श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाओं (Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathaon) में कथा संख्या 1 से लेकर 61 पहले ही प्रकाशित हो चुकी हैं | कथा संख्या 62,63,64 इस प्रकार हैं –
श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाएं ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen) || कथा संख्या -62
श्री नीम करोली बाबा जी प्रयाग में कुम्भ के मेले में घूम रहे थे । तभी महाराजजी एक साधू की कुटी के पास रूक गये और बाबाजी साधू से कहने लगे- ” मुझे बहुत भूख लगी है , मुझे कुछ खाने को दो ।” साधू-महात्मा ने भण्डारे के लिए बनाई गई सामग्री में से श्री नीम करोली बाबा जी को कुछ देना चाहा । परन्तु महाराजजी तुरन्त बोल उठे , – नही, वो ले के आ जो तूने भगवानजी के लिये रखा है ।”दरअसल साधू जी भगवान के भोग के लिए तर माल बनवाते थे और उसे खुद ही चुपके से खा लेते थे और बाकी सभी चेलों को सिर्फ साधारण भोजन ही मिलता था । पर महाराजजी से क्या ही छिपा था ।
साधू बाबा जी की बात सुनकर घबरा गया और बोला ,” वह भोग तो भगवान के लिये है । तब बाबा जी बोले , ” अगर भगवान के लिये है तो देता क्यों नही ?”
हारकर साधू ने वह भोजन महाराजजी को ही पवा दिया ।
इस लीला से से स्पष्ट हो गया कि अपनी उक्ति ,” भगवान के लिये देता क्यों नही , से बाबा जी ने पूर्ण रूप से खुलासा कर दिया कि वे भगवत – रूप स्वरूप हैं पर हमारी बुद्धि ने कभी उनका ईश्वर स्वरूप नहीं पहचाना | और साधू का भेद खोलकर बाबा ने ये भी समझा दिया कि उनसे कुछ नहीं छिपा , सब जानते हैं वे , क्योंकि साक्षात नारायण हैं मेरे बाबाजी ।
श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाएं ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen) || कथा संख्या -63
जय गुरूदेव , जय श्री बाबाजी
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
बाबाजी हम आपके शरण हैं हमारी रक्षा करें –
जब श्री महाराजजी का शरीर भस्मीभूत हो रहा था उसी समय श्री जगमोहन शर्माजी जो कि आगरा के वासी हैं उन्होंने देखा कि महाराजजी , श्री राम भगवानजी तथा श्री लक्ष्मण भगवानजी के मध्य एक ऊंचे सिहांसन पर विराजमान हैं और श्री हनुमान भगवानजी जी उन सबकी परिक्रमा कर रहे हैं | महाराजजी अति प्रसन्न मुद्रा में नीचे की और देख रहे है | शर्मा जी आनंदीभूत होकर ये दृश्य काफ़ी देर तक देखते रहे और जब चैतन्य हुए तो बाबा से पूछ बैठे ,” महाराज | अब पुन: दर्शन कब होंगे आपके ?”
” श्री महाराजजी ने श्री शर्मा जी से बोला जब तेरी उम्र 52 वर्ष हो जायेगी|” श्री बाबाजी का यह उत्तर सुनकर श्री जगमोहन शर्मा जी अत्यन्त ही आश्चर्य में डूब गये और श्री शर्मा जी उनको ये अटूट विश्वास हो गया कि श्री नीम करोली बाबाजी अमर हैं |”
इस आश्चर्यजनक घटना के कई वर्षों बाद की बात है जगमोहन शर्मा जी पिथौरागढ़ में ड्यूटी पर थे | एक दिन जब वे दौरे पर थे तो वे एक निर्जन स्थान पर कालमूनि शिला पर जा कर बैठ गए | वे श्री बाबा जी का स्मरण कर रहे थे तभी एक सन्त वहां आ गये | पहले तो श्री जगमोहन शर्मा जी पहचान न सके पर फिर वे उनकी कई बातों से उन्हे पहचान गये | और उन संत ने शर्मा जी को ये भी इंगित कर दिया कि अब उनकी उम्र 52 वर्ष की हो गयी है | तभी उन्हें श्री नीम करोली बाबा जी की 11 सितम्बर 1973 में कही हुई वाणी याद आ गई कि महाराजजी ने 52 वर्ष की उम्र में उन्हें दर्शन देने की बात कही थी | काफी देर तक उनसे बात करके रहे श्री बाबाजी भ्रमित करने की भी कोशिश की और अन्त में कुछ दूर जाकर अन्तर्ध्यान हो गये | श्री बाबाजी ने अपना वादा निभाया | हर कही बात बाबाजी पूरी करते है चाहे समय लग जाये , पर समय आने पर पूरी करते है |
श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाएं ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen) || कथा संख्या -65
तांगे वाले के रूप में ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen)
१९८२ में एक सिक्ख सैनिक अधिकारी सपत्नीक रानीखेत जा रहे थे । रास्ते में दर्शनों हेतू कैची आश्रम आया । आप वहां रूके । आप वहां की स्वच्छता , शान्ति को देखकर पूछने लगे कि यहां की व्यवस्था कौन करता है ?” किसी ने उन्हें यह बताया कि इसका भार श्री सिद्धि मां पर है । उन्होंने श्री सिद्धि माताजी के दर्शनों की ईच्छा जाहिर की । श्री सिद्धि मां से बातें करते हुए उनकी दृष्टि दीवारों पर टंगे श्री नीम करोली बाबा जी के छाया चित्रों पर पड़ी । उन्होंने श्री सिद्धि मां से पूछा ,” ये किसकी फोटो है ?”
तब उन्हें श्री सिद्धि माताजी ने बताया कि ये बाबा श्री नीब नीब करौरी महाराजजी हैं जिन्होंने १९७३ में महासमाधि ले ली , तो वे बेलिहाज बोल उठे , ” आप कैसी बात कर रही हैं। मैं जालन्धर से आ रहा हूं , वहां मैंने इन्हें तांगा चलाते देखा । तब मेरा ध्यान इनकी और विशेष रूप से आकृष्ट हुआ था । ”
वे ये सब कहां जानते थे कि ये सब महाराजजी की लीला थी , उन्हें तांगे वाले के रूप में दर्शन देकर अपने आश्रम भेजने की ।