Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen ||श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथायें || कथा संख्या – 54,55,56

श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाओं (Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathaon) में कथा संख्या 1 से लेकर 53 पहले ही प्रकाशित हो चुकी हैं | कथा संख्या 54,55,56 इस प्रकार हैं –

श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाएं ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen) || कथा संख्या -54

रहस्यमई बाबा श्री नीम करोली  जी ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen)

श्री बाबा जी का जीवन सदा रहस्यमय रहा। देहरादून के रहने वाले उमादत्त जोशी जी बताते है कि एक मंगलवार के दिन मैंने सोचा कि श्री बाबा जी के दर्शन करने कैंची चला जाऊं। लेकिन अचानक मुझे अपने व्यापार के आवश्यक कार्य से नैनीताल जाना पड़ गया। मन बहुत मायूस हुआ क्योंकि बाबा जी के दर्शन की बहुत लालसा थी। नैनीताल कार्य समाप्त कर के मैंने सोचा कि कैंची जाने वाली अंतिम बस मुझे मिल जायेगी । लेकिन वो भी निकल गयी। किसी तरह मैं भवाली पहुँचा, पर वहां से कैंची जाने को कोई भी साधन न मिल पाया। मैं बहुत उदास मन से घर लौट आया । मैं घर आकर भी यही सोच रहा था कि अचानक से घर का किवाड़ ज़ोर से खटका। बाहर कुछ शोर की आवाज़ आ रही थी।

” मैं बाबा नीम करोली हूँ “उस समय रात के दो बज चुके थे ,और श्री नीम करोली बाबाजी मुझे आवाज़ लगा रहे थे। दरवाज़ा खोला तो बाबा जी बोल उठे .” तुम मुझे हमेशा परेशान कर देते हो । तुम मुझे क्यों परेशान करते हो ? फिर श्री बाबा जी ने भोजन किया। कुछ देर बाद वो जिस व्यक्ति के साथ आये थे,उसी के साथ वापस जीप से लौट गये।भक्त की सच्ची आस्था के आगे प्रभु को झुकना पड़ा क्योंकि उसके मन और दिमाग़ में जो चल रहा था बाबा जी को सब पता था।

आपको शत शत बार नमन है मेरे गुरुदेव।

श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाएं ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen) || कथा संख्या -55

एक देशभक्त डाक्टर पर बाबा जी की कृपा ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen)

श्री बाबा जी एक दिन अचानक ऋषिकेष के एक धर्मशाला के एक कमरे में एकाएक पहुँच गये।वो वहां उपस्थित एक व्यक्ति से बोले। “अरे! तुझे तो बड़ी भूख लगी है।कई दिन से तुझे खाना नहीं मिला है।चल मेरे साथ।”
श्री बाबा जी ने दूसरे कमरे में उसे ले जाकर गरमागरम भोजन से पूर्ण एक थाली के पास उस बिठा दिया । उस भूखे व्यक्ति ने भरपेट भोजन किया। बाबा जी देखते रहे, जब वह भोजन कर चुका तो उस व्यक्ति ने श्री बाबा जी का पैर छूना चाहा।तभी श्री बाबा जी ने उससे कहा,“पुलिस तेरा पीछा कर रही है। जा, यहाँ से भाग जा। पहाड़ों से होते हुए तिब्बत की ओर निकल जाना।

(श्री बाबाजी को कहां से पता मिला कि अमुक धर्मशाला में एक भूखा देश-भक्त बैठा है, और कहां से उन्होंने दूसरे कमरे में उसके लिये गरम भोजन की थाली प्रस्तुत कर दी ये एक रहस्य रहा)

वह व्यक्ति और कोई नहीं, वो तो बम्बई के सुप्रसिद्ध न्यूरोलॉजिस्ट डाक्टर भोंसले थे जो वर्ष 1942 के स्वतंत्रता आन्दोलन में अंग्रेजी राज के विरुद्ध बीड़ा उठाने के कारण राजद्रोही करार दिये गये थे और पुलिस के चंगुल से बचने हेतु ऋषिकेश की उस धर्मशाला में भेष बदलकर छिपे हुये कई दिनों से भूखे पड़े थे।
एक देश-भक्त को उबारने हेतु बाबा जी वहाँ पहुँच गये थे और वहाँ उनके लिये भोजन की थाली सृजित कर उन्हें तृप्त भी कर दिया और सुरक्षित भी।

बीस वर्ष बाद सन् 1962 में शिवनारायण टंडन जी के घर उनके भतीजे के उपचार हेतु कानपुर आने पर डाक्टर भोसले ने अपनी गाथा टंडन जी को सुनाई थी। यह मालूम होने पर कि श्री बाबा जी इस वक्त लखनऊ में विराजमान हैं।उन्होंने लखनऊ जाकर श्री बाबा जी के दर्शन किये।
श्री बाबा की कृपा कब किस पर हो जाए।कहा नहीं जा सकता। श्री बाबा जी। हम आपके शरण में हैं। हमे अपने चरणों से कभी दूर मत करना।
आपको शत-शत बार नमन है।

श्री नीम करोली बाबा जी के चमत्कार की कथाएं ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen) || कथा संख्या -56

दैवीय दूरभाष ( Shree Neem Karoli Baba Ji Ke Chamatkar Ki Kathayen)

कई बार ऐसा भी देखा गया है कि जिस भी भक्त के पास टेलीफोन की सुविधा नही होती थी ,श्री महाराज जी अपना संदेश बिना किसी भौतिक उपकरणों के उसके पास के पहुंचा देते थे | इस प्रकार का अनुभव अलीगढ में संस्कृत के अध्यापक पं. होत्रीदत्त शर्मा जी को हुआ करता था | आप कहते है कि जब कभी वे वृन्दावन आश्रम में आ जाते और मुझे बुलाते तो उनके शब्द अलीगढ में मेरे कानों में गूंजने लगते | मैं तुरंत ही सभी काम छोड़कर वृन्दावन पहुंचता और वहां मुझे श्री बाबाजी के दर्शन निश्चित रुप से होते रहे |

इसके अतिरिक्त महाराजजी अधिकतर अपनी प्रेरणा शक्ति से भी काम लिया करते थे | कितने भक्त इस चीज के मानने वाले है |

श्री महाराज की आकाशवाणी भी आलौकिक रही | वह बिना ट्रांसमीटर और रिसीवर के काम करती थी | वे सर्वत्र लोगों की बाते सुनते रहते थे और सुदूर में उच्चरित शब्द अपनें भक्तो को भी सुनवा देते थे |

 

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