श्री जीवंती माता जी (Shree Jivanti Mata Ji) का जीवन परिचय इस प्रकार है –
श्री जीवंती माता जी (Shree Jivanti Mata Ji) का जीवन परिचय
श्री जीवंती माता जी (Shree Jivanti Mata Ji) का जन्म एक संस्कारिक ब्राह्मण परिवार में हुआ था | वह शुरू से ही आध्यात्मिक प्रवृत्ति की थीं | इसमें कोई संदेह नहीं है कि वह जीवन पर्यंत इस तरह श्री सिद्धि मां के साथ रहीं जैसे श्री लक्ष्मण भगवान जी श्री राम भगवान जी के साथ रहे | श्री जीवंती मां को भक्त प्रेम से श्री छोटी मां भी बुलाते थे |
श्री सिद्धि मां और श्री जीवंती मां का जन्म एक ही स्थान अल्मोड़ा में हुआ था | एक ही विद्यालय में दोनों ने विद्या अध्ययन किया और संभवतः एक ही समय में अल्मोड़ा से नैनीताल आ गये | श्री राम साह जी के घर में एक ही समय में दोनों ने श्री नीम करोली बाबाजी के दर्शन किए |
श्री जीवंती माता जी (Shree Jivanti Mata Ji) जैसे ही श्री नीम करोली बाबा जी को प्रणाम करने के लिए झुकीं तभी श्री नीम करोली बाबाजी अपना हाथ हिला हिला कर कहने लगे,” यह बड़ी संत है – बड़ी संत है यह हमें रोटी खिलाएगी |” कालांतर में श्री जीवंती मां के साथ ऐसा संयोग घटित हुआ कि श्री कैंची धाम में उन्हें श्री नीम करोली बाबा जी के लिए नित्य प्रति भोग बनाने का सौभाग्य मिला | घर पर रहते हुए भी श्री जीवंती मां महाराज जी के लिए भोग बनाकर उन्हें घर पर ही भावपूर्वक अर्पण करती थीं | फिर उसी को प्रसाद के रूप में ग्रहण करती थीं |
श्री जीवंती माता जी (Shree Jivanti Mata Ji) एक अध्यापिका थीं और वह अकेली ही रहती थीं और नित्य प्रति श्री कैंची धाम आश्रम दर्शनार्थ जाया करती थीं | वह अपनी सभी घरेलू जिम्मेदारियों को शीघ्रता से पूरा करती थीं |भोग प्रसाद बनाकर महाराज जी को अर्पण करने के बाद ही स्वयं ग्रहण करती थीं |
एक दिन उन्होंने दाल और रोटी बनाई और महाराज जी के भोग के लिए थाली में परोसी ही थी कि उनके मन में विचार आया कि दाल कुछ कम पकी है तुरंत ऐसा सोचकर वह थाली महाराज जी के सामने से हटाकर उन्होंने फल का भोग लगा दिया | उसके पश्चात वह श्री कैंची धाम चली गईं | श्री कैंची धाम पहुंचने पर उन्होंने महाराज जी को भक्तों के बीच, तख्त पर बैठे हुए देखा | जैसे ही छोटी मां ने महाराज जी को प्रणाम किया , वे बोल उठे ,”आज उसने मुझे भोजन नहीं दिया मुझे भूखा रखा इसने मुझे भोजन नहीं दिया |”
एक बार महाराज जी ने भक्तों को बहुत दिनों तक दर्शन नहीं दिए | अतः भक्तों ने यह निश्चय किया कि श्री रामचरितमानस का पाठ निरंतर अखंड रूप से किया जाए | उन्होंने श्री जीवंती मां की सात्विकता, पवित्रता और आध्यात्मिकता से प्रेरित हो उनके घर को अखंड पाठ हेतु चयन किया | यह अखंड पाठ 24 घंटे में पूर्ण करने के बाद पुनः प्रारंभ कर दिया जाता | यह क्रम निरंतर 25 दिनों तक चलता रहा | अचानक 25 वें दिन रात्रि 11:00 बजे महाराज जी वहां आ गए | उन्हें देख सभी भक्ति भाव विभोर हो गए कुछ क्षणों में पूरे वातावरण में आनंद की लहर फैल गई | रामायण श्री नीम करोली बाबा जी के हाथ में सौंप कर भक्तगण उनकी आरती उतारने लगे | सभी भक्तों को प्रसाद वितरित किया गया तत्पश्चात महाराज जी हनुमानगढ़ की ओर प्रस्थान कर गए |
अगले दिन श्री नीम करोली बाबा जी ने सभी भक्तों को जो उनके दर्शनार्थ आए थे श्री जीवंती मां के घर यह कह कर भेज दिया कि “वहां जाओ वहां भंडारा है “| भारी भीड़ को देखकर कुछ भक्त श्री जीवंती मां के बारे में चिंतित होकर कहने लगे की अल्प साधन होते हुए यह कार्य श्री जीवंती मां कैसे पूरा कर पाएंगी | यह सुनकर महाराज जी बोल उठे तुम नहीं जानते श्री जीवंती मां को, वह तो कुबेर के भंडार की स्वामिनी हैं | वास्तव में ऐसा ही हुआ भक्तों की भीड़ निरंतर आती गई और निरंतर प्रसाद वितरित होता रहा | उसी समय से श्री कैंची आश्रम में भोजन प्रसाद की व्यवस्था उनके आदेशानुसार होती थी |
प्रत्येक शाम को श्री जीवंती मां रसोई के कार्यकर्ताओं को अगले दिन भोजन प्रसाद की व्यवस्था के विषय में निर्देश देती थीं | बिना किसी चिंता के आगंतुकों और सभी दर्शनार्थियों को प्रसाद पर्याप्त होता था | आश्रम से जाने वाले सभी भक्तों को भोजन व प्रसाद के डिब्बे दिए जाते जिससे भक्तों को कोई असुविधा न हो यह कार्य श्री जीवंती मां की प्रेरणा स्वरूप होता था | जब भी आश्रम में किसी विषय पर निर्णय लेने की आवश्यकता पड़ती थी तो श्री छोटी माताजी अपनी विवेक शक्ति से समाधान करती थीं |
सन 1962 में महाराज जी ने श्री जीवंती मां से कहा “अब से तू माई (श्री सिद्धि माता जी )के साथ रहेगी |”तभी से श्री जीवंती मां ने अपना अध्यापन का कार्य छोड़ दिया एवं महाराज जी के आदेशानुसार श्री सिद्धि माता जी के साथ श्री कैंची धाम में रहने लगीं और उनके साथ निभाया | भक्तों की दृष्टि में श्री छोटी मां आज भी श्री सिद्धि माता जी का अभिन्न रूप हैं |