Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen ||श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथायें || कथा संख्या – 22

श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाओं (Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathaon) में कथा संख्या 1 से लेकर 21 पहले ही प्रकाशित हो चुकी हैं | कथा संख्या 22 इस प्रकार हैं –

श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाएं ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen) || कथा संख्या -22

श्री कैंची निवासी श्री पूर्णानंद तिवारी जी अपने भाई के साथ जमीन के मुकदमे के कागजात लेकर नैनीताल कचहरी गए हुए थे | इन्हें एक और कागज लेने फिर कैंची आना था ,इस पर इनका भाई बीमार पड़ गया जिसकी देखरेख में व्यस्त होने के कारण शाम हो गई | इन्हें उस समय नैनीताल से कैंची आने वाली कोई बस नहीं मिली ,इसलिए यह अपने भाई को वहीं छोड़कर गेठिया को पैदल चल पड़े | इन्हें आशा थी कि गेठिया में इन्हें काठगोदाम से श्री कैंची धाम की ओर जाने वाली कोई बस मिल जाएगी ,पर यहां आकर इन्हें निराश होना पड़ा | रात हो चली थी और रास्ता कई मीलों का था | गेठिया में केवल एक दुकान थी जिसका मालिक चौधरी कहलाता था | इन्होंने चौधरी से रात उसी दुकान में ठहरने की अनुमति मांगी ,पर उसने मना कर दिया और कहा ,”कोई ट्रक आएगी तो उसे निहोरा कर दूंगा कि वह तुम्हें रास्ते से बिठा ले |” इनके पास एक छोटा टॉर्च था जिसके सहारे यह लंबा रास्ता अंधेरे में पैदल नापने लगे | रास्ते में इन्हें वह भयावह नाला मिला जिसे “खुफिया डांठ “कहते हैं | यहां एक पेड़ में लोहे की जंजीर लटकी रहती थी और यह कहावत थी कि एक बाबा ने भूत को यहां बंद रखा है | तिवारी जी जवान थे लगभग 21 वर्ष की आयु होगी | भूत का भय इनके मन में था ही | जब भी आगे बढ़े तो टॉर्च के मंद प्रकाश में इन्हें एक स्थूल व्यक्ति उस निर्जन स्थान में पैरापेट ( दीवार ) पर बैठा दिखाई दिया | वह व्यक्ति जोर से बोला ,”कौन है? क्या नाम ?कहां रहता है?” पूर्णानंद तिवारी जी अत्यन्त ही सहम गए और उनके पास गए और उन्होंने उन्हें पहचान लिया वे कोई और नहीं बल्कि परमपूज्य बाबा श्री नीम करोली महाराजजी ही थे जिनकी ख्याति श्री तिवारी जी ने पहले से ही बहुत ज्यादा सुनी हुई थी और उसी दिन नैनीताल में एक ओवरसीज के घर इन्हें देखा भी था पर वहां संकोचवश आगे बढ़कर चरण स्पर्श न कर सके | उनकी अभिलाषा उनके मन में बनी रही यहां एकांत में बाबा जी ने या अवसर इन्हें दिया |इन्होंने अपना नाम बाबाजी को बताया और श्री कैंची धाम को अपना स्थान बताया | महाराजजी जी पूर्णानंद तिवारी जी से बोले ,” तेरा भाई बीमार हो गया ,चिंता मत कर वो ठीक हो जाएगा |” यह हाथ जोड़ उनकी बात से चकित हो गए | “अब जा रास्ते में तुझे गाड़ी मिल जाएगी” इतना कहकर फिर वह बोले “मुकदमा चल रहा है | घबरा मत किसी भी अदालत से हारेगी नहीं, पर भुगतान है |मामला लंबा चलेगा |” इनके पूछने पर की बाबा आप यहां कैसे ? वे बोले हम भूतों से बचने के लिए यहां आ बैठे हैं | नैनीताल में भूत (स्वार्थी लोग) बहुत हैं अंत में तिवारी जी ने पूछा “बाबा, आप कब दर्शन देंगे ?” वे बोल उठे ,”बीस साल बाद |अब जा, तुझे गाड़ी मिल जाएगी |” वे श्री नीम करोली बाबा जी को नमन कर अपनी राह चल दिए, मन में सोचने लगे कि बाबा जी को आगे दर्शन देने की इच्छा नहीं थी इसीलिए कह दिया” बीस साल बाद”| यह लगभग 500 गज चले होंगे, पीछे से आने वाली एक ट्रक के चालक ने इन्हें बुलाकर गाड़ी में बैठा लिया यह घटना वैशाख 1942 की है |

25 में 1962 के दिन श्री नीम करोली बाबा जी कुछ लोगों के साथ रानीखेत से आ रहे थे वह श्री कैंची धाम में उतर गए और अन्य लोगों को उसे कर में नैनीताल भेज दिया | श्री पूर्णानंद तिवारी जी उस दुपहरी में सो रहे थे | बाबा जी ने इन्हें घर से बुलवाया | इन्होंने आकर देखा बाबा श्री नीम करोली जी प्रतीक्षा कर रहे हैं बाबा जी बोले तू हमें झूठा समझता है |” यह कुछ समझे नहीं | बीस वर्ष पूर्व बाबा जी की वार्ता की प्रतिक्रिया के रूप में उठे अपने विचारों का उसे समय इन्हें विस्मरण हो गया था | इस प्रकार बाबा जी ने अपना वादा पूरा किया |

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