भगवान श्री राम (Shree Ram) को 14 वर्षों का कठोर वनवास मिला था जिसके अनुसार उन्हें केवल वनों में ही रहना था तथा किसी नगर में उन्हें जाना प्रतिबंधित था | प्रभु श्री राम (Shree Ram) ने अपने वचन का भली भांति पालन किया तथा 14 वर्षों तक अपनी पत्नी श्री सीता तथा अपने भाई श्री लक्ष्मण के साथ वनवासियों की भांति प्रभु ने जंगल में ही जीवन व्यतीत किया | इस दौरान वे भारत के उत्तरी तट से लेकर दक्षिणी तट तक गए | वे प्रमुख स्थान जहां प्रभु श्री राम (Shree Ram) के चरण इन 14 वर्षों में पड़े वे इस प्रकार हैं –
श्री राम (Shree Ram) का निवास तमसा नदी के तट पर –
सबसे पहले अयोध्या से विदा लेने के पश्चात प्रभु श्री राम (Shree Ram) रथ में बैठकर आर्यसुमंत के साथ तमसा नदी के तट पर पहुंचे | वहां तक अयोध्या की प्रजा भी उनके साथ आई जो उन्हें अकेले जाने देने को तैयार नहीं थी तथा उनके साथ चलने की जिद लिए बैठी थी इसलिए उसे रात प्रभु श्री राम (Shree Ram) ने अपना डेरा तमसा नदी के तट पर ही डाला तथा सूर्योदय से पहले अयोध्या की प्रजा को बिना जगाए प्रभु श्री राम (Shree Ram) अपनी पत्नी श्री सीता और भाई श्री लक्ष्मण तथा अपने मंत्री सुमंत के साथ कौशल देश की नगरी से बाहर निकल गए |
श्री राम (Shree Ram) का निवास श्रृंगवेरपुर नगरी –
इसके पश्चात वे अपने मित्र निषाद राज की नगरी श्रृंगवेरपुर के वनों में पहुंचे तथा वही एक दिन के लिए विश्राम किया |उनके मित्र गुह ने उनका बहुत आदर सत्कार किया | अगले दिन उन्होंने सुमंत को रथ लेकर अयोध्या लौट जाने का आदेश दिया तथा वहां से भगवान ने पैदल ही यात्रा करने का निर्णय लिया | फिर उन्होंने केवट के सहारे श्री गंगा नदी को पार किया तथा उसे पर कुरई गांव उतारे |
श्री राम (Shree Ram) का निवास प्रयाग –
श्री गंगा नदी पार करके प्रभु श्री राम (Shree Ram) माता श्री सीता श्री लक्ष्मण और निषाद राज के साथ प्रयाग चले गए | वहां उन्होंने त्रिवेणी की सुंदरता को देखा तथा आगे मुनि भारद्वाज के आश्रम में पहुंचे यहां उन्होंने मुनि भारद्वाज से रहने के लिए उत्तम स्थान पूछा जिन्होंने यमुना पार चित्रकूट को उत्तम बताया |
श्री राम (Shree Ram) का निवास चित्रकूट –
इसके पश्चात श्री राम (Shree Ram) ने अपने मित्र निषाद राज गुह को भी वहां से वापस अपनी नगरी लौट जाने का आदेश दे दिया तथा माता श्री सीता और श्री लक्ष्मण के साथ यमुना पार करके चित्रकूट चले गए | चित्रकूट पहुंचते ही उन्होंने श्री वाल्मीकि आश्रम में उनसे भेंट की तथा श्री गंगा की धारा मंदाकिनी नदी के किनारे अपनी झोपड़ी बनाकर वहीं रहने लगे यहीं पर उनका श्री भरत से मिलन हुआ था | जब श्री भरत अयोध्या के राज परिवार सभी गुरुओं मंत्रियों के साथ प्रभु श्री राम को वापस अयोध्या लेने पहुंचे थे लेकिन प्रभु श्री राम ने वापस लौटने से मना कर दिया था |इसके कुछ समय पश्चात प्रभु श्री राम चित्रकूट भी छोड़कर चले गए थे क्योंकि उन्हें डर था कि अब अयोध्या की प्रजा यहां निरंतर आती रहेगी जिससे ऋषि मुनियों के ध्यान में बाधा पहुंचेगी |
श्री राम (Shree Ram) का निवास दंडकारण्य –
दंडकारण्य के वनों में पहुंचकर प्रभु श्री राम (Shree Ram) ने ऋषि श्री अत्री तथा माता श्री अनुसुइया से भेंट की माता श्री अनसूया से माता श्री सीता को कई बहुमूल्य रत्न आभूषण तथा वस्त्र प्राप्त हुए ऋषि श्री अत्री से ज्ञान पाकर वे आगे बढ़े इसके पश्चात उनके विराध राक्षस से सामना हुआ जिसका उन्होंने वध किया तब वह श्री सरभंग ऋषि से मिले जिनकी मृत्यु समीप ही थी | प्रभु श्री राम (Shree Ram) से भेंट के पश्चात ऋषि श्री सरभंग ने अपने प्राण त्याग दिए तथा प्रभु धाम में चले गए | इसके पश्चात भगवान श्री राम दंडकारण्य के वनों में घूम-घूम कर राक्षसों का अंत करने लगे | प्रभु श्री राम ने अपने वनवास काल का ज्यादातर दंडकारण्य के वनों में ही बिताया था जब दंडकारण्य के वनों में प्रभु श्री राम ने अपने वनवास काल के 10 से 12 वर्ष बिता दिए तब उनकी भेंट महान ऋषि श्री अगस्त्य मुनि से हुई श्री अगस्त्य मुनि ने प्रभु श्री राम को उनका अगला पड़ाव दक्षिण में गोदावरी नदी के किनारे पंचवटी में बनाने को कहा | श्री अगस्त्य मुनि की आज्ञा पाकर प्रभु श्री राम पंचवटी के लिए निकल गए |
श्री राम (Shree Ram) का निवास पंचवटी –
अब प्रभु श्री राम (Shree Ram) माता श्री सीता और श्री लक्ष्मण गोदावरी नदी के किनारे पंचवटी में अपनी कुटिया बनाकर रहने लगे जहां उनकी भेंट श्री जटायु से हुई श्री जटायु उनकी रक्षा में उनकी कुटिया के बाहर प्रहरी के तौर पर तैनात रहते थे | इसी स्थल पर सूर्पनखा ने श्री राम को देखा था तथा माता श्री सीता पर आक्रमण करने का प्रयास किया तब श्री लक्ष्मण ने उसकी नाक काट दी थी तब उनका रावण के भाई खर और दूषण से युद्ध हुआ व प्रभु श्री राम ने उनका राजसी सेना समेत वध कर डाला उसके कुछ समय पश्चात लंकापति रावण ने अपने मामा मरीच की सहायता से माता श्री सीता का अपहरण कर लिया | रावण ने उनकी सुरक्षा में तैनात श्री जटायु का भी वध कर डाला भगवान श्री राम तथा श्री लक्ष्मण माता सीता को ढूंढते हुए वहां से निकल गए |
श्री राम (Shree Ram) का निवास – श्री मतंग ऋषि का आश्रम –
श्री माता सीता जी की खोज करते हुए सर्वतीर्थ में प्रभु श्री राम (Shree Ram) श्री जटायु से मिले जो मरणासन्न स्थिति में थे | उन्होंने श्री राम को बताया कि रावण माता श्री सीता को बिठाकर दक्षिण दिशा में ले गया है इसके बाद उन्होंने श्री जटायु का अंतिम संस्कार किया तथा प्रभु आगे बढ़ गए आगे चलते ही उनकी भेंट कवंध राक्षस से हुई जिसका उन्होंने वध किया इसके पश्चात उसने माता शबरी की कुटिया का पता दिया | उसके दिए पते के अनुसार भगवान श्री रामचंद्र श्री मतंग ऋषि के आश्रम में माता श्री शबरी की कुटिया में पहुंचे वहां उन्होंने माता श्री शबरी के दिए हुए जूठे बेर खाये तथा माता श्री शबरी ने उन्हें किष्किंधा के राजा बालि के छोटे भाई श्री सुग्रीव का पता बताया |
श्री राम (Shree Ram) का निवास – ऋषिमुख पर्वत –
माता श्री शबरी से सुग्रीव का पता प्रकार भगवान श्री राम अपने भाई लक्ष्मण के साथ ऋषिमुख पर्वत पहुंचे जहां उनकी भेंट श्री हनुमान श्री सुग्रीव श्री जामवंत तथा उनके साथियों से हुई श्री सुग्रीव से उनकी मित्रता हुई तथा दोनों ने एक दूसरे को वचन दिया जिसके अनुसार भगवान श्री राम (Shree Ram) सुग्रीव को उनका खोया हुआ राज्य किष्किंधा लौटने में सहायता करेंगे तथा श्री सुग्रीव माता श्री सीता की खोज में प्रभु श्री राम की सहायता करेंगे |
श्री राम (Shree Ram) का निवास – प्रसवन गिरी पर्वत –
जब भगवान श्री राम (Shree Ram) ने बालि का वध कर दिया तथा श्री सुग्रीव को किष्किंधा का नया राजा नियुक्त कर दिया तब श्री सुग्रीव ने माता श्री सीता की खोज शुरू करने के लिए प्रभु श्री राम (Shree Ram) से आज्ञा मांगी लेकिन प्रभु श्री राम ने मन कर दिया क्योंकि उस समय तक वर्षा ऋतु शुरू हो चुकी थी इसमें नदी नाले उफान पर थे इसलिए प्रभु श्री राम ने माता श्री सीता की खोज 4 मास के पश्चात शुरू करना उचित बताया | इन चार मास प्रभु श्री राम ने किष्किंधा के निकट प्रसवन गिरी पर्वत पर श्री लक्ष्मण के साथ निवास किया |
श्री राम (Shree Ram) का निवास – धनुषकोड़ी श्री रामेश्वरम –
4 मास के पश्चात जब माता श्री सीता की खोज आरंभ हुई तब श्री हनुमान भगवान जी ने लंका में उन्हें ढूंढ निकाला प्रभु श्री राम (Shree Ram) को इसकी सूचना दी गई तथा वे संपूर्ण वानर सेना के साथ श्री रामेश्वरम में पहुंच गए | इस स्थल का नाम भी उन्होंने स्वयं दिया क्योंकि यहां उन्होंने श्री शिवलिंग की स्थापना की थी जिसे उन्होंने श्री राम का ईश्वर बताया इसलिए इस स्थल का नाम श्री रामेश्वरम पड़ा वहां से उन्होंने वानर सेवा की सहायता से समुद्र पर 100 योजन का पुल बनाया जो भारत के धनुषकोड़ी से शुरू होकर श्रीलंका के मन्नार द्वीप को जोड़ता था इसके पश्चात श्री राम (Shree Ram) सेतु की सहायता से भगवान श्री राम वानर सेना के साथ लंका चले गए |
श्री राम (Shree Ram) का निवास – नुवारा एलिया पर्वत श्रृंखला –
रावण का महल लंका के बीच में स्थित था तथा ये गुफाएं वहां से लगभग 90 किलोमीटर दूर थीं | लंका पहुंचकर प्रभु श्री राम (Shree Ram) ने अपना डेरा यहीं डाला था तथा रावण के साथ भीषण युद्ध किया अंत में उन्होंने रावण के सभी भाई बंधुओं योद्धाओं तथा सेनापति समेत उसका विनाश कर दिया तथा माता श्री सीता को उसके चंगुल से मुक्त करवा लिया था | उन्होंने लंका का नया राजा रावण के छोटे भाई विभीषण को नियुक्त किया तथा पुष्पक विमान में बैठकर अयोध्या के लिए निकल पड़े बीच में वे भारद्वाज मुनि के आश्रम तथा अपने मित्र निषाद राज से भेंट के लिए भी रुके थे |