श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाओं (Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathaon) में कथा संख्या 1 से लेकर 17 पहले ही प्रकाशित हो चुकी हैं | कथा संख्या 18 इस प्रकार हैं –
श्री नीम करोली बाबाजी के चमत्कार की कथाएं ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen) || कथा संख्या -18
एक अमेरिकी महिला ने जब अपने देशवासियों के साथ आकर प्रथम बार महाराज जी के दर्शन किए तो वह उनसे इतनी प्रभावित हुई कि उसे दु:ख हुआ कि वह क्यों नहीं अपने पति को साथ लेकर आई | वह इसी प्रयोजन से अमेरिका वापस गई और उसे लेकर कैंची में बाबा जी के दर्शन करने पुनः उपस्थित हुई |आश्रम में जाकर उसके पति का मन खिन्न हो गया ,यह देखकर विदेशी लोग बाबा जी के पीछे ऐसे पागल हो रहे हैं कि उनके चरणों में सिर रखने में उन्हें कुछ भी संकोच नहीं होता | स्वयं अपनी पत्नी की ऐसी प्रवृत्ति से उसका मन फट गया | सभी विदेशी नैनीताल में होटल में ठहरते और नित्य सवेरे कैंची दर्शन को आते और शाम को वापस चले जाते थे | यह महाशय भी दिन भर कैंची में समय बिताकर अपनी पत्नी के साथ शाम को लौट जाते थे | यह क्रम सात दिनों तक लगातार चलता ही रहा और अंत में वह इस स्थिति से ऊब गए | बाबा जी को कुछ लीला करनी थी संभवतः इस कारण उन्होंने जानबूझकर उससे संपर्क नहीं रखा | उस व्यक्ति का क्षोभ इतना बढ़ गया कि वह अपनी पत्नी को छोड़कर अमेरिका वापस जाने की सोचने लगा |
अगले दिन उसने पत्नी के साथ कैंची जाना स्वीकार नहीं किया और दिन भर नैनीताल में झील के किनारे दु:खद चिंतन में अकेला बैठा रहा | यद्यपि उसमें आस्तिकता थी नहीं पर आज वह ईश्वर को याद करने लगा और अपने से पूछने लगा,” मैं यहां क्या कर रहा हूं ? यह व्यक्ति (महाराज जी) कौन हैं ? क्यों सब लोग उनके पीछे पागल हैं ? “एकाएक उसका मन स्वतः बोल उठा,” यदि तुझ में आस्था होती तो तुझे चमत्कार की आवश्यकता ना होती |” इन उलझनों में वह ईश्वर से निवेदन करने लगा ,”भले ही मेरे अंदर आस्था नहीं है, पर मैं चमत्कार देखना चाहूंगा |”
दूसरे दिन उसने स्वदेश जाने का निश्चय कर लिया, पर पत्नी के आगरा से वे दोनों उसे दिन बाबाजी से अंतिम विदाई लेने पहुंचे | उसने इस अवसर पर अपने मन का गुबार निकालने की ठानी | वे दोनों उस दिन सवेरे ही अन्य विदेशियों से पहले ,श्री कैंची धाम आ गए और वहां बरामदे में बाबा जी के तख्त के आगे बैठ गए | बाबा जी उस समय राधा कुटी के भीतर थे | तख्त पर कुछ सेब रखे थे | बाबा जी की महिमा से उनमें से एक सेव स्वतः ही लुढ़ककर तख्त के नीचे चला गया | उसने जैसे ही झुक कर तख्त के नीचे से उस सेव को उठाने का प्रयास किया ,बाबा जी बिजली की भांति बड़ी फुर्ती से बाहर आए और उस तख्त पर ऐसे बैठे कि उनके पैरों से उसका हाथ दब गया और अपने हाथों से बाबा जी ने उसके झुके सर को ऐसे दबाया कि उसकी स्थिति ऐसी हो गई की उसने अपने को दंडवत प्रणाम करता सा पाया जिस कार्य से उसको घृणा थी |
बाबा जी ने उसकी ओर देखते हुए कई प्रश्न किए जिनमें कुछ सार्थक थे अन्य व्यर्थ केवल अपनी महत्ता को छिपाने के लिए किए गए थे | तू लेक (झील) पर क्या कर रहा था ? घुड़सवारी कर रहा था ? नाव में सैर कर रहा था ? तैरने गया था ?अंत में ईश्वर को याद कर रहा था ? बाबा के सारगर्भित प्रश्नों से वह चकरा गया और उनके उत्तर देने में वह बच्चों की भांति रोने लगा | बाबा जी ने उसे अपनी ओर खींचा और उसकी दाढ़ी में हाथ फेरते हुए बार-बार पूछने लगे बता तूने क्या मांगा था ,ईश्वर से ?” श्री नीम करोली बाबा जी की वाणी और स्पर्श से उसका व्यक्तिृ का हृदय बिलकुल पलट गया | उसके मन में बाबाजी प्रति श्रद्धा और प्रेम उमड़ गया | वह समझने लगा कि किसी न किसी समय प्रत्येक व्यक्ति को ऐसी ही अनुभूति हुई होगी जिससे लोग इन्हें नहीं छोड़ | बाबा जी के इन साधारण प्रश्नों ने उसे अनुभव कर दिया कि वह सर्वदृष्टा हैं सर्वश्रोता हैं, इस प्रकार सर्वज्ञ हैं |