श्री लक्ष्मण भगवानजी किसके अवतार हैं ?
हिंदू धर्म में छोटे भाई को भगवान श्री लक्ष्मण के जैसे बनने की सलाह दी जाती है | भगवान श्री लक्ष्मण की मिसाल जग जाहिर है, उन्होंने श्री राम भगवान को वनवास जाता देख अपने सभी सुख आराम त्याग दिए और प्रभु के साथ 14 वर्ष का वनवास काटा और रावण के वध में एक अहम भूमिका निभाई | भगवान श्री लक्ष्मण जी श्री शेषनाग जी के अवतार हैं , जिनका जन्म त्रेता युग में हुआ था |
श्री लक्ष्मण भगवानजी का जन्म और माता-पिता
श्री लक्ष्मण भगवान जी महाराज श्री दशरथ जी और महारानी श्री सुमित्रा जी के पुत्र हैं | इनका जन्म 11 जनवरी 5114 ईसा पूर्व सुबह 11:30 बजे कर्क लग्न और अश्लेषा नक्षत्र में हुआ था |
श्री लक्ष्मण भगवानजी और श्री उर्मिला माताजी का विवाह
भगवान श्री लक्ष्मण जी का विवाह माता श्री उर्मिला जी के साथ हुआ था |श्री उर्मिला माता जी ,श्री सीता माता जी की छोटी बहन थीं ,उनकी माता का नाम श्री सुनैना और पिता का नाम राजा श्री जनक था |
श्री लक्ष्मण भगवानजी और श्री उर्मिला माताजी की सन्तान
भगवान श्री लक्ष्मण और माता श्री उर्मिला के दो पुत्र श्री अंगद और श्री चंद्रकेतु और एक पुत्री श्री सोमदा हुई श्री अंगद ने अंगदियापुरी और श्री चंद्रकेतु ने चंद्रकांतापुरी की स्थापना की थी ,जिसे चंद्रावती भी कहा गया |
श्री लक्ष्मण भगवानजी और श्री उर्मिला माताजी के त्याग और समर्पण की कथा
माता श्री उर्मिला और प्रभु श्री लक्ष्मण जी का जीवन बलिदान त्याग और समर्पण की एक मिसाल है और आज की पीढ़ी के लिए उन दोनों का व्यक्तित्व सम्माननीय और पूजनीय होना चाहिए | कहा जाता है की जन्म के बाद प्रभु श्री राम , श्री भरत और श्री शत्रुघ्न सामान्य शिशुओं की तरह थोड़ी देर रो कर चुप हो गए परंतु श्री लक्ष्मण रोते ही रहे और जैसे ही उन्हें प्रभु श्री राम के बगल में लिटाया गया उन्होंने रोना बंद कर दिया तब से ही प्रभु श्री लक्ष्मण प्रभु श्री राम की परछाई बनकर रह रहे हैं |जब पिता के आदेश से प्रभु श्री राम माता श्री सीता के साथ वन की तरफ प्रस्थान कर रहे थे तब श्री लक्ष्मण ने अपने अग्रज श्री राम के साथ वन में जाने का निर्णय ले लिया | श्री लक्ष्मण जी की पत्नी भी उनके साथ वन चलने का आग्रह करने लगीं किंतु श्री लक्ष्मण ने यह कहकर मना कर दिया कि वह भाई और भाभी की सेवा करने के लिए जा रहे हैं | श्री उर्मिला जी बोलीं कि प्रभु श्री लक्ष्मण बेशक भाई और भाभी की सेवा करें परंतु वे तो अपने पति की सेवा के लिए उनके साथ वन जाएंगी तब श्री लक्ष्मण जी ने श्री उर्मिला जी को समझाया की प्रभु श्री राम और माता श्री सीता के जाने से घर और राज्य को संभालने की जिम्मेदारी उन्हीं की है और कहा कि माता श्री सीता के पीछे से तुम्हें ही परिवार ,सभी माताओं और पिता श्री का ध्यान रखना है | श्री उर्मिला जी को अपनी पति की आज्ञा का पालन करने के अलावा और कोई विकल्प नजर नहीं आया अतः उन्होंने दुखी मन से सहमति तो दे दी परंतु श्री उर्मिला जी बड़ी उलझन में पड़ गईं कि बिना पति और बड़ी बहन के वे अकेले परिवार को कैसे संभालेंगीं, तत्काल ही वह अपनी बड़ी बहन माता श्री सीता जी के पास गईं और अपने मन की बात कही तब माता श्री सीता जी ने समझाया कि वह अकेली सब कुछ कर सकती हैं जिसकी अपेक्षा उनसे की जा रही है माता श्री सीता जी ने अपना एक वरदान भी श्री उर्मिला जी को दे दिया जिसमें वह एक साथ तीन कम कर सकती हैं और कहा कि यह वरदान तुम्हें प्रजा और परिवार की सेवा करने के लिए काफी सहायक होगा | वनवास जाते समय श्री लक्ष्मण जी ने श्री उर्मिला जी से एक वचन भी लिया कि वे उनके पीछे से कभी भी आंसू नहीं बहायेंगीं क्योंकि श्री लक्ष्मण जी का मानना था कि अगर वह अपने दुख में ही डूबी रहेंगीं तो परिजनों का ख्याल नहीं रख पायेंगी | अपने पति को 14 वर्षों के लिए अपने से दूर जाने देना और उसके वियोग में आंसू भी ना बहा पाना किसी नव विवाहिता के लिए कितना पीड़ा दायक हो सकता है | श्री उर्मिला जी ने महाराज श्री दशरथ जी के स्वर्ग सिधारने पर भी एक आंसू नहीं बहाया | यह सब हो जाने के बाद श्री उर्मिला जी के पिता श्री जनक जी उन्हें वापस मिथिला ले जाने के लिए आए ताकि मां और सखियों के सानिध्य में पति वियोग का एहसास कम होगा परंतु श्री उर्मिला जी ने यह कहते हुए मना कर दिया कि अब पति के परिजनों के साथ रहना और उनका दुख बांटना ही उनका धर्म है यह सब बातें हमें बताती हैं कि श्री उर्मिला जी कितनी बड़ी पतिव्रता थीं |
रामायण काल में जितनी तपस्या श्री उर्मिला जी ने की थी उससे कहीं ज्यादा तप श्री लक्ष्मण जी ने किया था | एक बार प्रभु श्री राम जी के राजतिलक के उपरांत श्री अगस्त्य मुनि अयोध्या आए और लंका युद्ध का प्रसंग छिड़ गया तब भगवान श्री राम ने बताया कि उन्होंने कैसे रावण और कुंभकरण जैसे प्रचंड वीरों का वध किया और श्री लक्ष्मण जी ने भी इंद्रजीत और अतिकाय जैसे शक्तिशाली असुरों को मारा | श्री अगस्त्य मुनि बोले प्रभु बेशक रावण और कुंभकरण प्रचंड वीर थे लेकिन सबसे बड़ा वीर तो मेघनाद ही था उसने अंतरिक्ष में स्थित होकर श्री इंद्र से युद्ध किया था और उन्हें बांधकर लंका ले आया था | श्री ब्रह्मा जी ने इंद्रजीत से दान के रूप में श्री इंद्र जी को मांगा तब श्री इंद्र जी मुक्त हुए थे ,श्री लक्ष्मण जी ने उसका वध किया इसलिए वह सबसे बड़े योद्धा हुए प्रभु श्री राम को आश्चर्य हुआ लेकिन भाई की वीरता की प्रशंसा सुनकर वह खुश थे ,फिर भी उनके मन में जिज्ञासा पैदा हुई कि आखिर श्री अगस्त्य मुनि ऐसा क्यों कह रहे हैं कि इंद्रजीत का वध रावण से ज्यादा मुश्किल था | श्री अगस्त मुनि ने कहा कि प्रभु इंद्रजीत को वरदान था कि उसका वध वही कर सकता है जो 14 वर्षों तक ना सोया हो ,जिसने 14 वर्षों तक किसी स्त्री का मुख ना देखा हो और जिसने 14 वर्षों तक भोजन ना किया हो इस पर प्रभु श्री राम ने कहा की वनवास काल में 14 वर्षों तक मैं नियमित रूप से लक्ष्मण के हिस्से के फल – फूल उसे देता रहा ,मैं सीता के साथ एक कुटिया में रहता था, बगल की कुटिया में ही लक्ष्मण रहते थे ,फिर भी लक्ष्मण ने सीता का मुख ना देखा हो और 14 वर्षों तक सोए ना हो ऐसा कैसे संभव है | श्री अगस्त मुनि सारी बात समझ कर मुस्कुराए और कहा कि प्रभु से कुछ छुपा है भला दरअसल सभी लोग प्रभु श्री राम का गुणगान करते थे और प्रभु यह चाहते थे कि श्री लक्ष्मण के तप और वीरता की चर्चा भी अयोध्या के घर-घर में हो | श्री अगस्त मुनि ने कहा की क्यों ना श्री लक्ष्मण जी से पूछा जाए ,श्री लक्ष्मण जी आए प्रभु श्री राम ने कहा कि आप से जो पूछा जाए उसे सच-सच कहिएगा ,प्रभु ने पूछा कि हम तीनों 14 वर्षों तक साथ रहे ,फिर भी तुमने सीता का मुंह कैसे नहीं देखा ,फल दिए गए फिर भी तुम अनहरी कैसे रहे और 14 साल तक सोए नहीं यह कैसे हुआ | श्री लक्ष्मण जी ने कहा कि भैया जब हम भाभी को तलाशते हुए ऋषिमुख पर्वत गए तो श्री सुग्रीव ने हमें उनके आभूषण दिखाकर पहचानने को कहा, आपको स्मरण तो होगा ही कि मैं सिवाय उनके पैरों के नूपुर के कोई और आभूषण नहीं पहचान पाया था क्योंकि मैंने कभी उनके चरणों के ऊपर देखा ही नहीं | 14 वर्षों तक नहीं सोने के बारे में उन्होंने बताया कि आप और माता एक कुटिया में सोते थे ,मैं रात भर धनुष पर बाण चढ़ाए पहरेदारी में खड़ा रहता था ,निद्रा ने मेरी आंखों पर कब्जा करने की कोशिश की तो मैं निद्रा को अपने बाणों से भेद दिया था ,निद्रा ने हार स्वीकार कर कहा कि वह 14 साल तक मुझे स्पर्श तक नहीं करेंगी लेकिन जब श्री राम का अयोध्या में राजा अभिषेक हो रहा होगा और मैं उनके पीछे सेवक की तरह छत्र लेकर खड़ा रहूंगा तभी मुझे घेरेंगी ,आपको याद होगा कि राज्याभिषेक के समय मेरे हाथ से छात्र गिर गया था |14 वर्षों तक अनहरी रहने के बारे में उन्होंने बताया कि मैं जो फल- फूल लता था आप उसके तीन भाग करते थे ,एक भाग देकर आप मुझसे कहते थे कि लक्ष्मण फल रख लो फिर बिना आपकी आज्ञा के मैं उन्हें कैसे खाता ,मैं उन्हें संभाल कर रख देता था, सभी फल इस कुटिया में अभी भी रखे हुए हैं | प्रभु के आदेश पर श्री लक्ष्मण जी चित्रकूट की कुटिया में से वे सारे फलों की टोकरी ले आए और दरबार में रख दिया फलों की गिनती हुई तो 7 दिन के हिस्से के फल नहीं थे ,प्रभु ने कहा इसका अर्थ है कि तुमने 7 दिन तक आहार लिया था ,श्री लक्ष्मण जी ने 7 दिनों का फल कम होने के बारे में बताया कि उन 7 दिनों तक फल आए ही नहीं ,पहला दिन आप याद करिए जिस दिन हमें पिताश्री के स्वर्गवास की सूचना मिली हम निराहारी रहे, दूसरा दिन जिस दिन रावण ने माता श्री सीता जी का हरण किया उस दिन फल लाने कौन जाता ,तीसरा दिन जिस दिन समुद्र की साधना कर आप उनसे राह मांग रहे थे, चौथा दिन जिस दिन आप इंद्रजीत के नागपोश में बंध कर दिनभर अचेत रहे ,पांचवा दिन जिस दिन इंद्रजीत ने मायावी श्री सीता जी को काटा था और हम शोक में रहे ,छठा दिन जिस दिन रावण ने मुझे शक्ति मारी थी, सातवां दिन जिस दिन आपने रावण वध किया था इन सभी दिनों में हमें भोजन की शुद्ध कहां थी | श्री विश्वामित्र मुनि से मैंने एक अतिरिक्त विद्या का ज्ञान लिया था बिना आहार किए जीने की विद्या उसके प्रयोग से मैं 14 साल तक अपनी भूख को नियंत्रित कर सका और जिससे इंद्रजीत मारा गया | भगवान श्री राम ने श्री लक्ष्मण जी की तपस्या के बारे में सुनकर उन्हें अपने हृदय से लगा लिया | श्री उर्मिला जी ने भी अपने पति को अपना कर्तव्य पूरा करने में मदद की और अपनी जिंदगी के महत्वपूर्ण 14 वर्षों का बलिदान दिया |
एक अन्य कथा जिसका वर्णन श्री रामचरितमानस में सीधे-सीधे नहीं किया गया है के अनुसार श्री लक्ष्मण जी के मेघनाद पर विजय का कारण उनकी पत्नी श्री उर्मिला का पतिव्रत धर्म था | मेघनाथ के वध के बाद जब उनका शव श्री राम के युद्ध शिविर में रखा था और जब मेघनाद की पत्नी सुलोचना शव लेने आई तब अपने पति के शव को छलनी हुआ देख बड़ी व्यथित हो उठी और श्री लक्ष्मण जी से बोली की श्री सुमित्रानंदन आप भूल कर भी मेघनाद के वध का गर्व मत करना यह तो दो पतिव्रता नारियों का भाग्य था |
श्री लक्ष्मण भगवानजी का श्री निद्रा देवी जी से मांगा गया वरदान जिसके फलस्वरूप श्री उर्मिला माताजी 14 वर्षों तक सोती रहीं
एक कथा के अनुसार रावण के पुत्र मेघनाद को यह वरदान था कि जो व्यक्ति 14 वर्षों तक सोया ना हो वही उसे हरा सकता है कहते हैं कि श्री लक्ष्मण अपने भाई श्री राम और भाभी श्री सीता की सुरक्षा और सेवा में इतना लगे रहे कि वह 14 वर्षों तक सो ही ना पाए कथा अनुसार उनके बदले श्री उर्मिला जी 14 वर्षों तक सोती रहीं ,जब रावण की मौत के बाद श्री राम ,श्री सीता और श्री लक्ष्मण वापस अयोध्या लौट आए और वहां प्रभु श्री राम के राजतिलक की तैयारी होने लगी उस समय श्री लक्ष्मण जोर-जोर से हंसने लगे | जब श्री लक्ष्मण जी से इस हंसी का कारण पूछा तो उन्होंने जो कहा की सारी उम्र उन्होंने इसी घड़ी का इंतजार किया था कि अब मैं श्री राम का राजतिलक होते हुए देखूंगा लेकिन अब उन्हें श्री निद्रा देवी को दिया हुआ वह वचन पूरा करना होगा जो उन्होंने वनवास में श्री निद्रा देवी को दिया था | वनवास की पहली रात में जब प्रभु श्री राम और माता श्री सीता विश्राम करने अपनी कुटिया में चले गए तो श्री लक्ष्मण जी कुटिया के बाहर एक प्रहरी के रूप में पहरा दे रहे थे तभी उनके पास श्री निद्रा देवी प्रकट हुईं थीं तब श्री लक्ष्मण जी ने श्री निद्रा देवी जी से यह वरदान मांगा कि उन्हें 14 वर्षों तक के लिए निद्रा से मुक्त कर दें तो श्री निद्रा देवी ने उनकी इस इच्छा को स्वीकार करते हुए कहा था कि उनके हिस्से की निद्रा को किसी न किसी को लेना ही होगा तब श्री लक्ष्मण जी ने श्री निद्रा देवी से विनती की थी कि उनके हिस्से की निद्रा को उनकी पत्नी श्री उर्मिला जी को दे दिया जाए श्री निद्रा देवी ने उनकी यह बात एक शर्त पर मानी थी कि जैसे ही वह अयोध्या लौटेंगे श्री उर्मिला जी की नींद टूट जाएगी और उन्हें सोना होगा | श्री लक्ष्मण जी इस बात पर हंस रहे थे कि अब उन्हें सोना होगा और वह श्री राम का राजतिलक नहीं देख पाएंगे कहते हैं कि उनके स्थान पर श्री उर्मिला जी ने यह रस्म देखी थी |
श्री लक्ष्मण भगवानजी ने अपनी मानव देह लीला कैसे समाप्त की
वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब प्रभु श्री राम अयोध्या के राजा थे तब एक दिन श्री काल तपस्वी के रूप में अयोध्या आए | श्री काल ने प्रभु श्री राम से अकेले में बात करने की इच्छा प्रकट की और कहा कि यदि कोई हमें आपसे बात करता हुआ देख ले तो आप उसे मृत्यु दंड देंगे ,आप हमें वचन दीजिए | प्रभु श्री राम ने श्री काल जी को यह वचन दे दिया और प्रभु श्री लक्ष्मण जी को दरवाजे पर पहरा देने के लिए खड़ा कर दिया ताकि कोई अंदर ना आ सके जब श्री काल और श्री राम भगवानजी बात कर रहे थे तभी महर्षि दुर्वासा वहां आ पहुंचे, वे श्री राम से अति शीघ्र मिलना चाहते थे | श्री लक्ष्मण जी ने उनसे कहा कि हे प्रभु आपको जो भी कार्य है मुझे कहिए ,मैं आपकी सेवा करूंगा ,प्रभु श्री राम थोड़ा व्यस्त हैं | यह बात सुनकर महर्षि दुर्वासा अत्यंत क्रोधित हो गए और उन्होंने कहा कि अगर इसी समय तुमने जाकर श्री राम को मेरे आने के बारे में नहीं बताया तो मैं तुम्हारे पूरे राज्य को श्राप दे दूंगा ,पूरा अयोध्या जला डालूंगा | श्री लक्ष्मण भगवानजी ने सोचा कि अकेले मेरी ही मृत्यु हो यह अच्छा है किंतु प्रजा का नाश नहीं होना चाहिए यह सोचकर श्री लक्ष्मण ने प्रभु श्री राम को श्री दुर्वासा ऋषि के आने की सूचना दे दी | श्री लक्ष्मण को देखते ही श्री काल अंतर्ध्यान हो गए | फिर महर्षि दुर्वासा की इच्छा पूरी करने के बाद श्री राम को अपने वचन का ध्यान आया तब श्री लक्ष्मण ने कहा कि आप निश्चिंत होकर मुझे मृत्यु दंड दे दीजिए ,जिससे आपकी प्रतिज्ञा भंग ना हो और रघुकुल के वचन देकर उसे निभाने की नीति अकंटक बनी रहे | भगवान श्री राम काफी दुविधा में थे वह अपने प्रिय भाई को मृत्युदंड कैसे देते ,तब प्रभु श्री राम ने यह बात महर्षि वशिष्ठ को बताइए तो उन्होंने कहा कि आप श्री लक्ष्मण का त्याग कर दीजिए, साधु पुरुष का त्याग व वध एक ही समान है | प्रभु श्री राम ने ऐसा ही किया | श्री राम द्वारा त्यागे जाने से दुखी होकर श्री लक्ष्मण सीधे श्री सरयू नदी के तट पर पहुंचे और और योग क्रिया द्वारा अपना शरीर त्याग दिया |