रभु श्री राम ने वहां जाकर ताड़का वह सुबाहु का वध कर दिया और मारीच को दूर दक्षिण समुद्र के किनारे फेंक दिया और आश्रम के संकट को दूर किया |

प्रभु श्री राम (Shree Ram) ने सबको यह संदेश दिया कि शास्त्रों में किसी भी महिला के ऊपर अस्त्र उठाना और उसका वध धर्म के विरुद्ध है परंतु यदि गुरु ने आज्ञा दी है और उनकी आजा को ना माना जाए तो वह एक बहुत ही अधर्म रूपी कार्य होता है इस प्रकार के धर्म संकट में प्रभु ने अपने उसे धर्म को चुना जो श्रेष्ठ था उन्होंने अपने गुरु की आज्ञा का पालन किया |

श्री राम भगवान जी (Shree Ram Bhagwan ji ) ने अपनी मानव देह लीला कब और कैसे समाप्त की?

पद्म पुराण के उत्तराखंड में वर्णित कथा के अनुसार जब माता श्री सीता धरती में समा गई तो प्रभु श्री राम (Shree Ram) के सहित परिवार के सभी सदस्य शोक में डूब गए और श्री लव श्री कुश के साथ वापस अयोध्या के महल लौट आए फिर कुछ समय बाद देवी श्री सीता के शोक से तीनों माता का देहांत हो गया और वे सभी अपने पति महाराज श्री दशरथ के पास स्वर्ग लोक चली गईं| देवी श्री सीता और माताओं के चले जाने के बाद भगवान श्री राम कठोर ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए लगभग 11000 वर्षों तक अयोध्या पर राज करते रहे |

उधर ब्रह्मलोक में श्री ब्रह्मदेव को जब यह ज्ञात हुआ कि भगवान श्री विष्णु जो इस समय श्री राम (Shree Ram) अवतार के रूप में धरती लोक पर निवास कर रहे हैं उनका समय पूरा होने वाला है तो उन्होंने श्री कालदेव को बुलाया और उनसे कहा कि हे कालदेव तुम्हें तत्काल धरती लोक जाकर प्रभु श्री विष्णु को जो इस समय श्री रामावतार के रूप में अयोध्या नगरी में निवास कर रहे हैं उन्हें यह संदेश देना होगा की धरती लोक पर उनका समय पूर्ण होने वाला है और अब उन्हें अपने धाम अर्थात बैकुंठ धाम वापस आना होगा | श्री ब्रह्मा जी की बातें सुनकर श्री कालदेव बोले कि – हे परमपिता आपकी आज्ञा का पालन होगा मैं इसी समय धरती लोक जाकर प्रभु श्री हरि को यह संदेश कह देता हूं फिर श्री कालदेव जी ने श्री ब्रह्मा जी को प्रणाम किया और धरती लोक के लिए निकल पड़े धरती लोक पहुंच कर श्री कालदेव ने एक वृद्ध संत का रूप धर लिया फिर लोगों से पूछते हुए वह अयोध्या महल के द्वार पर पहुंच गए और सैनिकों से कहा कि मुझे अयोध्या नरेश श्री राम चंद्र से मिलना है | फिर सैनिकों ने जब यह बात प्रभु श्री राम जी को जाकर बताई तो प्रभु श्री राम बोले की जो और उन्हें सम्मान के साथ मेरे पास लेकर आओ | प्रभु की आज्ञा पाते ही सैनिक द्वार पर खड़े उस वृद्ध संत को उनके पास लेकर आ गए | उन्हे देख प्रभु श्री राम ने उन्हें प्रणाम किया और फिर आसन पर बिठाया |

जिस कक्ष में यह सब हो रहा था उसे समय वहां प्रभु श्री लक्ष्मण जी भी उपस्थित थे | प्रभु श्री रामचंद्र जी ने जब उस वृद्ध संत से पूछा की हे ब्राह्मण कृपया कर बताइए कि मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं | यह सुन संत रूपी कालदेव बोले कि – हे श्री राम हमारे और आपकी बातें अकेले में ही संभव हैं इसीलिए अपने भाई श्री लक्ष्मण को यहां से जाने की आज्ञा दें साथ ही यह वचन भी दीजिए कि हम दोनों के बीच वार्तालाप को जो कोई भी सुनेगा या फिर बाधा डालेगा उसे आप मृत्यु दंड देंगे | संत की बातें सुनकर प्रभु बोले ऐसा ही होगा और फिर उन्होंने श्री लक्ष्मण को उसे कक्ष से बाहर जाने को कहा साथ ही यह भी आदेश दिया कि वह कक्ष के दरवाजे पर पहरा दें | इसके बाद श्री लक्ष्मण जी अपने बड़े भाई की आज्ञा का पालन करते हुए उस कक्ष के बाहर निकल आए और कक्ष के दरवाजे को बंद कर पहरा देने लगे |उधर श्री लक्ष्मण जी के कक्ष से बाहर निकलते ही वह वृद्ध संत अपने वास्तविक रूप में आ गए और प्रभु श्री राम को प्रणाम करते हुए बोले – हे तीनों लोकों के स्वामी सर्वप्रथम मेरा प्रणाम स्वीकार करें ,आपके पास मुझे परमपिता श्री ब्रह्मा जी ने यह कहने के लिए भेजा है कि आपने जिस कार्य हेतु मनुष्य रूप में अवतार लिया था वह कार्य पूर्ण हो चुका है और इस अवतार में आपने अपने लिए जितनी आयु निश्चित की थी वह भी पूरी हो गई है अतः अब वह समय आ गया है कि आप अपने परमधाम लौट जाएं | आपका ऐसा करने से सारे देवता गण भी निश्चिंत हो जाएंगे | श्री काल देव की बातें सुनकर प्रभु श्री राम मुस्कुराते हुए बोले – हे श्री महाकाल मैं जानता हूं और मेरी ही इच्छा से आप यहां पधारे हैं, मैं स्वयं ही अपने बैकुंठ धाम लौटना चाहूंगा आप यह संदेश श्री ब्रह्मा जी तक पहुंचा सकते हैं |

इधर जब प्रभु श्री राम (Shree Ram) और श्री कालदेव के बीच यह सारी बातें हो रही थीं उसी समय महर्षि दुर्वासा का कक्ष के द्वार पर आगमन हुआ | महर्षि दुर्वासा को आया देख श्री लक्ष्मण जी बोले – हे महर्षि मैं श्री दशरथ पुत्र लक्ष्मण हूं बताइए मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं, तब महर्षि दुर्वासा बोले – हे श्री दशरथ नंदन तुम्हारा कल्याण हो मुझे अयोध्या नरेश श्री रामचंद्र जी से तत्काल ही मिलना है ,उन्हें जाकर इस बात की सूचना दो | महर्षि दुर्वासा की बातें सुनकर श्री लक्ष्मण जी बोले – हे भगवान इस क्षण आपका अयोध्या नरेश से मिलना असंभव है, यदि मेरे लायक कोई सेवा हो तो मुझे आज्ञा दें मैं तत्काल ही आपका कार्य पूरा कर दूंगा |श्री लक्ष्मण जी की बातें सुनकर महर्षि दुर्वासा क्रोधित हो गए और बोले कि मैंने कहा ना कि मुझे इसी समय श्री रामचंद्र जी से मिलना है मुझे उनसे ही काम है इसीलिए तुम बस इतनी सेवा करो कि तत्काल हमारे आने की सूचना श्री रामचंद्र जी को दे दो | परंतु इस बार भी श्री लक्ष्मण जी ने क्षमा मांगते हुए कहा कि – हे ब्राह्मण इस समय श्री रघुनाथ जी एक आवश्यक कार्य में व्यस्त हैं इसीलिए आपको कुछ देर प्रतीक्षा करनी होगी ,यह सुनकर ऋषि दुर्वासा का क्रोध और बढ़ गया और वे गरजते हुए बोले तुम मुझे प्रतीक्षा करने के लिए कहते हो क्या तुम मेरी शक्ति नहीं जानते अगर मैं क्रोध में श्राप दे दूं तो रघुकुल सहित पूरी अयोध्या तत्काल जलकर भस्म हो जाएगी | यह सुनकर श्री लक्ष्मण घबरा गए और दोनों हाथ जोड़ते हुए बोले नहीं मुनिवर ऐसा मत कीजिए और फिर मन ही मन सोचने लगे कि अगर केवल मेरी मृत्यु से अयोध्या बच सकती है तो यही सही | इसके बाद श्री लक्ष्मण जी बोले मुनिवर क्रोधित ना हो मैं आपकी शक्ति को भली भांति जानता हूं ,मैं तत्काल श्री रघुनाथ जी को आपके आने की सूचना देता हूं | इतना कहकर श्री लक्ष्मण जी श्री राम के कक्ष में चले गए और प्रभु श्री राम से बोले महाराज द्वार पर महर्षि दुर्वासा पधारे हैं और इसी क्षण आपका दर्शन करना चाहते हैं ,इधर श्री लक्ष्मण जी को कक्ष में आया देख श्री कालदेव जी उसी समय अंतर ध्यान हो गए उसके बाद प्रभु श्री राम श्री लक्ष्मण जी से बोले लक्ष्मण तुमने यह क्या कर दिया, तुम मुझे सबसे प्रिय हो लेकिन अब मुझे अपने वचनों का मान रखने के लिए तुम्हें मृत्यु दंड देना होगा | अपने बड़े भाई श्री राम को चिंतित देख श्री लक्ष्मण बोले भैया मैं विवश था क्योंकि महर्षि दुर्वासा अपनी श्राप से अयोध्या को भस्म करना चाहते थे इसीलिए मैंने निश्चय किया कि अगर मेरी मृत्यु से अयोध्या बच सकती है तो वह सही है इसीलिए मैंने आपके आज्ञा का उल्लंघन किया जिसके लिए भैया मैं क्षमा चाहता हूं | फिर प्रभु श्री राम (Shree Ram) श्री लक्ष्मण से बोले – लक्ष्मण जाकर महर्षि दुर्वासा को आदर सहित अंदर लेकर आओ फिर महर्षि दुर्वासा और प्रभु श्री राम के बीच कुछ देर बातें हुई और जब महर्षि दुर्वासा राजमहल से चले गए तब श्री राम ने अपने सभासदों को बुलाया और अपनी दुविधा के बारे में बताया, फिर कुछ क्षण विचार करने के बाद सभासदों ने कहा की महाराज आप राजकुमार श्री लक्ष्मण का परित्याग कर दें अथवा देश से निकाल दें क्योंकि विद्वानों का मानना है की परित्याग करना या देश से निकाल देना मृत्युदंड के समान ही है | तब प्रभु श्री राम (Shree Ram) ने भारी मन से श्री लक्ष्मण को देश से निकल जाने को कहा |

उधर श्री लक्ष्मण को देश निकाला देने की बात पूरे अयोध्या में फैल गई | अयोध्यावासी कई तरह की बातें करने लगे किंतु श्री लक्ष्मण जी ने अपने भाई के वचनों का मन रखने के लिए राज्य से बाहर जाने की बजाय श्री सरयू नदी में जल समाधि ले ली और अपने वास्तविक रूप अर्थात श्री शेषनाग के रूप में आकर परमधाम को चले गए | उधर जब इस बात का पता प्रभु श्री राम को चला तो वह दुखी रहने लगे और मन ही मन सोचने लगे की पहले मेरी प्रिय श्री सीता मुझे छोड़ कर चली गई और अब मेरा सबसे प्रिय भाई भी मुझे छोड़कर चला गया इसीलिए मुझे भी अब अपने धाम को लौट जाना चाहिए | उसके बाद उन्होंने अपने पुत्र वीरवर श्री कुश को कुशावती और श्री लव को द्वारावती राज्य का राजा बना दिया और स्वयं के जाने की बात लोगों को बताई |उस समय भगवान श्री राम के अभिप्राय को जानकर श्री विभीषण ,श्री सुग्रीव ,श्री जामवंत और प्रभु श्री हनुमान जी सहित सभी वानर उनके पास अयोध्या आ गए और प्रभु श्री राम के साथ बैकुंठ धाम जाने की जिद करने लगे तब प्रभु श्री राम श्री हनुमान जी से बोले – हे हनुमान तुम मेरे साथ बैकुंठ नहीं जा सकते क्योंकि तुम्हें तो सृष्टि के अंत तक मेरे नाम का महत्व लोगों को बताना है और जामवंत जी आपको भी द्वापर युग तक इस धरती पर रहना होगा और जब मैं द्वापर में श्री कृष्ण के नाम से अवतार लूंगा और तुमसे युद्ध करूंगा तभी तुम्हें मुक्ति मिल सकती है | उधर यह बात जब अयोध्या वासियों को पता चली तो वे अपनी आंखों में आंसू लिए प्रभु श्री राम से उन्हे अपने साथ ले चलने की विनती करने लगे | भक्तों के मन में अपने लिए इतना प्रेम देखकर प्रभु श्री राम की आंखों में भी आंसू भर आए और उन्होंने सभी की विनती स्वीकार कर ली और फिर अगली सुबह प्रभु श्री राम अयोध्या के नागरिकों के साथ श्री सरयू नदी की ओर चल पड़े | श्री सरयू नदी के तट पर पहुंच कर प्रभु श्री राम (Shree Ram) ने जल के अंदर देह त्याग दिया और फिर श्री विष्णु रूप में प्रकट होकर श्री सरयू तट पर खड़े नागरिकों को आशिर्वाद देकर अंतर ध्यान हो गए |

Jai Shree Ram

 

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