श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाएं ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen) || कथा संख्या-16,17

श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाओं (Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathaon) में कथा संख्या 1 से लेकर 15 पहले ही प्रकाशित हो चुकी हैं | कथा संख्या 16,17 इस प्रकार हैं –

श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाएं ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen) || कथा संख्या -16

श्री देव कामता दीक्षित जो कि कानपुर के रहने वाले हैं ये बताते हैं कि एक बार उनके चाचा जी की आंखों का ऑपरेशन हुआ था पर वह ऑपरेशन असफल रहा | आंखों के घाव भर नहीं पाए और उनमें से खून भी निकल आता था | डॉक्टर शुक्ला का इलाज चल रहा था | डॉक्टर को दो दिनों के लिए एक सम्मेलन में भाग लेने बाहर जाना था ,उन्होंने औषधियां लिख दीं और बोले ,”सब कुछ ठीक हो जाएगा पर आंखें बेकार हो चुकी हैं | यह कभी देखा नहीं पाएंगे |” उनकी बात पर श्री देव कामता दीक्षित जी बोल उठे ,”यदि हमारे बाबा यही बात कह देंगे तो फिर हम हमेशा के लिए आशा छोड़ देंगे |” डॉक्टर साहब को श्री देव कामता दीक्षित जी बात कुछ पसंद नही आई,वे बोले “हमने आपको सच्चाई बता दी है यदि कोई इनकी आंखों में रोशनी इनमें रोशनी ले आया तो हम उनकी टांगों के नीचे से निकल जाएंगे |”

डॉक्टर साहब के वहां से चले जाने के थोड़ी ही देर के बाद अचानक ही श्री नीम करोली बाबा जी का आगमन हुआ | जब श्री देव कामता दीक्षित जी ने उन्हें डॉक्टर की कही गई बात बताई तो महाराज जी बोले,” इसे कंधारी अनार का रस पिला आंखें ठीक हो जाएंगी |” उसी समय श्री नीम करोली बाबा जी की उपस्थिति में अनार का रस पिलाना आरंभ किया गया | श्री देव कामता दीक्षित जी के घर में उस दिन वाल्मीकि रामायण के सुंदरकांड का पाठ हो रहा था और लंका पुरी में सीता- हनुमान संवाद का प्रसंग चल रहा था | श्री नीम करोली बाबा जी उठकर रामायण सुनाने चले गए | वहां वे भाववेश में आने लगे, और बाबाजी ने अपना कंबल अपने सर पर से ओढ़ लिया | थोड़ी देर के बाद जब महाराजजी अपना कंबल हटाते हैं तो देखा गया कि उनकी आंखों से रक्त के आंसू बह रहे थे | इसके बाद वे श्री देव कामता दीक्षित जी के घर से चले गए | उनके जाते ही श्री देव कामता दीक्षित जी के चाचा जी की आंखों में आशातीत सुधार आ गया | उन्हें सब कुछ दिखाई देने लगा और वह बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हो गए |

श्री नीम करोली बाबा जी यहां से श्री देव कामता दीक्षित जी के भाई डॉक्टर दीक्षित के घर चले गए और दो दिन तक वहीं रहे | दो दिनों बाद जब डॉक्टर शुक्ला वापस आए तो वह चाचा जी की आंखों को देखकर चकित हो गए | उन्होंने श्री नीम करोली बाबाजी के दर्शन के अभिलाषा व्यक्त की | भाई के घर पूछताछ करने पर ज्ञात हुआ कि श्री नीम करोली बाबा जी स्टेशन चले गए | श्री देव कामता दीक्षित डॉक्टर शुक्ला को लेकर सीधे स्टेशन पहुंचे | श्री नीम करोली बाबा जी की ट्रेन तुरंत ही छूटने जा रही थी उन सभी लोगों ने खिड़की से ही उनके दर्शन प्राप्त किए | महाराज जी डॉक्टर शुक्ला की सराहना करने लगे कि “यह एक कुशल डाक्टर है इसने तेरे चाचा की आंखें सुधार दीं | “डॉक्टर साहब उनके चरण छूने को आगे बढ़े पर स्पर्श कर नहीं पाए क्योंकि गाड़ी छूट चुकी थी |

श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाएं ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen) || कथा संख्या -17

घटना 1968 की है |श्री केहर सिंह को शारीरिक कमजोरी बहुत परेशान किए हुए थी | वह सब कुछ खाते पर पैरों में बल नहीं मालूम होता था | इसी बीच श्री नीम करोली बाबा जी लखनऊ में लगातार कई दिनों तक रहे | श्री केहर सिंह उनकी सेवा में रहे , जहां भी बाबा जी जाते वे उनके साथ ही जाया करते | बाबा जी को सर्वत्र मिठाई का भोग लगता था और वह श्री केहर सिंह जी को बहुत मिठाई खिलाया करते | श्री केहर सिंह जी को मिठाई में रुचि भी अधिक थी और बाबा जी के हाथ से दिए प्रसाद को वे तुरंत खा लिया करते | एक दिन श्री संकट मोचन हनुमान मंदिर के पास भूमि पर बैठे बाबा जी के भक्तों द्वारा लाई गई मिठाई को बांटते हुए सिंह साहब से बोले, “तुझे डायबिटीज है इतनी मिठाई खाता है ,अब तू मर जाएगा |” बाबा जी के लखनऊ से चले जाने के बाद अपनी बढ़ती कमजोरी देखकर और बाबा जी के शब्दों का स्मरण करके श्री केहर सिंह जी चिंतित रहने लगे |

जनवरी 1969 में रायबरेली से आपको बाबा जी के किसी भक्त का कार्ड मिला | उसने लिखा था कि बाबा जी हमारे घर आए थे और मुझे आदेश देकर गए हैं कि मैं आपको सूचित करूं कि आप की डायबिटीज खत्म हो चुकी है | आप इस विषय में चिंता ना करें आपका यह कष्ट स्वतः ही जाता रहा और तब से फिर कभी भी आपको ऐसी शिकायत नहीं हुई श्री केहर सिंह जी ने इस हेतु ना कोई परहेज किया और ना ही किसी औषधि का सेवन किया | उनकी यह धारणा थी कि बाबा जी ने यह रोग अपने में ले लिया और स्वयं इस कष्ट को भुगतने लगे | प्रमाण स्वरूप वे बताते हैं कि तब से जीवन पर्यंत बाबा जी चने की रोटी खाते रहे और मीठी वस्तु से वह बराबर परहेज करते देखे गए |

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