Mahashivratri Kyun Manai Jaati Hai : महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है

महाशिवरात्रि (Mahashivratri) हिन्दू धर्म के मुख्य त्योहार के रुप मे मनाई जाती है | महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है ? (Mahashivratri Kyun Manai Jaati Hai) इसके पीछे एक नहीं कई कारण हैं | आइए जानते हैं महाशिवरात्रि (Mahashivratri) के मनाए जाने वाले कारणों के बारे में –

महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है ? (Mahashivratri Kyun Manai Jaati Hai) – महाशिवरात्रि के दिन श्री शंकर भगवानजी का प्राकट्य दिवस

महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है ? (Mahashivratri Kyun Manai Jaati Hai) इस बारे मे कहा जाता है कि महाशिवरात्रि (Mahashivratri) के दिन भगवान श्री शिव का प्राकट्य हुआ था, भगवान श्री शिव का जन्म हुआ था इसलिए महाशिवरात्रि (Mahashivratri) देवाधिदेव महादेव के जन्म दिवस के रूप में मनाई जाती है | इस दिन बाल रुप मे श्री शिव जी का प्राकट्य दिन होता है | श्रीमद् भागवत में वर्णन है की श्री विष्णु भगवान जी के नाभि से कमल प्रकट हुआ और उस कमल से श्री ब्रह्मा भगवान जी प्रकट हुए और श्री विष्णु भगवान जी ने श्री ब्रह्मा भगवान जी से कहा कि प्रजा की उत्पत्ति करो | श्री ब्रह्मा भगवान जी प्रजा की उत्पत्ति करने लगे | प्रजा की उत्पत्ति करने हेतु श्री ब्रह्मा भगवान जी ने 10 पुत्रों को जन्म दिया | श्री ब्रह्मा भगवान जी ने अपने शरीर से 10 पुत्रों को प्रकट किया ,अपने हाथों से ,अपने गोद से ,अपने मस्तक से, अपनी जंघा से ,इस प्रकार से अपने अंगों से किसी का सहारा लिए बिना 10 पुत्रों को जन्म दिया | जन्म देने के उपरान्त श्री ब्रह्मा भगवान जी ने उन पुत्रों को कहा कि आप सब शादी कर लो और शादी करके बच्चे पैदा करो ताकि यह संसार थोड़ा सा भर जाए |उन दसों पुत्रों ने श्री ब्रह्मा भगवान जी को कहा कि पिताजी जो भी कुछ हो हम शादी नहीं करेंगे | श्री ब्रह्मा भगवान जी ने कहा कि ये भगवान श्री विष्णु की आज्ञा है की शादी करो तो उन पुत्रों ने कहा कि नहीं पिता हम आपकी हर आज्ञा का पालन करेंगे पर शादी नहीं करेंगे क्योंकि हमें भजन करना है ईश्वर को पाना है, हम सन्यासी बनेंगे ,ब्रह्मचारी बनेंगे पर शादी नहीं करेंगे | जब दसों पुत्रों ने एक के बाद एक श्री ब्रह्मा भगवान जी को मना कर दिया तब श्री ब्रह्मा भगवान जी को बड़ा क्रोध आया और जब ब्रह्मा जी को क्रोध आया तो उसी समय श्री ब्रह्मा भगवान जी की भृकुटी से एक रोते हुआ बालक पैदा हुए | क्योंकि श्री ब्रह्मा भगवान जी की भृकुटी से वह बालक रोते हुए पैदा हुए इसलिए उन बालक का नाम हुआ रुद्र | वह बालक महाशिवरात्रि (Mahashivratri) के दिन पैदा हुए थे और क्योंकि वह रोते हुए पैदा हुए थे इसलिए उनका नाम रूद्र हुआ | और देखते ही देखते वे बड़े हो गए | वे श्री ब्रह्मा भगवान जी से कहने लगे कि पिताजी बताइए मेरे लिए क्या आज्ञा है | श्री ब्रह्मा भगवान जी ने कहा कि देखो बेटा तुम्हारे इन दसों भाइयों ने मेरी बात नहीं मानी ,अब तुम प्रकट हुए हो तो तुम प्रजा की उत्पत्ति करो ,सृष्टि की उत्पत्ति करो | श्री शंकर भगवान जी ने श्री ब्रह्मा भगवान जी की बात मान ली और वह अपने स्थान पर गए और अपने स्वभाव के अनुसार उत्पत्ति करने लगे श्री शंकर भगवान जी ने भूतों को प्रकट किया, पिशाच को प्रकट किया ,सर्प ,बिच्छू, रुद्रगणों आदि जीवों को प्रकट करने लगे और श्री शिव जी द्वारा उत्पन्न वे जीव पूरी सृष्टि में आतंक मचाने लगे ,धीरे-धीरे वे स्वर्ग में गए और श्री ब्रह्मा भगवान जी का गला भी दबाने लगे तब श्री ब्रह्मा भगवान जी ने तुरंत श्री शिव भगवान जी से कहा कि बेटा तुम यह सृष्टि निर्माण का कार्य छोड़ दो और प्रलय का कार्य करो इस प्रकार भगवान श्री शिव प्रलय के देवता बन गए |

इस प्रकार श्रीमद् भागवत गीता के अनुसार श्री शिव भगवान जी के प्राकट्य का दिवस है श्री महाशिवरात्रि (Mahashivratri) इस दिन श्री शंकर भगवान जी प्रकट हुए |

महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है ? (Mahashivratri Kyun Manai Jaati Hai)- महाशिवरात्रि के दिन श्री शंकर भगवानजी और माता श्री पार्वती जी का विवाह दिवस

महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है ? (Mahashivratri Kyun Manai Jaati Hai) इस बारे मे हिंदू धर्म की मान्यता के मुताबिक इसी दिन भगवान श्री शिव और माता श्री पार्वती जी का विवाह हुआ था इसीलिए इस दिन कई मंदिरों में भक्तगण भगवान श्री शिव और माता श्री पार्वती की पूजा-अर्चना कर उनकी शादी भी करते हैं ,इतना ही नहीं शास्त्रों और पौराणिक कथाओं में भी शिवरात्रि के दिन भगवान श्री शिव और माता श्री पार्वती के विवाह की बात कही गई है इसलिए इस पर्व को भगवान के विवाह वर्षगांठ के रूप में मनाया जाता है | मान्यता है कि भगवान श्री शिव ने हिमालय के मंदाकिनी क्षेत्र के त्रियुगी नारायण में माता श्री पार्वती जी से विवाह किया था, इसका प्रमाण यहां जलने वाली अग्नि की ज्योति है जो त्रेता युग से अभी तक लगातार जल रही है | कहते हैं माता श्री पार्वती जी से भगवान श्री शिव ने इसी ज्योति के सामने फेरे लिए थे | लोगों का मानना है कि यहां शादी करने से दांपत्य जीवन में सुख और शांति बनी रहती है |

इसके अलावा यह भी मान्यता है कि इस दिन पूरे साल में हुई गलतियों के लिए महादेव से क्षमा मांगने पर माफी मिल जाती है क्योंकि महादेव बहुत दयावान और परोपकारी हैं महाशिवरात्रि (Mahashivratri) के दिन भगवान श्री शिव के पूजा का एक विशेष महत्व है इस दिन सभी की मनोकामना जरुर पूरी होती है इसलिए मंदिरों में विशेष पूजा अर्चना का आयोजन कर श्री शिव भगवान को मनाया जाता है |

महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है ? (Mahashivratri Kyun Manai Jaati Hai)- महाशिवरात्रि के दिन श्री शिवलिंग का प्राकट्य दिवस

महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है ? (Mahashivratri Kyun Manai Jaati Hai) इस बारे मे ऋषि श्री वेदव्यास द्वारा रचित शिव महापुराण में वर्णित कथा के अनुसार वैसे तो 1 वर्ष में 12 शिवरात्रियां आती हैं जोकि प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को आती हैं लेकिन फाल्गुन मास में पड़ने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को आने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि (Mahashivratri) के नाम से जाना जाता है | वास्तव में हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि के पावन पर्व को लेकर अलग-अलग मान्यताएं हैं कोई इस पर्व को भगवान श्री शिव के जन्म दिवस के रूप में मनाते हैं तो कोई इस दिन को भगवान श्री शिव के विषपान दिवस के रूप में मनाते हैं तथा कोई इस दिन को भगवान श्री शिव तथा माता श्री पार्वती के विवाह के रूप में मनाते हैं परंतु शिव महापुराण की विद्येश्वर संहिता खंड के अनुसार जब सनकादी ऋषियों ने श्री सूत जी से प्रश्न किया की हे महाभाव भगवान श्री शिव के दो रूप कौन-कौन से हैं तथा उनका प्राकट्य कैसे हुआ कृपया हमें यह जानकारी देने की कृपा करें तब श्री सूत जी ने कहा हे मुनिश्रष्ठों ! ब्रह्म रूप होने के कारण भगवान श्री शिव निराकार कहे गए तथा अंग प्रत्यंगों सहित रूपवान होने के कारण उन्हें सकल अर्थात् साकार भी कहा गया है साकार एवं निराकार होने के कारण ही उन्हें ब्रह्म कहा जाता है | यही कारण है कि भगवान श्री शिव की निराकार स्वरूप लिंग और साकार स्वरूप की पूजा की जाती है |

भगवान श्री शिव से भिन्न अन्य जो दूसरे देवता हैं वह साक्षात ब्रह्म नहीं है इसलिए कहीं भी उनके लिए निराकार लिंग उपलब्ध नहीं होता | श्री सूत जी कहते हैं की अनंत परमब्रह्म से भगवान श्री विष्णु की उत्पत्ति हुई और भगवान श्री विष्णु की नाभि से कमल पर विराजमान श्री ब्रह्मा भगवान जी उत्पन्न हुए उन परमब्रह्म ने श्री ब्रह्मा भगवान जी को सृष्टि के निर्माण का दायित्व सौंपा तथा भगवान श्री हरि विष्णु को सृष्टि का पालनहार बनाया और स्वयं श्री ब्रह्मा भगवान जी की भृकुटी अर्थात माथे के मध्य भाग से उत्पन्न होकर रूद्र रूप धारण किया और सृष्टि के संहारक के रूप में स्थापित हुए | इस प्रकार उस अनंत परब्रह्म से तीन देवों की उत्पत्ति हुई जिन्हें त्रिदेव कहा जाता है | श्री सूत जी सनकादी ऋषियों को आगे की कथा सुनाते हुए कहते हैं कि हे मुनिश्रेष्ठों ! एक बार भगवान श्री विष्णु जी और भगवान श्री ब्रह्मा जी में कार्य शक्ति को लेकर विवाद हो गया उस विवाद से समस्त देवता भयभीत, चिंतित और अत्यंत व्याकुल हो गए फिर चिंतामग्न समस्त देवताओं ने दिव्य कैलाश शिखर पर जाकर इस विषय को लेकर चंद्रमौली भगवान चंद्रशेखर श्री महादेव की प्रार्थना की तब देवताओं की प्रार्थना से प्रसन्न होकर भगवान श्री महादेव ने भगवान श्री ब्रह्मा और भगवान श्री विष्णु के विवाद स्थल के बीच में निराकार तथा आदि अंत रहित भीषण अग्नि स्तंभ के रूप में स्वयं का प्राकट्य किया यह अग्नि स्तंभ करोड़ों सूर्य के तेज से भी अधिक ज्योतिर्मय था, तदंतर श्री ब्रह्मा भगवानजी और श्री विष्णु भगवानजी दोनों द्वारा उसे ज्योतिर्मय स्तंभ की ऊंचाई तथा गहराई की थाह लेने की चेष्टा की गई | श्री ब्रह्मा भगवानजी उस स्तंभ के ऊपरी छोर देखने के लिए गए तथा श्री विष्णु भगवानजी जी उस स्तंभ के निचली छोर का पता लगाने के लिए गए परंतु दोनों ही उस स्तंभ का अंत तथा आदि का पता नहीं कर पाए तदंतर वे दोनों श्री ब्रह्मा भगवान और श्री विष्णु भगवान श्री शंकर भगवान को प्रणाम करके दोनों हाथ जोड़कर उनके दाएं – बाएं भाग में चुपचाप खड़े हो गए, फिर उन्होंने वहां साक्षात प्राकट्य पूजनीय महादेव को श्रेष्ठ आसन पर स्थापित करके पवित्र पुरुष वस्तुओं अर्थात दीर्घकाल तक रहने वाली वस्तुएं जैसे हार ,नूपुर केयूर, किरीट , मणिमय कुंडल, यज्ञोपवीत , उत्तरीय वस्त्र, पुष्पमाला, रेशमी वस्त्र, हार, मुद्रिका ,पुष्प , ताम्बुल, कपूर, चंदन एवं अगुरु का अनुलेप, धूप दीप ,श्वेत छत्र, ध्वजा, चंवर तथा अन्य दिव्य उपहारों द्वारा जिनका वैभव वाणी और मन की पहुंच से परे था जो केवल पशुपति अर्थात परमात्मा के ही योग्य थे और जिन्हें पशु अर्थात बुद्धिजीवी कदापि नहीं पा सकते थे से उन महेश्वर का पूजन किया | इस प्रकार सबसे पहले वहां श्री ब्रह्मा भगवान जी और श्री विष्णु भगवान जी ने श्री शंकर भगवान जी की पूजा की | इससे प्रसन्न होकर भक्त वत्सल भगवान श्री शिव ने अपने आरंभ और अंत रहित ज्योतिर्मय लिंग स्वरूप को अत्यंत छोटा किया और वहां नम्र भाव से खड़े हुए उन दोनों देवताओं से मुस्कुरा कर कहा की है पुत्रों आज का दिन एक महान दिन है आज के दिन तुम्हारे द्वारा मेरे निराकार और साकार रूप की जो पूजा हुई है उससे मैं तुम दोनों पर अत्यंत प्रसन्न हूं इसी कारण यह दिन परम पवित्र और महान से महान होगा आज की यह तिथि महाशिवरात्रि (Mahashivratri) के नाम से विख्यात होकर मेरे लिए परम प्रिय होगी महाशिवरात्रि की इस को मै विशेष रूप से लिंग में समाहित रहूंगा और भक्तों की पूजा -अर्चना स्वीकार करूंगा ,जो भी भक्तगण सच्चे भाव से इसका दर्शन, स्पर्श और पूजन करेंगे उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी और वे संतान ,धन ,वैभव से परिपूर्ण होकर समस्त सांसारिक सुखों को भोगते हुए मोक्ष को प्राप्त होंगे | इस प्रकार तभी से महाशिवरात्रि (Mahashivratri) का यह पावन पर्व मनाया जाता है इस दिन सभी भक्तगण सच्चे मन से भगवान श्री शिव की पूजा-अर्चना करते हैं ,शिवलिंग पर दूध और जल चढ़ाते हैं फल-फूल, धतूरा, बेलपत्र तथा मिष्ठान अर्पित करते हैं और चंदन का लेपन लगाकर धूप ,दीप प्रज्वलित करते हैं इससे भगवान श्री शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूरी करते हैं, उन्हें सुख और सौभाग्य प्रदान करते हैं, रोजगार एवं कारोबार में वृद्धि करते हैं ,उनके जीवन में आने वाली समस्त परेशानियों को दूर करके सफलता के द्वार खोल देते हैं |

महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है ? (Mahashivratri Kyun Manai Jaati Hai)- महाशिवरात्रि के दिन श्री शंकर भगवानजी का विषपान दिवस

महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है ? (Mahashivratri Kyun Manai Jaati Hai) इस बारे मे श्री भागवत पुराण की कथा के मुताबिक देवताओं और असुरों के बीच हुए समुद्र मंथन में कई कीमती चीज निकली जिनको देवताओं और असुरों ने आपस में बांटा लेकिन जब इससे विष निकला तो कोई भी इसे लेने के लिए तैयार नहीं हुआ | इसी दौरान विष समुद्र के जल में मिलकर दूर तक फैलने लगा इसे पीकर कई जानवरों और मनुष्यों की मौत होने लगी, जिससे धरती के जीवन पर खतरा मंडराने लगा | देवताओं को डर लगने लगा कि इस विष का असर कहीं धीरे-धीरे स्वर्ग पर भी न होने लगे, जिससे घबराकर ऋषि – मुनि और देवगढ़ भगवान श्री शिव के पास गए ,सब श्री शिव भगवान से बचाने का अनुरोध करने लगे जैसा कि सब जानते हैं कि भगवान श्री शिव तो दयावान और दानी हैं,वे तुरंत ही मान गए उन्होंने ब्रह्मांड की रक्षा के लिए विष पीकर अपनी योग शक्ति से उसे अपने कंठ में धारण कर लिया तभी से भगवान श्री शिव का नाम नीलकंठ पड़ा | भगवान श्री शिव के इस उपकार के चलते रात भर सभी देवों ने श्री शिव भगवान की महिमा का गुणगान किया तभी उन्होंने भगवान श्री शिव को देवों के देव महादेव भी कहा इसीलिए तो श्री शंकर भगवान को महादेव भी कहा जाता है ,तब से ही इस दिन को महाशिवरात्रि (Mahashivratri) के शुभ दिन के नाम से जाना जाता है | भगवान श्री शंकर ने अपने साहस और धैर्य के साथ सभी जनों के कल्याण के लिए विष को पीकर अपनी उदारता और दया भाव दिखाया | शिवरात्रि को लोक-कल्याण ,धैर्य, उदारता और परोपकार का प्रतीक माना जाता है |

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