श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाओं (Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathaon) में कथा संख्या 1 से लेकर 77 पहले ही प्रकाशित हो चुकी हैं | कथा संख्या 78,79,80,81 इस प्रकार हैं –
श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाएं ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen) || कथा संख्या -78
गर्जिला क्षेत्र मे कोटमन्या नामक एक गांव में बाबा की प्रेरणा से श्री हनुमान मन्दिर की स्थापना हुई | मंदिर में जब प्लास्टरिंग हो चुकी थी ३/४ से भी अधिक को घटाएं घिर आईं , बूंदें पड़नी प्रारम्भ हो गईं। स्पष्ट था कि कच्चा प्लास्टर बह जाता और गरीब जनता द्वारा चन्दे द्वारा किया गया ये निर्माण कार्य नष्ट हो जाता | तब सभी ने हताश होकर महाराजजी से रक्षा हेतु प्रार्थना की और तभी उसी क्षेत्र में वर्षा बन्द हो गयी जबकि आस पास खूब मेह बरसता रहा |
श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाएं ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen) || कथा संख्या -79
दुष्कर कार्य का समाधान ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen)
हनुमानगढ, नैनीताल, में हनुमान जी की विशाल मूर्ति का निर्माण हो रहा था | ग्रीवा तक सभी अंग बन गये थे , पर मुख का बनना किसी प्रकार भी सम्भव न हो पाया | सभी के सभी कारीगर घोर परिश्रम कर निराश हो गये | इससे अच्छे कलाकार वहां नही मिल सकते थे | मूर्ति के आगे परदा डाल कार्य स्थगित करना पड़ा | सभी भक्तगण मन में खिन्न थे | बाबा नैनीताल मे नही थे | एक रात शिवदत्त जोशी जी की कन्या को श्री बाबा जी के स्वपन में दर्शन हुए | और वे बोले ,
“दैहिक, दैविक, भौतिक तापा |
राम राज काहु नहिं व्यापा ||”
के सम्पुट अखण्ड पाठ रामायण का करो, और असंख्य राम नाम लिखकर गारे में मिलाओ , उसी से मुख मण्डल का निर्माण हो सकेगा |” श्री नीम करोली बाबाजी के आदेश के अनुसार कार्य किया गया और उन्हीं कारीगरों फिर बुलाया गया |और यह दुष्कर कार्य बडी सरलता से पूर्ण हो गया |”
” कवन सा काज कठिन जग माही
जो नाहि होत तात तुम पाही ”
श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाएं ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen) || कथा संख्या -80
श्री देवकामता दीक्षित जी बताते है कि एक बार वृन्दावन आश्रम की एक महत्वपूर्ण मीटिंग थी | परन्तु कुछ मनोस्थित् ऐसी थी कि मैं असमंजस मे था | मैं अख़बार पढ़ रहा थी कि देखा एक साधू अचानक फाटक से अन्दर आ गए| वे बिना पूछे अन्दर आ गए इसलिये मैंने उनसे कहा कि,” आप कैसे भीतर आ गए|” वे बोले ,” हम तो ऐसे ही आते हैं|” मुझे गुस्सा आ गया , वे एकदम से बोले ,”वृन्दावन से आ रहे हैं|”
उसके वृन्दावन कहते है मुझे मीटिंग याद आ गई और मैं बोल उठे ,” मुझे वृन्दावन जाना था , अपने गुरू के आश्रम मे मीटिंग मे , पर मैं जा नहीं पा रहा हूं |” इस पर साधू बाबा बोल उठे,” जाना चाहिये तुम्हे | गुरू कार्य में सहयोग देना चाहिये |” तब मैं बोला अब कैसे जा सकता हूं| रिज़र्वेशन को है नही |” साधू बोले,” किया होता है रिज़र्वेशन ? तुम जाओ | कुछ न कुछ प्रबन्ध हो जायेगा |” साधू बाबा गायब | मैंने भी सन्ध्या तक वृन्दावन जाने का मन बना लिया | गाड़ी खचाखच भरी थी | एक आदमी ने मुझे अपनी सीट दे दिया | सारी रात उस बर्थ पर आराम से कट गई | मीटिंग मे पहुंचना परमावश्यक था से वहां जाकर ही पता चला | परन्तु कौन थे वे साधू बाबा जिन्होंने मुझे वृन्दावन जाने हेतु प्रेरित किया | और कौन थे वो मुसाफिर जिसने बिना कुछ कहे ही मुझे अपनी सीट दे दी |
श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाएं ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen) || कथा संख्या -81
जब भी बाबा एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते तो भक्तजन अपनी अपनी और से सेवा में उधत हो जाते |कोई उनकी गाड़ी में पैट्रोल भरवाता कोई श्री नीम करोली बाबाजी साथ के सभी भक्तों के लिये प्रथम श्रेणी के टिकट खरीदता |
एक बार इलहाबाद के एक भक्त के मन में यही चाह पैदा हुई | जब श्री नीम करोली बाबा जी इलहाबाद जाने के लिये उधत हुए तो आप टिकटों के लिये रूपये जेब में रखकर उनके पीछे -पीछे चलते रहे और संकोचवश पूछ नहीं पा रहे थे कि टिकट मैं ले आऊं| अचानक बाबा आपकी और मूड कर बोले,” जेब में नोट लिये फिर रहा है , टिकट क्यों नहीं लाता |” आप हैरान होकर ख़ुशी से टिकट लेने भागे और सोच रहे बाबा तो अन्तर्यामी है , सब मन की जान लेते है |