Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen ||श्री नीम करोली बाबाजी के चमत्कार की कथायें || कथा संख्या – 23

श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाओं (Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathaon) में कथा संख्या 1 से लेकर 22 पहले ही प्रकाशित हो चुकी हैं | कथा संख्या 23 इस प्रकार हैं –

श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाएं ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen) || कथा संख्या -23

सन 1968 में सिंह साहब की पत्नी को दस्तों की शिकायत हुई उसने धीरे-धीरे संग्रहणी का रूप ले लिया | इस रोग के कई महीनों के भुगतान से उनका शरीर केवल अस्थियों का ढांचा रह गया |उनका वजन एक बच्चे के वजन के बराबर हो चला | जो इलाज चल रहा था उससे कुछ लाभ न देख कर घर वालों की राय से सिंह साहब ने इलाज बदल दिया | अब डॉक्टर ए.सी.दास का इलाज आरंभ हुआ | वह एंटीबायोटिक औषधियों से स्थिति को कुछ नियंत्रण में ला सके और उनको कुछ हल्का शक्ति वर्धक तरल भोजन भी दिया जाने लगा |एक दिन सवेरे 10:30 बजे जब उनको पलंग में बिठाकर भोजन कराया जा रहा था , एकाएक उनके होंठ और हाथ कांपने लगे, भोजन की प्लेट उनके हाथ से गिर गई और वह स्वयं लुढ़क कर बिस्तर में ही गिर पड़ीं | देखते-देखते उनकी आंखें पथरा गईं और उनके मुंह में एक चम्मच दवा भी ना जा सकी | सारा परिवार शोकमग्न हो गया और आगे क्या करना है कोई सोच भी ना सका |

इधर जब उनका जीवन समाप्त हो रहा था ,सामने खिड़की के पास रखी हुई महाराज जी (Maharaj Ji) की फोटो 4 फीट की ऊंचाई से जैसे किसी आंधी के झोंके से हो जमीन पर धड़ाम से गिर पड़ी, जबकि बाहर हवा चल नहीं रही थी | उसका इस प्रकार गिरना पत्नी की मृत्यु का द्योतक था |सिंह साहब ने समझा कि फोटो का शीशा चूर-चूर हो गया होगा, पर उसमें दरार तक नहीं आई थी लगभग 40 मिनट तक घर में शोक छाया रहा | एकाएक लाश ने आंखें खोल दीं और उनकी पत्नी चकित दृष्टि से इधर-उधर देखकर ‘ ऐं ‘ बोल उठी |

उस समय महाराज जी (Maharaj Ji) की कैंची आश्रम में श्री आर . सी. सोनी डायरेक्टर जनरल वन (केंद्रीय सरकार )की पत्नी से वार्ता कर रहे थे | वह एकाएक बोले,” केहर सिंह की घरवाली मर गई | वह हमारा भक्त है , हम उसे मरने नहीं देंगे |” श्रीमती सोनी इन विरोधी बातों से, मर गई मरने नहीं देंगे- कोई आशय नहीं निकल सकीं वह यह नहीं सोच पायीं की बाबाजी में लाश को जला देने की शक्ति भी है | इसी दिन कैंची में रहते हुए बाबाजी (Baba Ji) शाम के 4:30 लखनऊ में सिंह साहब को दर्शन देने की इच्छा से श्री संतोष कुमार चौधरी ,आईएएस के घर प्रकट हो गए | उन्होंने सिंह साहब को वहां टेलीफोन द्वारा बुलवाया | बाबा जी वहां केवल आधा घंटे हंसते- मुस्कुराते बातें करते रहे | उन्होंने आपसे आपकी पत्नी के बारे में कुछ नहीं पूछा और आपने भी इस विषय में कोई बात नहीं चलाई |

डॉक्टर दास ने जब जाकर फिर सिंह साहब जी की पत्नी को देखा तो वह चकित रह गए | सिंह साहब जब उन्हें धन्यवाद देने लगे तो वह बोले, ” मैंने आपकी पत्नी के लिए कुछ किया ही नहीं, धन्यवाद किस बात का मेरी एंटीबायोटिक दवाइयों से उनके दस्तों ने रुकना था ,पर बचना इन्होंने था नहीं | मृत्यु इनकी स्वाभाविक थी यह जो कुछ हुआ है इसे मैं भागवत कृपा ही कह सकता हूं | आप भगवान को ही धन्यवाद दें | “इसके बाद उनके स्वास्थ्य में सुधार बड़ी तेजी से आया और वह थोड़े ही दिनों में एक स्वस्थ युवती की भांति दिखाई देने लगीं | इस घटना के बाद वे साढ़े छः वर्ष और जीवित रहीं |

सन 1982 में एक दिन श्री कैंची आश्रम में बाबा जी (Baba Ji) की चर्चाएं चल रही थीं इस दौरान श्रीमती सोनी ने श्री केहर सिंह को बाबा जी (Baba Ji) की वह बात जो उन्होंने उनकी पत्नी के संबंध में कही थी कि ‘ मर गई पर हम उसे मरने नहीं देंगे’ सुनाई | इससे श्री सिंह साहब का विश्वास दृढ हुआ कि आपकी पत्नी को जिंदा करने का अद्भुत चमत्कार बाबा जी (Baba Ji) का ही था | वे कहने लगे कि फोटो का उस समय वेग से गिर पड़ना और दरार भी ना आना निश्चित रूप से वायु के रूप में बाबा जी (Baba Ji) के आगमन का सूचक था | आपका हृदय और भी द्रवीभूत हो गया यह सोचकर कि उस दिन जब बाबा जी (Baba Ji) ने संतोष कुमार चौधरी जी के घर पर उन्हें दर्शन दिए तो उन्होंने जानबूझकर इस बारे में कोई चर्चा नहीं की | वे अपनी महत्ता छिपाए रखना चाहते थे और आपकी कृतज्ञता के इच्छुक नहीं थे |उनका उद्देश्य केवल आपका ढाँढस बढ़ाना था |

Leave a comment