श्री हनुमान भगवानजी (Shree Hanuman Bhagwan Ji) को प्रभु श्री राम के परम् भक्त के रुप मे जाना जाता है | आइए इस लेख में जानते हैं उनके बारे में –
श्री हनुमान भगवान जी (Shree Hanuman Bhagwan Ji) के जन्म की कथा
श्री हनुमान भगवान जी (Shree Hanuman Bhagwan Ji) का जन्मोत्सव चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है | इस दिन सभी भक्त श्री बजरंगबली को प्रसन्न करने के लिए विधि -विधान से पूजा -आराधना करते हैं और उपवास रखते हैं |
श्री हनुमान भगवानजी के जन्म के विषय में काफी कथाएं प्रचलित हैं जिनमें से मुख्य इस प्रकार हैं –
1- एक प्रचलित कथा के अनुसार पवनपुत्र श्री बजरंगबली की माता श्री अंजनी अपने पूर्वजन्म में श्री इंद्र भगवान के महल में अप्सरा थीं उनका नाम श्री पुंजिकस्थला था उनका रूप बहुत आकर्षक और स्वभाव बहुत चंचल था | एक बार चंचलता के कारण उन्होंने तपस्या में लीन एक ऋषि के साथ अभद्र व्यवहार किया तब ऋषि ने क्रोध में श्री पुंजिकस्थला को श्राप दिया कि वो वानरी का रूप धारण कर लेंगी | ऐसा श्राप सुनकर पुंजिकस्थला को आत्मग्लानि हुई और उन्होंने ऋषि से क्षमा मांग कर श्राप को वापस लेने के लिए विनती की | तब ऋषि ने दया भाव से कहा कि तुम्हारा वानर रूप भी परम तेजस्वी होगा और तुम एक बहुत ही कीर्तिवान और यशस्वी पुत्र को जन्म दोगी |
तपस्या में लीन ऋषि से श्राप मिलने के बाद एक बार श्री पुंजिकस्थला से भगवान इंद्र ने वरदान मांगने को कहा तब पुंजिकस्थला ने श्री इंद्र भगवानजी से यह आग्रह किया कि यदि सम्भव हो तो वो उसे ऋषि द्वारा दिए गए श्राप से मुक्ति प्रदान करें | श्री इंद्र भगवानजी के पूछे जाने पर श्री पुंजिकस्थला जी ने बताया कि मुझे प्रतीत हुआ कि वो ऋषि एक वानर हैं और मैंने उन ऋषि पर फल फेंकना शुरू कर दिया परन्तु वो कोई साधारण वानर नहीं अपितु परम् तपस्वी साधू थे | मेरे द्वारा तपस्या भंग होने के कारण उन्होंने मुझे श्राप दिया कि जब भी मुझे किसी से प्रेम होगा तो मै वानर का रूप धारण कर लूंगी मेरा ऐसा रूप होने के बाद भी उस व्यक्ति का प्रेम मेरे प्रति कम नहीं होगा | श्री इन्द्र भगवानजी ने पूरा वृतांत सुनने के पश्चात कहा कि तुम्हे धरती पर जाकर निवास करना होगा वहां तुम्हे एक राजकुमार से प्रेम होगा जो तुम्हारा पति बनेगा, विवाह के पश्चात् तुम श्री शंकर भगवानजी के अवतार को जन्म दोगी, उसके पश्चात् तुम्हे श्राप से मुक्ति मिल जाएगी | श्री इन्द्र भगवानजी के वचन सुनकर श्री पुंजिकस्थला श्री अंजनी के रूप में धरती पर रहने लगीं | एक बार वन में उन्होंने एक युवक को देखा जिसकी ओर वह आकर्षित हुईं जैसे ही उस युवक ने श्री अंजनी को देखा श्री अंजनी का चेहरा वानर का हो गया | श्री अंजनी ने उस युवक से अपना चेहरा छिपाया, जैसे ही वो युवक पास आया तो श्री अंजनी ने उससे कहा कि मै बहुत बदसूरत हूं परंतु जब श्री अंजनी ने उस युवक की ओर देखा तो वो भी वानर के रूप मे ही था | उस युवक ने बताया कि मै वानर राज केसरी हूं और जब चाहूं तब मनुष्य रूप धारण कर सकता हूं | दोनों को एक दूसरे से प्रेम हुआ और वे विवाह के बंधन में बंध गए | कुछ समय पश्चात् जब दोनों सन्तान सुख से वंचित रहे तब श्री अंजनी श्री मातंग ऋषि के पास पहुंची और अपनी पीड़ा बताई | तब श्री मातंग ऋषि ने उन्हें नारायण पर्वत पर स्थित स्वामी तीर्थ जाकर 12 वर्ष तक उपवास करके तप करने को कहा | इस प्रकार श्री वायु देव ने श्री अंजनी की तपस्या से प्रसन्न होकर वरदान दिया कि तुम्हे अग्नि,सूर्य, सुवर्ण, वेद – वेदांगों का मर्मज्ञ और बलशाली पुत्र प्राप्त होगा | यह वरदान प्राप्त होने के पश्चात् वो श्री शंकर भगवानजी की तपस्या करने लगीं तब श्री शंकर भगवानजी ने प्रसन्न होकर उन्हें वरदान मांगने के लिए कहा और फिर श्री अंजनी जी ने ऋषि द्वारा मिले हुए श्राप के बारे में बताते हुए कहा कि इस श्राप से मुक्त होने के लिए मुझे श्री शंकर भगवानजी के अवतार को जन्म देना है इसलिए हे महादेव कृपया आप बालरूप में मेरे गर्भ से जन्म लें | श्री शंकर भगवानजी ने श्री अंजनी को वरदान दिया और उनके गर्भ से श्री हनुमान भगवानजी के रूप में जन्म लिया | श्री अंजनी पुत्र होने के कारण श्री हनुमान भगवानजी को श्री आंजनेय भी कहा जाता है |
2- एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार वानर राज श्री केसरी प्रभास तीर्थ के पास पहुंचे | वहां उन्होंने ऋषियों को देखा जो समुद्र के किनारे पूजा कर रहे थे | तभी वहां पर एक विशालकाय हाथी आ गया जो ऋषियों की पूजा में विघ्न डालने लगा सभी उस हाथी से परेशान हो गाए |तब वानर राज केसरी ये सभी दृश्य एक पर्वत के शिखर से देख रहे थे | उन्होंने विशालकाय हाथी के दांत तोड़ दिए और उसे मृत्यु के घाट उतार दिया | ऋषिगण श्री वनरराज से बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें इच्छा अनुसार रूप धारण करने वाला, पवन के समान पराक्रमी तथा रूद्र के समान पुत्र का वरदान दिया |
3- एक कथा के अनुसार एक दिन माता श्री अंजनी मानव रूप धारण कर पर्वत के शिखर की ओर जा रही थीं | उस समय सूर्यास्त होने वाला था | माता श्री अंजनी डूबते सूरज की लालिमा को निहारने लगीं उसी समय तेज हवा चलने लगी और उनके वस्त्र उड़ने लगे | हवा इतनी तेज थी कि वे चारों ओर देख रहीं थीं कि कहीं उन्हें कोई देख तो नही रहा है लेकिन उन्हे कोई दिखाई नही पड़ा, हवा से तब पत्ते भी नही हिल रहे थे | तब माता श्री अंजनी को लगा कि शायद कोई मायावी राक्षस अदृश्य होकर ये सब कर रहा था | उन्हें क्रोध आया और उन्होंने कहा कि आखिर ऐसा कौन है जो एक पति परायण स्त्री का अपमान कर रहा है | तब श्री पवनदेव प्रकट हुए और हाथ जोड़ते हुए श्री अंजनी माताजी से क्षमा मांगने लगे उन्होंने कहा कि ऋषियों ने आपके पति को मेरे समान पराक्रमी पुत्र का वरदान दिया है और इसीलिए मैं विवश हूं और मुझे आपके शरीर को स्पर्श करना पड़ा, मेरे अंश से आपको एक महातेजस्वी बालक प्राप्त होगा | उन्होंने यह भी कहा कि मेरे स्पर्श से भगवान श्री रूद्र आपके पुत्र के रूप में जन्म लेंगे | इस तरह वनरराज श्री केसरी और माता श्री अंजना के यहां भगवान श्री शिव ने श्री हनुमान भगवानजी के रूप में जन्म लिया |
4- अब बात करते हैं उस कथा के बारे में जो कि समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है | मान्यताओं एवम प्रचलित कथाओं के वर्णन के अनुसार प्राचीन काल में समुद्र मंथन के उपरांत भगवान श्री शिव के निवेदन पर भगवान श्री विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया था, जिसकी सहायता से भगवान श्री विष्णु ने देवताओं को अमृतपान कराया था परन्तु भगवान श्री विष्णु का मोहिनी रूप देखकर भगवान श्री शंकर भी कामातुर हो गए थे और इससे उनका वीर्यपात हो गया था | इसी वीर्य को लेकर भगवान श्री पवन ने भगवान श्री शिव के आदेश पर इसे वनरराज श्री केसरी की पत्नी श्री अंजनी जी के गर्भ में स्थापित कर दिया था | जिसके बाद देवी अंजना के गर्भ से वानर रूप में स्वयं श्री महादेव ने ग्यारहवें रूद्र अवतार श्री हनुमान भगवानजी के रूप में जन्म लिया |
5- एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार राजा श्री दशरथ को कोई सन्तान नहीं हुई तब उनके कुलगुरु महर्षि वशिष्ठ ने पुत्र यज्ञ के आयोजन का परामर्श दिया | दूर – दूर से इस यज्ञ में भाग लेने के लिए एक से एक विद्वान महात्मा आए तथा यज्ञ को सफलतापूर्वक पूरा किया | यज्ञ की समाप्ति के बाद उसी कुंड में अग्नि से अग्निदेव प्रसाद रूपी खीर को लेकर प्रकट हुए और प्रसाद को राजा की तीनों रानियों श्री कौशल्या, श्री सुमित्रा तथा श्री कैकेई में बांट दिया | रानी श्री कौशल्या तथा रानी श्री कैकेई ने तो अपना अपना भाग खा लिया किन्तु जैसे ही रानी सुमित्रा जी ने अपने हिस्से का प्रसाद उठाया तभी अचानक आकाश से गरुण पक्षी आया और उस प्रसाद को अपनी चोंच में दबाकर पुनः आकाश की तरफ उड़ गया ठीक उसी समय एक पर्वतीय स्थान पर महारानी श्री अंजना पुत्र प्राप्ति हेतु तपस्या कर रही थीं | वह प्रसाद गरुण से छूटकर उनकी गोद में आ गिरा | श्री अंजना को लगा की यह उनकी तपस्या का फल है उन्होंने उस प्रसाद को ईश्वर का आशीर्वाद समझकर उसे खा लिया जिससे उन्हें श्री हनुमान भगवानजी पुत्र रूप में प्राप्त हुए | उधर श्री सुमित्रा जी को निराश देखकर रानी श्री कौशल्या तथा रानी श्री कैकेई ने रानी श्री सुमित्रा जी को आपने प्रसाद में से थोड़ा थोड़ा भाग दिया इसी कारण रानी श्री सुमित्रा जी को दो जुड़वा संतान के रूप में श्री लक्ष्मण भगवानजी और श्री शत्रुघ्न भगवानजी प्राप्त हुए साथ ही राजा श्री दशरथ की रानी कौशल्या को प्रभु श्री राम तथा रानी श्री कैकेई को श्री भरत पुत्र के रूप में प्राप्त हुए |
श्री हनुमान भगवान जी (Shree Hanuman Bhagwan Ji) का नाम श्री हनुमान कैसे पड़ा?
एक बार की बात है सूर्योदय होते ही श्री हनुमान भगवानजी (Shree Hanuman Bhagwan Ji) को भूख लगी | माता श्री अंजनी फल लाने गईं इधर लाल वर्ण के श्री सूर्य भगवानजी को फल समझकर श्री हनुमान भगवानजी उनको लेने के लिए आकाश में उछल गए उस दिन अमावस्या होने से श्री सूर्य भगवानजी को ग्रसने के लिए श्री राहू आये थे | किन्तु श्री हनुमान भगवानजी को दूसरा राहू मानकर वो भाग गये तब श्री इन्द्र भगवानजी ने श्री हनुमान भगवानजी पर वज्र प्रहार किया | उससे श्री हनुमान भगवानजी की ठोड़ी टेढ़ी हो गई जिससे ये श्री हनुमान कहलाए श्री इन्द्र भगवानजी की इस दृष्टता का दण्ड देने के लिए श्री पवन देव ने प्राणी मात्र का वायु संचार रोक दिया | तब श्री ब्रह्मा भगवानजी आदि सभी देवों ने श्री हनुमान भगवानजी को वर दिए | श्री ब्रह्मा भगवानजी ने अमितायु का, श्री इन्द्र भगवानजी ने वज्र से हत ना होने का, श्री सूर्य भगवानजी ने अपने सतांश तेज से युक्त और सम्पूर्ण शास्त्रों के विशेषज्ञ होने का, श्री वरुण भगवानजी ने पाश और जल से अभय रहने का , श्री यम भगवानजी ने यमदंड से अवध्य और पाश से नाश ना होने का, श्री कुबेर भगवानजी ने शत्रु मर्दिनी गदा से निशंख रहने का, श्री शंकर भगवानजी ने परम् और अजय योद्धाओं से जय प्राप्त करने का, श्री विश्वकर्मा भगवानजी ने असहय अस्त्र – शस्त्र और सभी प्रकार के यंत्र आदि से कुछ भी क्षति ना होने का वरदान दिया | इन वरदानों से आगे चलकर श्री हनुमान भगवान जी ने अत्यन्त पराक्रम के कार्य किए |
श्री हनुमान भगवान जी (Shree Hanuman Bhagwan Ji) के भाई
महाभारत काल में राजकुमार भीम अपने बल के लिए जाने जाते थे कहते हैं कि वे श्री हनुमान भगवानजी (Shree Hanuman Bhagwan Ji) के ही भाई हैं, इसके आलावा उनके पांच भाई और भी थे और वो पांचो ही विवाहित थे इस बात का उल्लेख ब्रह्माण्ड पुराण में मिलता है इस पुराण में श्री हनुमान भगवानजी के पिता श्री केसरी एवम उनके वंश का वर्णन मिलता है | इस पुराण के अनुसार सभी भाइयों में श्री बजरंगबली सबसे बड़े थे और श्री हनुमान भगवानजी को शामिल करने पर वनरराज श्री केसरी जी के 6 पुत्र थे | सबसे बड़े थे श्री बजरंगबली इनके बाद श्री मतिमान, श्री श्रुतिमान, श्री केतुमान, श्री गतिमान, श्री धृतिमान थे | इन सभी की संतानें भी थीं जिनसे इनका वंश वर्षों तक चला |
श्री हनुमान भगवान जी (Shree Hanuman Bhagwan Ji) को अपनी शक्तियां कैसे याद आईं?
श्री हनुमान भगवानजी (Shree Hanuman Bhagwan Ji) को कई देवताओं ने वरदान और अस्त्र -शस्त्र प्रदान किए थे इन वरदानों और अस्त्र -शस्त्र के कारण बचपन में श्री हनुमान भगवानजी उद्धम मचाने लगे थे खासकर वे ऋषियों के बगीचे में घुसकर फल -फूल खाते थे और बागीचा उजाड़ दिया करते थे | वे तप कर रहे मुनियों को तंग किया करते थे | उनकी शरारतें बढ़ती गईं तो मुनियों ने उनकी शिकायत पिता श्री केसरी जी से की | माता -पिता ने अपने बेटे को खूब समझाया कि बेटा ऐसा नही करते परन्तु श्री हनुमान भगवानजी शरारत करने से नही रुके तो एक दिन अंगिरा और भृगु वंश के ऋषियों ने कुपित होकर उन्हें श्राप दे दिया कि वे अपनी शक्तियों और बल को भूल जायेंगे परन्तु उचित समय पर कोई उनकी शक्तियों को याद दिलाएगा तो याद आजायेगी | फिर जब श्री हनुमान भगवानजी को श्री राम भगवानजी का कार्य करना था तो श्री जामवंत भगवानजी का श्री हनुमान भगवानजी से लम्बा संवाद होता है इस संवाद में वे श्री हनुमान भगवानजी के गुणों का बखान करते हैं और तब श्री हनुमान भगवानजी को अपनी शक्तियों का आभास होने लगता है | अपनी शक्तियों का आभास होते ही वीर श्री हनुमान भगवानजी विशाल रूप धारण करते हैं और समुंद्र को पार कर लंका जाने के लिए उड़ जाते हैं |
श्री हनुमान भगवान जी (Shree Hanuman Bhagwan Ji) के विवाह की कथा
पवनपुत्र श्री हनुमान भगवानजी (Shree Hanuman Bhagwan Ji) जिन्हें सबसे बड़े रामभक्त के रूप में पूजा जाता है, हम सभी हमेशा से यही सुनते आए हैं कि भगवान श्री हनुमान बचपन से ही बाल ब्रह्मचारी हैं और उन्होंने विवाह नहीं किया है लेकिन ये केवल आधा सत्य है क्योंकि हमारे शास्त्रों में श्री हनुमान भगवानजी के विवाह का उल्लेख मिलता है | विभिन्न शास्त्रों में मिलने वाले उल्लेख के अनुसार श्री हनुमान भगवानजी के 3 विवाह हुए थे |
पराशर संहिता में मिलने वाली एक कथा के अनुसार श्री हनुमान भगवानजी का विवाह हुआ था लेकिन फिर भी वो हमेशा ब्रह्मचारी ही रहे पराशर संहिता में उल्लेख मिलता है कि श्री हनुमान भगवानजी श्री सूर्य भगवानजी के शिष्य थे जो सूर्य देव से उनकी 9 विद्याओं का ज्ञान लेना चाहते थे |श्री सूर्य भगवानजी ने श्री हनुमान भगवानजी को 9 में से 5 विद्याओं का ज्ञान तो दे दिया लेकिन बाकी की बची 4 विद्याओं का ज्ञान वो भगवान श्री हनुमान को देने में असमर्थ थे क्योंकि इन विद्याओं का ज्ञान भगवान श्री सूर्य उन्ही शिष्यों को दे सकते थे जो विवाहित थे | ऐसे में श्री सूर्य भगवानजी ने श्री हनुमान भगवानजी के सामने विवाह करने का प्रस्ताव रखा | पहले तो भगवान श्री हनुमान नहीं माने लेकिन फिर विद्याओं का पूर्ण ज्ञान लेने के लिए वो अपने गुरु के इस प्रस्ताव को मान गए | इसके बाद श्री हनुमान भगवानजी के लिए योग्य कन्या की तलाश शुरू हुई जो पूरी हुई श्री सूर्य भगवानजी की पुत्री श्री सुवर्चला जी पर जाकर | श्री सूर्य भगवानजी ने श्री हनुमान भगवानजी से कहा कि सुवर्चला परम् तपस्वी और तेजस्वी है और उसका तेज तुम सहन नही कर सकते हो, सुवर्चला से विवाह के बाद तुम इस योग्य हो जाओगे कि शेष चार दिव्य विद्याओं का ज्ञान प्राप्त कर सको | श्री सूर्य भगवानजी ने श्री हनुमान भगवानजी को ये बताया कि सुवर्चला से विवाह के बाद भी तुम सदैव बाल ब्रह्मचारी ही रहोगे क्योंकि विवाह के बाद सुवर्चला पुनः तपस्या में लीन हो जाएगी | ये सब जानने के बाद भगवान श्री हनुमान विवाह के लिए तैयार हो गए और इस तरह भगवान श्री सूर्य ने भगवान श्री हनुमान और श्री सुवर्चला जी का विवाह करा दिया | विवाह के बाद श्री सुवर्चला जी पुनः तपस्या में लीन हो गईं और श्री हनुमान भगवानजी ने अपने गुरुदेव से शेष चार विद्याओं का ज्ञान भी प्राप्त कर लिया और इस प्रकार विवाह के बाद भी श्री हनुमान भगवानजी सदैव ब्रह्मचारी बने रहे |
इसके अलावा भगवान श्री हनुमान जी के दूसरे विवाह का उल्लेख पउम चरिउ से प्राप्त होता है | पउम चरिउ के अनुसार रावण और वरुण देव के बीच हुए युद्ध में श्री हनुमान भगवानजी ने वरुण देव की तरफ से रावण से युद्ध किया था परिणामस्वरूप इस युद्ध में रावण की हार हुई थी और युद्ध में हारने के बाद रावण ने अपनी दुहिता श्री अनंगकुसुमा का विवाह श्री पवनपुत्र से कर दिया था हालांकि इस विवाह के बाद भी भगवान श्री हनुमान जी ने कभी भी वैवाहिक जीवन नही जिया और वे सदैव ही भगवान श्री राम की पूजा में लीन रहे |
इसके अलावा इस महाकाव्य में उल्लेख मिलता है कि जब वरुण देव और रावण के बीच युद्ध हो रहा था तब श्री हनुमान भगवानजी के विजयी होने पर श्री वरुण भगवानजी अत्यंत प्रसन्न हुए थे और इस विजय से प्रसन्न होकर उन्होंने अपनी पुत्री सत्यवती का विवाह श्री हनुमान भगवानजी से कर दिया था |
श्री हनुमान भगवानजी ने भले ही तीन विवाह किए थे लेकिन उन्होंने अपनी पत्नियों के साथ कभी भी वैवाहिक जीवन व्यतीत नही किया और वे आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करते रहे और यही कारण है कि विवाह होने के बाद भी श्री हनुमान भगवानजी को ब्रह्मचारी के रूप में ही पूजा जाता है | यही नही आंध्र प्रदेश के खम्मम जिले में श्री हनुमान भगवानजी का एक प्राचीन मंदिर भी है इस मंदिर में श्री हनुमान भगवानजी और उनकी पत्नी और श्री सूर्य भगवानजी की पुत्री श्री सुवर्चला जी की मूर्ति रखी है | मान्यता है कि जो भी भक्त इस मंदिर में श्री हनुमान भगवानजी और उनकी पत्नी श्री सुवर्चला जी के दर्शन करता है उनके वैवाहिक जीवन की परेशानियां दूर हो जाती हैं और पति – पत्नी के बीच प्रेम बना रहता है |
श्री हनुमान भगवान जी (Shree Hanuman Bhagwan Ji) की सन्तान
श्री पवनपुत्र हनुमान भगवानजी (Shree Hanuman Bhagwan Ji) एक पुत्र के भी पिता हैं | श्री वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब माता सीता को वापस लाने तथा रावण को समाप्त करने हेतु प्रभु श्री राम और रावण की सेना में घमासान युद्ध हो रहा था उस समय रावण की सेना के सभी वीर और रावण के बन्धु एक के बाद एक आते और प्रभु श्री राम को परास्त करने का प्रयास करते परन्तु उन्हें इसमें सफलता कभी ना मिलती और यदि कोई संकट आ भी जाता तो उसका विनाश संकटमोचन श्री हनुमान भगवान कर ही देते |
एक बार प्रभु श्री राम और रावण के बीच युद्ध में रावण के भाई अहिरावण ने छलपूर्वक श्री राम भगवानजी और श्री लक्ष्मण भगवानजी को बन्दी बना लिया और बंधक बनाकर अपने साथ पाताल लोक ले गया था तब श्री हनुमान भगवानजी उन्हें छुड़ाने के लिए पाताल लोक जा पहुंचे जहां उनका सामना श्री मकरध्वज से हुआ जिसे अहिरावण ने पाताल लोक का प्रहरी नियुक्त कर रखा था | श्री हनुमान भगवानजी के वहां पहुंचने पर श्री मकरध्वज ने उन्हें अन्दर जाने से रोक दिया इस पर श्री हनुमान भगवानजी और श्री मकरध्वज के बीच घमासान युद्ध हुआ अंततः श्री हनुमान भगवानजी विजयी हुए | श्री हनुमान भगवानजी श्री मकरध्वज की विचित्र काया को देख कर अत्यन्त आश्चर्यचकित थे क्योंकि उनमें एक वानर और एक मछली दोनो का ही रूप मिश्रित था युद्ध समाप्ति के बाद जब श्री हनुमान भगवानजी ने श्री मकरध्वज से उसका परिचय पूछा तो उसने स्वयं को श्री हनुमान भगवानजी का पुत्र बताया | श्री हनुमान भगवानजी ये सुनकर घोर आश्चर्य में पड़ गए उन्होंने क्रोधित होते हुए पूछा क्या तुम नहीं जानते कि हनुमान बाल ब्रह्मचारी हैं तुम भला ये कैसे कह सकते हो कि तुम हनुमान के पुत्र हो ? तब श्री मकरध्वज ने श्री हनुमान भगवानजी को अपने जन्म की पूरी कथा सुनाई जिसको सुनते हुए श्री हनुमान भगवानजी ने ध्यान लगाया और देखा कि जब श्री हनुमान भगवानजी श्री राम भगवानजी की आज्ञा अनुसार माता सीता की खोज में लंका पहुंचे थे तब मेघनाद द्वारा पकड़े जाने पर उन्हें रावण के दरबार में प्रस्तुत किया गया था और रावण ने उनकी पूंछ में आग लगवा दी थी उसके बाद श्री हनुमान भगवानजी ने उसी जलती हुई पूंछ से पूरी सोने की लंका को ही जला डाला था जिसमे रावण के महल सहित लंका के सभी शस्त्र भण्डार, सुरक्षा भवन, भवन आदि सब कुछ जलकर राख हो गया |
लंका नगरी को आग के हवाले करने के बाद महाबली श्री हनुमान भगवानजी अपनी पूंछ की आग को बुझाने हेतु समुद्र में कूद गए तथा पूंछ में लगी आग को बुझा लिया | पसीने में लथपथ श्री हनुमान भगवानजी जब पूंछ की आग को बुझाने के लिए कूदने ही वाले थे तभी उनके तन से पसीने की एक बूंद निकली जो समुद्र में जा गिरी जिसे वहां पर तैरती हुई एक मछली ने आहार समझ कर निगल लिया जिसके फलस्वरूप वह उस बूंद के तेज से गर्भवती हो गई | एक दिन वह तैरती हुई पाताल लोक जा पहुंची जहां असुरराज अहिरावण के सेवकों ने उसे अपना आहार बनाने हेतु पकड़ लिया परन्तु जब उसके पेट को उन्होंने चीरा तो उसमे से एक शिशु निकला जिसका आधा तन वानर का तथा आधा तन मछली का था | मछली के पेट से निकलने के कारण उसका नाम मकरध्वज रखा गया और बाद में उसकी शक्ति को देखते हुए उसे पाताल लोक का प्रहरी बना दिया गया |
पूरी कथा सुनने के बाद जब श्री हनुमान भगवानजी को विश्वाश हो गया कि मकरध्वज उनका ही पुत्र है तो उन्होंने बताया कि वे ही उसके पिता हनुमान हैं ये सुनते ही श्री मकरध्वज श्री हनुमान भगवानजी के चरणों में गिर गए और क्षमा याचना करने लगे | श्री हनुमान भगवानजी ने उसे गले लगा लिया और आशीर्वाद दिया | इसके पश्चात् श्री हनुमान भगवानजी ने पाताल लोक में प्रवेश किया और अहिरावण का वध करके प्रभु श्री राम और श्री लक्ष्मण भगवानजी को उसके कैद से मुक्ति दिलाई | जब प्रभु श्री राम श्री हनुमान भगवानजी के साथ पाताल लोक से पुनः पृथ्वी लोक जाने के लिए पाताल लोक के द्वार पर पहुंचे तो श्री मकरध्वज को देखकर श्री हनुमान भगवानजी से उनका परिचय पुछा इस पर श्री हनुमान भगवानजी ने मकरध्वज से जुड़ी पूरी कथा श्री राम भगवानजी को सुनाई जिसे सुनकर प्रभु श्री राम मकरध्वज की शक्ति और समर्पण से अत्यंत प्रभावित हुए और उन्होंने श्री मकरध्वज को पाताल लोक का राजा घोषित कर दिया और उसके पश्चात् श्री लक्ष्मण भगवानजी और श्री हनुमान भगवानजी (Shree Hanuman Bhagwan Ji) के साथ वहां से लंका की ओर चल दिए |
श्री हनुमान भगवान जी (Shree Hanuman Bhagwan Ji) और श्री राम भगवान जी का प्रथम मिलन
त्रेतायुग में जब दुष्ट रावण माता सीता जी का अपहरण करके लंका ले गया था तब भगवान श्री राम और भगवान श्री लक्ष्मण जंगल में माता सीता की खोज कर रहे थे | वहीं दूसरी तरफ दो वानर भाइयों सुग्रीव और बाली में राज्य को लेकर युद्ध चल रहा था और अपने शक्तिशाली भाई बाली से डर कर सुग्रीव भी ऋष्यमूक पर्वत की एक गुफा में छिपा था | इसी क्षेत्र के अंजनी पर्वत पर श्री हनुमान भगवानजी (Shree Hanuman Bhagwan Ji) के पिता का राज्य था और यहीं पर श्री हनुमान भगवानजी भी रह रहे थे | भगवान श्री राम और भगवान श्री लक्ष्मण को देख सुग्रीव भयभीत हो गया | उसे लगा की बाली ने उसे मारने के लिए दो वीर पुरुषों को भेजा है मन में शंका लिए सुग्रीव तपस्या में लीन श्री हनुमान भगवानजी के पास पहुंचा | उस समय भगवान श्री हनुमान भगवान श्री राम के ही नाम का जप कर रहे थे | सुग्रीव ने भगवान श्री हनुमान जी से आग्रह किया कि मुझे आपकी आवश्यकता है कृपा कर मेरी मदद करें |आप ब्रह्मचारी का रूप धर कर उन वीरों के पास जाएं और पता करें कि वो वन में क्यों भटक रहे हैं कहीं उनका उद्देश्य मुझे मारना तो नही अगर ऐसा हुआ तो मै भाग कर कहीं और चला जाऊंगा | सुग्रीव की ऐसी बातें सुन श्री अंजनी पुत्र बोले महाराज मुझ सेवक के होते आपको भागना पड़े तो इस हनुमान के जीवन का क्या उद्देश्य है आप निश्चिंत रहें यदि वो शत्रु पक्ष के हैं जो भी हो देवता,असुर या मनुष्य मेरे होते हुए आपको कोई हानि नहीं पहुंचा सकता , आप आज्ञा दें | ये कहते हुए श्री हनुमान भगवानजी ने ब्रह्मचारी का रूप धारण किया और भगवान श्री राम और भगवान श्री लक्ष्मण के समीप जा पहुंचे | जब उन्होंने पहली बार भगवान श्री राम और भगवान श्री लक्ष्मण को देखा तो वे उनके तेज से बेहद प्रभावित हुए | वे समझ गए कि वन में साधारण वस्त्रों में घूम रहे वो कोई साधारण मनुष्य नहीं हैं बल्कि साक्षात किसी देवता के रूप हैं जो किसी खास काम से ही इस वन में आए हैं | श्री हनुमान भगवानजी श्री राम भगवानजी और श्री लक्ष्मण भगवानजी के निकट पहुंचे और बोले हे तेजस्वी वीरों आप दोनों कौन हैं ? और किस कार्य से आप यहां आए हैं ? आप दोनों नर हैं या फिर नारायण | श्री हनुमान भगवानजी के ये प्रश्न सुनकर श्री राम भगवानजी ने अपना परिचय दिया और अपने वन में भटकने का कारण भी बताया | इसके बाद प्रभु श्री राम ने प्रभु श्री हनुमान से भी उनका परिचय पुछा | परिचय मिलते ही श्री हनुमान भगवानजी अपने आराध्य देव को पहचान गए और उन्होंने अपने नाथ के चरणों में गिरकर उन्हें दंडवत प्रणाम किया | इसके बाद श्री हनुमान भगवानजी बोले कि अब गुप्त क्या ही रह गया है सारे भ्रम दूर हो चुके हैं केवल मन में इतना सा खेद रहा कि मै तो वानर ठहरा इस कारण प्रभु को पहचानने मे देर हो गई परंतु प्रभु श्री राम आप तो सर्वज्ञ हैं आपने इस भक्त को पहचानने मे देर क्यों कर दी | ये सुनते ही भगवान श्री लक्ष्मण बोले तो तुम हनुमान हो जिस पर श्री हनुमान भगवानजी ने कहा हां भईया मै ही रामभक्त हनुमान हूं और ये कहते ही श्री हनुमान भगवानजी के आंखों से अश्रु धारा बहने लगी और ये देख भगवान श्री राम की भी आंखें भर गईं | इसके बाद देखते ही देखते श्री हनुमान भगवानजी ब्राह्मण रूप त्याग कर अपने वास्तविक रूप मे आगए और भगवान श्री राम ने अपने सबसे बड़े भक्त को अपने हृदय से लगा लिया |
श्री हनुमान भगवान जी (Shree Hanuman Bhagwan Ji) की लंका युद्ध में भूमिका
लंका युद्ध में श्री हनुमान भगवानजी जी (Shree Hanuman Bhagwan Ji) ने अनेक राक्षसों को मार गिराया था, इनमें धूम्राक्ष, अकंपन, देवांतक, त्रिशिरा, निकुंभ आदि राक्षस प्रमुख थे। श्री हनुमान भगवानजी और रावण में भी अत्यन्त भयंकर युद्ध हुआ था। श्री रामायण की कथा के अनुसार, श्री हनुमान भगवानजी का थप्पड़ खाकर रावण उसी प्रकार कांप उठा था, जैसे अत्यन्त तीव्र भूकंप आने पर पर्वत हिलने लगते हैं। श्री हनुमान भगवानजी के इस अदभुत पराक्रम बल को देखकर वहां उपस्थित सभी वानरों में हर्ष – उल्लास छा गया था।
माता श्री सीता जी की खोज करते – करते जब श्री हनुमान भगवान जी, श्री अंगद जी, श्री जामवंत जी आदि वीर समुद्र के तट पर पहुंचे तो उन्हे 100 योजन विशाल समुद्र दिखा | जिसको देखकर उनका उत्साह कम हो गया। तब श्री जामवंत जी ने श्री हनुमान भगवानजी को उनके पराक्रम एवम् बल का स्मरण करवाया और श्री हनुमान भगवानजी ने इतने विशाल समुद्र को अपनी एक ही छलांग में पार कर लिया।
समुद्र को पार करने के बाद श्री हनुमान भगवानजी जब लंका पहुंचे तो वहां लंकिनी नामक एक भयानक राक्षसी से उन्हें रोक लिया। श्री हनुमान भगवानजी ने उस राक्षसी को परास्त कर लंका में प्रवेश किया। श्री हनुमान भगवानजी ने माता श्री सीता की बहुत खोज की, लेकिन वह कहीं भी नही मिलीं। फिर भी श्री हनुमान भगवानजी के उत्साह में किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं आई। अशोक वाटिका में जब श्री हनुमान भगवानजी ने माता श्री सीता को देखा तो वे बहुत प्रसन्न हुए। इस प्रकार श्री हनुमान भगवानजी ने यह अत्यन्त कठिन काम भी बहुत ही सरलता से कर लिया।
श्री हनुमान भगवानजी ने अशोक वाटिका को पूरी तरह से तहस-नहस कर दिया। ऐसा श्री हनुमान भगवानजी ने शत्रु की शक्ति का अंदाजा लगाने के लिए किया | रावण ने अपने अत्यन्त बलशाली पुत्र अक्षय कुमार को श्री हनुमान भगवानजी से युद्ध करने के लिए भेजा, श्री हनुमान भगवानजी ने उसको भी मार गिराया। श्री हनुमान भगवानजी ने अपना बल पराक्रम दिखाते हुए सोने की लंका में आग लगा दी और जला कर राख कर दिया |
जब विभीषण अपने भाई रावण को त्यागकर श्रीराम भगवानजी की शरण में आए तो श्री सुग्रीव, श्री जामवंत आदि ने कहा कि ये तो रावण का भाई है। अतः इस पर भरोसा नहीं कर सकते। उस समय श्री हनुमान भगवानजी ने ही विभीषण का समर्थन किया | युद्ध के अंत में, विभीषण के परामर्श से ही प्रभु श्रीराम ने रावण का वध किया।
लंका में युद्ध के दौरान इंद्रजीत ने ब्रह्मास्त्र चलाया जिससे श्री लक्ष्मण बेहोश हो गए। तब श्री जामवंत जी के कहने पर श्री हनुमान भगवानजी औषधियों का पूरा पहाड़ लेकर आए। उस औषधि की सुगंध से ही प्रभु श्री लक्ष्मण पुन: स्वस्थ हो गए।
श्री हनुमान भगवान जी (Shree Hanuman Bhagwan Ji) को श्री सीता माता जी ने क्या वरदान दिया था?
जब श्री हनुमान भगवान जी (Shree Hanuman Bhagwan Ji) लंका पहुंचे माता सीता जी की खोज करते हुए और उन्होंने अशोक वाटिका में मिलकर श्री राम भगवानजी का संदेश उन्हें सुनाया तब श्री सीता माताजी ने उनपर प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया “आशिष दीन्ह रामप्रिय जाना, होहु तात बल शील निधाना ” अर्थात् श्री माता सीताजी ने श्री राम भगवानजी का प्रिय जानकर श्री हनुमान भगवानजी को ये आशीर्वाद दिया की हे तात तुम बल और शील के निधान हो जाओ | सरल अर्थ में कहें तो बल के भण्डार होने का, शील अर्थात् नैतिक आचरण और सदाचार के भण्डार होने का आशीर्वाद दिया श्री सीता माताजी ने | फिर श्री सीता माताजी ने उन्हें कहा की आप अजर हो जाओ अमर हो जाओ साथ ही ये भी कहा कि श्री राम भगवानजी आप पर बहुत ज्यादा कृपा करें ” अजर अमर गुन निधि सुत होहू करहुं बहुत रघुनायक छोहू ” | इसके बाद श्री हनुमान भगवानजी को श्री सीता माताजी ने तब वरदान दिया जब श्री हनुमान भगवानजी रावण वध और प्रभु श्री राम जी के विजई होने का समाचार सुनाने हेतु पुनः अशोक वाटिका में आए तब श्री राम भगवानजी के विजय का समाचार सुनकर श्री सीता माताजी श्री हनुमान भगवानजी पर अत्यधिक प्रसन्न हुईं और उन्होंने श्री हनुमान भगवानजी को वरदान दिया की हे पुत्र सुनो इस संसार में जितने भी सदगुण हैं समस्त सदगुण तुम्हारे हृदय में बसें हे हनुमान लक्ष्मण जी सहित प्रभु श्री राम जी सदैव तुम पर प्रसन्न रहें इसके पश्चात् एक बार पुनः माता सीता जी ने अपने पुत्र श्री हनुमान भगवानजी को वरदान दिया | इस बार श्री सीता माताजी ने श्री हनुमान भगवानजी को अष्ट सिद्धियों और नवों निधियों का स्वामी बना दिया इसका उल्लेख हमे श्री हनुमान चालिसा की एक चौपाई में मिलता है जिसे श्री रामचरितमानस जी के रचैता श्री गोस्वामी तुलसी दासजी ने लिखा है ” अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता ,अस वर दीन्ह जानकी माता ” इस चौपाई का सीधा सा अर्थ ये है की श्री बजरंगबली अपने भक्तों को आठ प्रकार की सिद्धियां और नव प्रकार की निधियां प्रदान कर सकते हैं, उन्हें ये सिद्धियां और निधियां देने का वरदान स्वयं माता जानकी ने दिया है |