श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाओं (Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathaon) में कथा संख्या 1 से लेकर 14 पहले ही प्रकाशित हो चुकी हैं | कथा संख्या 15 इस प्रकार हैं –
श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाएं ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen) || कथा संख्या -15
प्रयागराज में सन 1966 के कुंभ मेले की तैयारी हो रही थी | झूंसी की ओर श्री गंगा मां के तट पर श्री नीम करोली बाबा जी भी अपना कैंप लगवा रहे थे जिसमें भक्तगण ठहर सकें और वहां नित्य भंडारा हो सके | जनवरी का महीना था श्री नीम करोली बाबा जी चर्च लेन में ठहरे थे | वह दिन में नित्य किसी भी समय संगम चले जाते पर उनके लौट कर आने का कोई निश्चित समय नहीं होता |दर्शनार्थी शाम से ही चर्च लेने में उनकी प्रतीक्षा करने लगते | एक दिन वहां कार में कुछ प्रतिष्ठित व्यक्ति आए जिनमें उत्तर प्रदेश सरकार के एक उच्च पदाधिकारी भी थे | इन लोगों ने रात 8:30 बजे तक श्री नीम करोली बाबा जी की प्रतीक्षा की अंत में निराश होकर वापस जाने की सोचने लगे | जब उन्होंने एक व्यक्ति से पूछा कि कब तक और प्रतीक्षा की जाए तो उस व्यक्ति ने उत्तर दिया कि समय तो उनके आने का निश्चित है नहीं | बाबा जी की मौज है जब मन चाहे दर्शन दें ,आप घंटे के आधे में ना जाकर इसे पूरा कर दें तो संभव है काम बन जाए वे 9:00 बजे तक रुकने को तैयार हो गए | संभवत उस व्यक्ति के इस उत्तर में बाबा जी की ही प्रेरणा रही हो | उस व्यक्ति ने समय बिताने के लिए उन आए हुए व्यक्ति से पूछा कि आपको श्री नीम करोली बाबा जी के दर्शन पहले कब और कैसे हुए इस पर उन्होंने अनेक वर्ष पूर्व जब वे झांसी में जिला अधिकारी थे तब का रोचक वर्णन सुनाया जो इस प्रकार है –
बाबा की एक परम भक्त झांसी में सिविल सर्जन थे | एक दिन बातचीत के दौरान उन्होंने हमसे कहा कि बाबा श्री नीम करोली एक उच्च कोटि के सिद्ध हैं और कभी-कभी हमारे घर आते हैं | इस संबंध में उन्होंने श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार (Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar )की एक लीला सुनाई जिससे हमारी उत्सुकता बढ़ गई और उनके निमंत्रण पर ही एक बार हमने बाबा के दर्शन किए थे |
जब द्वितीय महायुद्ध चल रहा था तो श्री नीम करोली बाबा जी एक दिन सिविल सर्जन के घर पधारे उन्होंने उनका स्वागत किया | रात्रि में श्री महाराज जी को तख्त पर सुला कर वे स्वयं भूमि पर सो गए इसलिए की आवश्यकता पड़ने पर उनकी सेवा कर सकें | रात्रि के 11:00 बजे दोनों सो गए और 1:00 बजे भूमि में किसी की छटपटाहट से सर्जन साहब की नींद खुल गई | उन्होंने बिजली जलाकर देखा तो वह बाबाजी ही थे | कारण पूछने पर उन्होंने अपना कंबल उतार कर उन्हें देते हुए कहा तू इसे कहीं जलाशय में बहा कर आ | उन्होंने दूसरे दिन प्रातः काल इस कार्य को करने की अनुमति मांगी परंतु वे नहीं माने और इसी समय इस कार्य को करने के लिए कहने लगे | अंधेरी रात थी और कार के जाने का रास्ता भी नहीं था | उन्होंने अपने सेवकों को जगाया और श्री नीम करोली बाबाजी के आदेश को पूरा कर सूरज निकलने के पहले ही घर आ गए | उन्होंने महाराज जी को बड़ी प्रसन्न मुद्रा में बैठे देखा | जब उन्होंने उनसे कंबल को व्यर्थ बहाने का कारण पूछा तो श्री नीम करोली बाबा जी कहने लगे तेरा लड़का जो फौज में अफसर है ,जर्मनी के हमले का सामना नही कर पाया | उसकी टुकड़ी भाग खड़ी हुई और वह भी भागा , पर जर्मन सिपाहियों ने उसका पीछा किया | वह एक पहाड़ की चोटी से नीचे कूदा और कूदने के बाद वहां दलदल में फंस गया | ऊपर से सभी सिपाहियों ने उस पर गोलियां बरसा दीं और उसे मरा समझ कर वे सभी सिपाही लौट गए | वह सब गोलियां हमारे कंबल में आ गईं थीं ,जिनकी गर्मी से हम व्याकुल हो गए | जब तूने कंबल बहाया तभी हमें शांति मिली | कंबल नया था उनमें कहीं एक छिद्र भी ना था सर्जन साहब बाबा की इन बातों पर अपना विश्वास स्थापित न कर सके केवल लड़का सुरक्षित है यह जानकर उनकी शांति बनी रही | बाबा दूसरे दिन चले गए | श्री नीम करोली बाबाजी के जाने के कई दिनों बाद उनके लड़के का एक पत्र अपनी पत्नी को आया | उसने यही विवरण देते हुए आश्चर्य व्यक्त किया था कि किसी अज्ञात शक्ति ने इन गोलियों की बौछार से उसकी रक्षा की | ऐसी स्थिति में जान बचने की कोई संभावना ही नहीं हो सकती थी | पुत्र के इस लेख से उन्हें बाबा की महानता का बोध हुआ और दुख हुआ कि वह उनकी बात पर उसे समय विश्वास ना कर सके |
पदाधिकारी महोदय के इस वृतांत सुनने में 9:00 बज गए और उसी समय श्री नीम करोली बाबा जी का आगमन भी हुआ | ऐसा ना मालूम कितने कार्य महाराज जी को युद्ध क्षेत्र में करने पड़ते होंगे इसका कोई अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता है |