Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen ||श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथायें || कथा संख्या – 51,52,53

श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाओं (Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathaon) में कथा संख्या 1 से लेकर 50 पहले ही प्रकाशित हो चुकी हैं | कथा संख्या 51,52,53इस प्रकार हैं –

श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाएं ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen) || कथा संख्या -51

श्री बाबाजी कहीं नहीं गये है ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen)

वृन्दावन में बाबा जी का मन्दिर नहीं बना था – तब केवल एक चबूतरानूमा समाधि- स्थल बना था कलश के उपर । वही सुबह शाम आरती -पूजन होता था । हेमदा की पत्नी अपनी और से स्वंय अलग से आरती- पूजन करती थीं।
एक दिन इस आरती और पूजन के मध्य उन्होंने एकाएक श्री नीम करोली बाबा जी को सशरीर चबूतरे के उपर खड़े देखा । श्री नीम करोली बाबा जी को देखते ही वे भय से कांपते हुए और भी तन्मय हो उठीं तथा अपने भाव में उन्होंने रोली उंगली में लपेट समाधी चबूतरे पर राम-राम लिख दिया । श्री नीम करोली बाबा जी अदृश्य हो गये तो उन्होंने आकर श्री मां को सब कुछ बताया ।अपने भक्त के इस भाव को कि बाबा जी कहीं नहीं गये हैं ,स्वंय प्रकट होकर महाराजजी ने स्वंय इस बात की पुष्टि कर दी ।और फिर श्री नीम करोली बाबाजी ने एक खेल और रच दिया कि वह राम-राम का लेखन कभी नहीं मिटा , तभी हटा जब मंदिर के निर्माण के बीच में चबूतरा हट गया ।

श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाएं ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen) || कथा संख्या -52

जल संकट ख़त्म ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen)

मैनपुरी के वकील रामरतन जी श्री बाबा जी के परम भक्तों में से थे ।उनकी पुत्री शान्ति जब विवाह योग्य हुई तो महाराज ने उसका विवाह वीरेन्द्र वर्मा जी से करा दिया । शान्ति जी मंगली थी , उनका विवाह मंगली से होना चाहिये था । वीरेन्द्र जी मंगली नही थे , विवाह बाबा ने कराया था । वीरेन्द्र जी की पत्री में जल में डूबने से मृत्यु का योग था । इसलिये उन्हें कहीं नदी में स्नान नहीं करने दिया जाता था । दोनों परिवार चिन्तित रहते थे ।

श्री बाबा जी अंतर्यामी थे । कुछ समय बाद श्री बाबा आए और वीरेन्द्र जी और उनकी बुआ को नदी स्नान हेतु उठा कर ले गये । वीरेन्द्र पहले तो किनारे पर ही खड़े रहे । बाद में श्री नीम करोली बाबा जी के कहने पर श्री वीरेन्द्र जी किनारे पर ही स्नान करने लगे । तभी श्री नीम करोली बाबा जी ने पीछे से आकर वीरेन्द्र जी को गहरे पानी में धक्का दे दिया और वे तैरना ही नहीं जानते थे । वीरेन्द्र जी पानी में बह चले , वहां चारों तरफ हाहाकार मच गया । तब श्री नीम करोली बाबा जी स्वंय नदी में कूद पड़े । और काफी देर बाद वीरेन्द्र जी को पानी से बाहर ले आये । उनके पेट से पानी निकाल कर उन्हें पुनः सचेत कर स्वस्थ कर दिया । और उनके परिवार वालों से बोले,” लो इसका जल संकट समाप्त हो गया हमेशा के लिये । अब इसे कुछ नहीं होगा ।”

श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाएं ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen) || कथा संख्या -53

ऐसे हैं श्री बाबाजी ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen)

श्रीमती रमा जोशी जी के अनुसार ,” वे एक बार वृन्दावन में श्री सिद्धि मां के साथ बैठी थीं । तभी वहां एक वृद्ध महिला आ गई श्री सिद्धि मां के दर्शन करने के लिए। श्री सिद्धि मां ने उनसे कहा इससे पूछ श्री बाबा जी के बारे मे । वह वृद्ध महिला अकबरपुर की ही निकली । वह महिला बोली ,” का बताऊं मैं बाबा जी की ? वे हमारे मौसा लगे थे। हमारे सुख की दुःख की सुन लेंवे थे । आगे उन वृद्ध महिला ने यह बताया कि एक दिन की बात है कि हम बहुत दूर कुआं से पानी लाय रही थी। सो बाबाजी हमसे पूछ बैठे ,” का करेगी पानी को ?”तब हमने श्री नीम करोली बाबाजी से कही उपर छत पै डारूँगी , छत को ठंडा करिबे को और फिर वापै बिछौना डारूँगी सोइबे को । तब श्री महाराजजी बोल पड़े , ” अरे का करैगी पानी को डारिके -मेघ अभी बरस जावैगो ।” मैं बोली कहाँ को बरसेगो मेघ – आसमान तो बिल्कुल ही सफा है और धूप चमक रही हैगी । श्री नीम करोली बाबाजी उससे बोले , ” तु तो बिल्कुल बावरी है – हमारी नाँय मानेगी और श्री नीम करोली बाबाजी वहां से उठकर चले गये । आगे वह महिला बतातीं हैं कि तब हमने छत पर खूब पानी डारो और बिछौना बिछायो और हम नीचे कू चली आई। थोड़ी देर में वो आँधी चली , और वो मेघ बरसों कि कहीं नाँ जाये । दौड़ी दौड़ी गयी बिछौना हटायोऔर नीचे आयी । ऐसे हते बाबा जी सब कुछ जानने वारे ।
मैंने पूछा और कुछ ? तो वे बोली ,” और का बताँऊ दिसा- मैदान से आये रही थी लौटा पकड़े । हाथ भी नाँय धोऔ हतो । कई दिन से हाथ में पीर हती- ठीक से उठतो भी नाँय रहो । मिल गये दिवार पर बैठे । बोले, ” का बात है दुःखी दिख रई है । हमने कहीं बहुत पीर है हाथ में कई दिना से । बोले ,” ईहाँ आ । मैं पास चली गयी – तो मैरो हाथ लै के उल्टी हथेली पे चार पाँच दफे चूम के छौड दओ । बस ! हम तो दर्द से तबै छुट्टी पाये गये और आज तक कोई तकलीफ नाँय भई हाथन मे ।”
क्या महत्व था उस साधारण बुढ़िया का श्री बाबा जी की इतनी बड़ी दृष्टि मे ? कोई विशेष भक्त नही – केवल एक नगण्य प्राणि-मात्र । पर बाबा जी के सम्पर्क मे आ गई और दया पा गई उनकी -“सब मम प्रिय सब मम उपजाये !”

 

 

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