श्री नीम करोली बाबा जी (Shree Neem Karoli Baba ji) का जीवन परिचय इस प्रकार है –
श्री नीम करोली बाबा जी ( Shree Neem Karoli Baba Ji ) का जन्म और विवाह
श्री नीब करोरी बाबाजी का जन्म सन् 1900 में मार्गशीर्ष माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी पर हुआ था | श्री नीब करौरी बाबा जी को भक्त प्यार से श्री महाराजजी और श्री नीम करोली बाबा जी ( Shree Neem Karoli Baba Ji ) भी कहते हैं | श्री नीब करोरी बाबाजी का जन्म उत्तर प्रदेश के आगरा जनपद ( जब जन्म हुआ ) अब के फिरोजाबाद जनपद के अकबरपुर गांव में हुआ था | उनके पिताजी का नाम श्री दुर्गादास शर्मा और माताजी का नाम कौशल्या देवी शर्मा था | महाराजजी जब 8 वर्ष के हुए तो 1908 में उनकी माताजी का देहावसन हो जाता है | पिता श्री दुर्गादास शर्माजी का सामाजिक एवम पारिवारिक दबाव के कारण दूसरा विवाह हो जाता है | सन् 1911 में बदामवास की बेटी पूज्यनीय श्री रामबेटीजी से श्री नीम करोली बाबा जी ( Shree Neem Karoli Baba Ji ) का विवाह हो जाता है |
श्री नीम करोली बाबा जी ( Shree Neem Karoli Baba Ji ) का धार्मिक जीवन
विवाह के कुछ दिनों के पश्चात् श्री नीम करोली बाबा जी ( Shree Neem Karoli Baba Ji )अपना घर त्याग देते हैं और उस समय उनकी उम्र मात्र 13 वर्ष थी | उसके बाद श्री नीम करोली बाबाजी गुजरात के राजकोट क्षेत्र में पहुंचते हैं और एक आश्रम के लिए अपनी सेवाएं देते हैं | गुजरात के जिस आश्रम में वो रह रहे होते हैं उस आश्रम के महंत उनका नाम श्री लक्ष्मणदास रख देते हैं | आश्रम के महंतश्री नीम करोली बाबाजी से प्रसन्न होकर उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित कर देते हैं तो पूर्व के जो शिष्य थे उन्हें ये बात बुरी लगती है |
जब ये बात श्री नीम करोली बाबाजी को पता चलती है तो वो आश्रम छोड़ देते हैं और राजकोट से गुजरात के बबनिया गांव में आजाते हैं | बबनिया आने के बाद श्री नीम करोली बाबाजी वहां पर श्री हनुमान भगवानजी का एक मन्दिर स्थापित करवाते हैं और वहां पास में ही एक तालाब है वहां पर वो एक कठिन तपस्या का निर्णय लेते हैं और तालाब में खड़े होकर घंटों तपस्या करते हैं | आस -पास के लोगों ने जब उनके चमत्कारों को देखा तो उनकी चर्चाएं आसपास के क्षेत्रों में बढ़ने लगा और महाराजजी का प्रभाव आध्यात्मिक क्षेत्र में बढ़ने लगा | महाराजजी 1917 तक बबनिया में रहते हैं वहां लोगों द्वारा उनका नाम तलइया बाबा रख दिया जाता है |
श्री नीम करोली बाबा जी ( Shree Neem Karoli Baba Ji ) के ट्रेन रोकने की कथा
1917 में एक महिला संत श्री रमाबाईजी को वो आश्रम दे देते हैं और वहां से चले जाते हैं | 1917 में वो गंगा मइया से मिलने पांचाली घाट ( पूर्व नाम घटिया घाट ) ट्रेन से जा रहे होते हैं वहां रास्ते में एक स्टेशन आता है जिसका नाम नीब करौरी स्टेशन होता है वहां टीटी श्री नीम करोली बाबा जी( Shree Neem Karoli Baba Ji ) से टिकट मांगता है और महाराजजी को ट्रेन से उतार देता है | उतारने के बाद जब उसने ट्रेन को संकेत दिया तो ट्रेन नही चली | फिर सारा स्टाफ टीटी के साथ आकर महाराजजी से माफी मांगता है तो श्री नीम करोली बाबा जी ( Shree Neem Karoli Baba Ji ) अपने ट्रेन के फर्स्ट क्लास कोच की टिकट दिखाते हैं और कहते हैं कि देखिए मेरे पास टिकट था तब भी आपने मुझे ट्रेन से उतार दिया | ट्रेन कर्मचारियों और लोगों द्वारा अनुरोध करने पर श्री नीम करोली बाबाजी ट्रेन में बैठ जाते हैं और उनके बैठते ही ट्रेन चल देती है और श्री नीम करोली बाबा जी ( Shree Neem Karoli Baba Ji ) श्री गंगा मइया से मिलने फरुखाबाद चल देते हैं | नीब करौरी गांव के कुछ लोग भी उस ट्रेन में श्री नीम करोली बाबा जी ( Shree Neem Karoli Baba Ji ) के साथ श्री गंगा मइयाजी से मिलने जा रहे होते हैं वो महाराजजी से विनती करते हैं कि आप हमारे ही गांव में आकर रहें | उनका निवेदन स्वीकार कर श्री नीम करोली बाबा जी ( Shree Neem Karoli Baba Ji ) फरुखाबाद जनपद के नीब करौरी गांव में आ जाते हैं | अब वहां एक विशाल मंदिर बन चुका है | श्री नीम करोली बाबाजी गांव वालों से एक विशाल गुफा बनाने को कहते हैं | महाराजजी गुफा में जाकर घंटों तपस्या करने लगते हैं |
ट्रेन रोकने की श्री नीम करोली बाबाजी की घटना विश्व स्तर पर चर्चा का विषय बन जाती है और महाराजजी श्री नीब करौरी बाबाजी के नाम से विश्व प्रसिद्ध हो जाते हैं | यह खबर उनके गांव पहुंचती है तो उनके परिवार वाले और उनके पिताजी कहते हैं कि हम भी श्री नीब करौरी बाबाजी से मिलकर उनसे अपने पुत्र के बारे में पूछेंगे | बाबाजी से अपने पुत्र के बारे में पूछने के लिए उनके पिताजी नीब करौरी ग्राम पहुंचते हैं और वहां वो अपने पुत्र को पहचान लेते हैं | पिता और पुत्र का सुखमय मिलन होता है और अपने पिताजी के आदेश पर वो अपने गांव लौटने को तैयार हो जाते हैं |श्री नीम करोली बाबाजी पिताजी से कहते हैं कि मैं गांव भी आता – जाता रहूंगा और जनकल्याण के काम भी करता रहूंगा | कुछ दिनों के बाद श्री नीम करोली बाबाजी नीब करौरी गांव वापस लौट आते हैं और इसके साथ ही उनका गृहस्थ आश्रम और जनकल्याण का कार्य और तपस्या साथ-साथ चलती रहती है |
सन् 1935 में बाबाजी मानव देह लीला को आगे बढ़ाने के लिए नीब करौरी गांव को अलविदा कह देते हैं | 1935 में श्री नीम करोली बाबाजी फतेहगढ़ किलाघाट आजाते हैं | किलाघाट में बाबाजी ने गौ सेवा की और वहां एक आश्रम भी बनाया हुआ है | वहां पर श्री नीम करोली बाबाजी ने जो गायेँ पाली थीं वो श्री नीम करोली बाबाजी की सभी बातें मानती थीं | श्री नीम करोली बाबा जी ( Shree Neem Karoli Baba Ji ) जनकल्याण का कार्य और तपस्या करते- करते गांव के प्रधान भी बने | एक समय में श्री नीम करोली बाबा जी ( Shree Neem Karoli Baba Ji ) कई जगहों पर एक साथ देखे जा सकते थे | सन् 1962 में बाबाजी विश्व-प्रसिद्ध कैंची धाम का निर्माण करवाते हैं और सन् 1965 में नैनीताल में हनुमानगढ़ी मन्दिर का निर्माण करवाते हैं |
श्री नीम करोली बाबाजी ( Shree Neem Karoli Baba Ji ) की सन्तान
सन् 1925 में बाबाजी को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है और उनका नाम रखा जाता है श्री अनेग सिंह शर्मा जी | सन् 1937 मे श्री नीम करोली बाबा जी ( Shree Neem Karoli Baba Ji ) को दूसरे पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है जिनका नाम रखा जाता है श्री धर्म नारायण शर्मा जो वृंदावन में बाबाजी का कार्यभार संभाल रहे हैं | सन् 1945 में श्री नीम करोली बाबा जी ( Shree Neem Karoli Baba Ji ) को पुत्री रत्न की प्राप्ति होती है जिनका नाम रखा जाता है श्री गिरजा देवी |
श्री नीम करोली बाबाजी ( Shree Neem Karoli Baba Ji ) ने अपनी मानव देह लीला कैसे समाप्त की ?
11 सितम्बर 1973 को श्री बाबाजी ने अपनी मानव देह लीला वृंदावन में समाप्त की थी | उस समय श्री महाराजजी कैंची धाम से चले थे और उन्होंने अपने अनन्य भक्त श्री जगमोहन शर्माजी के पास आगरा में अल्प-प्रवास किया था | मानव देह लीला का समापन श्री महाराजजी ने “ॐ जय जगदीश हरे जगदीश हरे” कहकर किया था |
आज भी श्री बाबाजी हम सबके बीच में हैं सृष्टि के कण-कण में विराजमान हैं और अपने भक्तों पर और सभी लोगों पर चमत्कार करते रहते हैं |
जय श्री नीम करोली बाबा जी