Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen ||श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथायें || कथा संख्या – 19,20,21

श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाओं (Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathaon) में कथा संख्या 1 से लेकर 18 पहले ही प्रकाशित हो चुकी हैं | कथा संख्या 19,20,21 इस प्रकार हैं –

श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाएं ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen) || कथा संख्या -19

कहा जाता है कि एक बार बाबा ट्रेन में सफर कर रहे थे।लेकिन उनके पास टिकट नहीं था। जिस कारण टीटी अफसर ने उन्हें पकड़ लिया। बिना टिकट होने के कारण अफसर ने उन्हें अगले स्टेशन में उतरने को कहा।स्टेशन का नाम नीब करौरी था।स्टेशन के पास के गांव को नीब करौरी के नाम से जाना जाता है। महाराजजी को ट्रेन से उतार दिया गया और टीटी ने ड्राइवर से गाड़ी को चलाने का आदेश दिया। बाबा वहां से कहीं नहीं गए। उन्होंने ट्रेन के पास ही एक चिमटा धरती पर लगाकर बैठ गए।

चालक ने बहुत प्रयास किया लेकिन ट्रेन आगे ना चली। ट्रेन आगे ना चलने का नाम ही नहीं ले रही थी। तभी गाड़ी में बैठे सभी लोगों ने कहा यह महाराजजी का ही प्रकोप है।उन्हें गाड़ी से उतारने की वजह से ही ट्रेन नहीं चल रही है। तभी वहां एक बड़े ऑफिसर आए जो कि बाबाजी से भली-भांति परिचित थे |उन्होंने महाराजजी से क्षमा याचना की और ड्राइवर और टिकट चेकर दोनों को महाराजजी से माफी मांगने को कहा।सब ने मिलकर श्री नीम करोली बाबाजी को मनाया और उनसे क्षमा याचना की। माफी मांगने के बाद महाराजजी को सम्मानपूर्वक ट्रेन पर बिठाया गया। लेकिन उन्होंने यह शर्त रखी कि इस जगह पर स्टेशन बनाया जाएगा। जिससे कि उस स्थान के लोगों को ट्रेन पकड़ने में आसानी हो जाए क्योंकि वहां के लोग ट्रेन पकड़ने के लिए मीलों दूर से चलकर आते थे तब जाकर ट्रेन में बैठ पाते थे।उन्होंने बाबा से वादा किया और उस स्थान पर नीब कारौरी नाम का रेलवे स्टेशन बन गया। यहीं से महाराजजी के चमत्कार की कहानियां देश विदेश में प्रसिद्ध हो गईं और इस स्थान से पूरी दुनिया में बाबा जी का नाम श्री नीब करौरी बाबा जी के नाम से जाना जाने लगा।यही से बाबा को नीम करोली नाम मिला था।

श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाएं ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen) || कथा संख्या -20

महाराज जी के एक भक्त श्री किशन जी (बाबा जी का दिया हुआ नाम) उन भक्तों में से हैं जो बाबा जी से सीधी बात प्रस्तुत करने की क्षमता रखते थे, इनकी प्रत्येक छल रहित बातें श्री नीम करोली बाबाजी को अत्यन्त प्रिय थीं। जिसे सुनने के लिए सभी भक्तगण सदा आतुर रहते और अत्यन्त आनंद की अनुभूति करते।
बाबाजी भी इनके बारे में कहा करते थे कि–

“ये मेरा बोलने वाला भक्त है |”

इसी विषय में एक घटना यह है कि एक बार जब बाबा जी भक्तों की मंडली के साथ बस में सवार होकर हल्द्वानी से बरेली जा रहे थे। उसी समय उन्होने कहा कि –
“टिकट श्री किशन लेगा!”
श्री नीम करोली बाबा जी का स्वभाव हर व्यक्ति जानता ही है। अतः बाबाजी के आदेश का पालन करते हुए इन्होंने अत्यन्त ही सीधे-साधे ढंग से व स्पष्ट रूप से अपनी बात सभी भक्तों के मध्य रख दी कि-
“श्री बाबाजी और स्वयं का ही टिकट लूँगा बाकि सभी व्यक्ति अपना टिकट खुद लें।”
तत्क्षण ही जीवन बाबा(चचेरे भाई) जो साथ में चल रहे थे इनके निकट आए और कहा कि–
दाज्यु (भाई साहब) टिकट की चिंता मत करो, यहाँ तो भक्तों कि होड़ लगी है, टिकट लेने के लिये, महाराज जी तो तुम्हें बस छेड़ रहे हैं।
एक बार ये अपनी एक गंभीर बीमारी के कारण चिंताग्रस्त हो गए, ऐसे में महाराज जी ने इनको संदेश भिजवाया कि- “श्री किशन चिंता मत कर, अपनी सांसारिक जिम्मेदारियों को पूर्ण किए बिना तू इस संसार से नही जाएगा।” उसके पश्चात् यह स्वस्थ्य हुए और आजीवन श्री हनुमान भगवानजी की सेवा में पूर्णतया समर्पित रहे।

श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाएं ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen) || कथा संख्या -21

घटना सितंबर 17, 1971 श्री कैंची आश्रम की है | श्री नीम करोली बाबा जी की एक अमेरिकी महिला भक्त जिनका उन्होंने भारतीय नाम श्री राधा दिया था ,उनके दर्शनार्थ श्री कैंची धाम आई हुई थीं | आप लिखती हैं कि एक दिन मेरा सिर बहुत ही खुजला रहा था, इस कारण मैं परेशान थी | मुझे जूं होने का संदेह हुआ यद्यपि मेरे सिर में जू होती नहीं थी ,फिर भी मैंने पास में खड़े श्री द्वारकानाथ जी से अपना सर देखने को कहा |उन्हें कोई जूं नहीं दिखाई दी | उसी समय श्री नीम करोली बाबा जी ने मुझे अपने पास बुलवाया मैं बाबाजी को नमन करके तख्त के बिलकुल पास ही भूमि पर बैठ गई | महाराजजी बिना कुछ बोले मेरा सिर थपथपाने लगे और इसके तुरंत ही बाद कुछ क्षणों तक उसे खुजलाते रहे | इससे मुझे बहुत आराम मिला हम दोनों मौन रहे कोई एक शब्द भी नहीं बोला मैं समझती हूं कि महाराज जी के अनेक तरीकों में यह एक था यह जताने का कि उनको मेरे साधारण कष्ट की भी जानकारी रहती है |

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