श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाओं (Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathaon) में कथा संख्या 1 से लेकर 23 पहले ही प्रकाशित हो चुकी हैं | कथा संख्या 24,25 इस प्रकार हैं –
श्री नीम करोली बाबाजी के चमत्कार की कथाएं ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen) || कथा संख्या -24
घटना श्री कैंची धाम आश्रम 19 जनवरी 88 की है | जाड़ों के दिन थे आश्रम में सुनसानी छाई हुई थी | केवल चौकीदार , भण्डारी, पुजारी आदि कर्मचारी मंदिर में अर्चना और आश्रम की देख- भाल के लिए वहां थे| मैनेजर महोदय श्री विनोद चंद्र जोशी उन दिनों आश्रम में ही थे | प्रातः काल की पूजा हो चुकी थी नित्य की भांति सब मंदिरों की सफाई कर त्रिलोक सिंह ने उनके प्रवेश द्वारों पर ताले लगा दिए थे | श्री नीम करोली बाबा जी के मंदिर के पश्चिमी द्वार पर भी ताला पड़ गया था और उत्तरी द्वारा लोगों के दर्शन करने के लिए खुला था | प्रसाद पाकर त्रिलोक सिंह अपने कमरे में आराम कर रहे थे,विनोद जी फार्म के धंधों की देख- भाल में वहां चले गए थे | केवल अमर सिंह दर्शनार्थियों के स्वागत अर्थ मंदिर परिसर के प्रांगण में बैठ दिन की धूप सेक रहे थे |
शाम के चार बजे नित्य की भांति मंदिरों में आरती की तैयारी के लिए जब त्रिलोक सिंह ने बाबा के मंदिर का ताला खोलकर प्रवेश किया तो वह आश्चर्य चकित हो गए | श्री नीम करोली बाबा जी के विग्रह पर जो कंबल प्रातः आरती के समय था उसके स्थान पर दूसरा ही कंबल नजर आ रहा था | पास जाकर देखने पर ज्ञात हुआ कि श्री नीम करोली बाबा जी ने पुराने कंबल के ऊपर एक नया कंबल ओढ़ रखा है | इससे उसके मन में अनेक शंकाएं होने लगीं | श्री कैंची धाम में श्री नीम करोली बाबा जी के विग्रह को धोती और कंबल से सुशोभित किया जाता है क्योंकि यही वस्त्र वे पहना करते थे | विनोद जी समय-समय पर जब मंदिरों में श्रृंगार बदलते ,इस विग्रह की धोती और कंबल भी बदल दिया करते थे ,पर आज इस बदलाव की संभावना भी नहीं थी | फिर एक कंबल के ऊपर दूसरे कंबल का ओढ़ना भी अनोखी बात थी | अस्तु विनोद जी के फार्म से लौट आने पर उसने उन्हें सभी बातें सुनायीं | उन्होंने मंदिर में प्रवेश कर देखा, यह नया कंबल उन कंबलों से भिन्न था जिन्हें अदल-बदल कर वे पहनते थे | अमर सिंह के पूछने पर उसने कहा ,”आज केवल दो व्यक्ति दर्शन करने आए थे ,पर उनके पास चढ़ने को कोई कंबल ना था | फिर जब प्रवेश द्वार पर ताला पड़ा था तो भीतर जा ही कौन सकता था ?”कहां से श्री नीम करोली बाबाजी यह कंबल उठा लाये और कैसे उन्होंने इस कम्बल को धारण किया ,यह आज भी एक रहस्य बना हुआ है | यह नया कंबल आश्रम में सुरक्षित रखा है |
श्री नीम करोली बाबाजी के चमत्कार की कथाएं ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen) || कथा संख्या -25
घटना 30 सितंबर 1987 की है श्री बी .बी. सिंह और श्रीमती शांति देवी के पुत्र राजू आयु 18 वर्ष और पुत्री श्रीमती सुमन आयु 28 वर्ष अपने घर मैनपुरी से बस द्वारा मेरठ जा रहे थे | मार्ग में एटा जिले की छछैना नहर के पास इनकी बस क्षतिग्रस्त हो गई | इस दुर्घटना में बस में बैठे अनेक लोग घायल हो गए | राजू के सिर और हाथ में भीषण चोट आई और वह अचेत हो गया | सुमन जी को साधारण चोट आई,पर वे भाई की चोट से घबरा उठीं | उस असहाय स्थिति में आप रोती हुईं अपने मामा बाबा श्री नीम करोली महाराज जी को याद करने लगीं | यद्यपि श्री नीम करोली बाबा जी ने 14 वर्ष पूर्व अपना शरीर शांत कर दिया था ,पर आज सुमन जी की पुकार पर उन्हें सशरीर प्रकट होना पड़ा | वे आधी धोती पहने और आधी ओढ़ राजू के पास इधर-उधर चलते फिरते दिखाई दिए और आपसे बोले ,”चुप हो | अभी सब इंतजाम हुआ जाता है |” इस प्रकार आपके अधीर मन को शांत करें वे अंतर्धान हो गए | इसके बाद ही वहां एक जीप आकर रुकी | एक भद्र पुरुष ने उतरकर सुमन जी से सहानुभूतिपूर्ण वार्ता की और सारी स्थिति का बोध कर वह उनको मैनपुरी वापस ले गाए | वहां यादव नर्सिंग होम में राजू की प्राथमिक चिकित्सा हुई | इसके बाद विशेष चिकित्सा के लिए वे के .पी .श्रीवास्तव नर्सिंग होम आगरा ले जाए गए | वहां उन्हें स्वास्थ्य लाभ हुआ |