Shree Siddhi Chalisa : श्री सिद्धि चालीसा

श्री सिद्धि चालीसा (Shree Siddhi Chalisa) का पाठ करने से श्री सिद्धि माता के साथ ही साथ भगवान श्री श्री नीब करोरी बाबाजी भी अत्यंत ही प्रसन्न हो जाते हैं इसलिए श्री सिद्धि चालीसा (Shree Siddhi Chalisa) का भी पाठ करना चाहिए ,इससे जीवन में आने वाली सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं | श्री नीम करोली बाबाजी की अनन्य शिष्या और उत्तराधिकारी श्री सिद्धि माताजी हर माह शनिवार और मंगलवार को श्री कैंची धाम में भक्तों को दर्शन देती थीं | श्री नीम करोली बाबाजी की शिष्या बनने के बाद उन्होंने घर-परिवार छोड़ दिया था और खुद को पूरी तरह से समाज की सेवा के लिए समर्पित कर दिया था |

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 श्री सिद्धि चालीसा : Shree Siddhi Chalisa

दोहा –

श्री गणेश को सुमिरि हिय,सारद को धरिध्यान | ‘सिद्धि ‘चालीसा ऐंहि विधि ,पढ़ई होई कल्यान ||
‘ सिद्धि -माँ ‘ को रूप लै, बनि दीनन अवलंब | लीन्ह जन्म जगधारी वपु ,कात्यायनी जगदंब ||

चौपाई –

जय जय जय श्री सिद्धि अम्बा | जय अवतार आदि जगदम्बा ||
दुर्गा महातपाः चित् रूपा | कात्यायिनि साक्षात् स्वरूपा ||

शैलसुता भव मोचिन माता | दीनन शरण भगत सुखदाता ||
तुम ही सती उमा रूद्राणी | मातङ्गी विमला कल्याणी ||

अशरण शरण कृतम्बिनि माता | भुक्ति मुक्ति अभिमत फल दाता ||
स्वयं सिद्ध तुम पूरन कामा | सत् चित् आनंद रूप ललामा ||

भव भव विभव सर्व सुख दायिनि | भव भव मास पराभव हारिनि ||
अन्नपूर्णा मातु भवानी | तपस्विनी बल प्रदा दयानी ||

विपुल शक्ति अक्षय भंडारा | प्रति पालहु भक्तन जगसारा ||
विंध्यवासिनी तुम कहं जानी | पूजहिं तुमहिं सिद्ध ऋषि ज्ञानी ||

तव स्तुति सुनि मुनि सुख पावें | पुनि पुनि सुनि हिय अति हर्षावें ||
सर्व व्यापिनी मोह न माया | सब पर करहु बराबरि दाया ||

दया क्षमा करूना उर धरी | चरित करहु जग मंगलकारी ||
संत असंत न जानउ माता | मूल सुझाव दीन दुख भाता ||

ममता अस्म लेई कर धारे | दुष्टउ जन लेइं उबारें ||
‘ भुवनेश्वरी ‘ तव रूप अनूपा | लीला करत फिरत तदरूपा ||

मोह ऐमि व्यापित संसारा | तेहि महुं जग सब सोवनिहारा ||
ज्योति पुंज तहं रूप तुम्हारा | ध्यावत मिटत मोह अंधियार ||

प्राकृत रूप मातु लखि तोरा | भ्रमित होत जग पाव न छोरा ||
चरित तुम्हार समुद्र अवगाहा | लौकिक बुद्धि पाव कह थाहा ||

लीला महामोह मय तोरे | बाँधत तुही तुही माँ छोरे ||
कौतुक तुम कह नव निधि दाना | चाहहु सबन्हि केर कल्याना ||

विधि लिलार जो लिखा न होई | मातु कृपा तव सम्भव सोई ||
कृपा पाई तव सीकर तूला | होई चराचर जग अनुकूला ||

तव स्वरुप बस जा मन माँहीं | ता कहुँजग दुर्लभ कछु नाहिं ||
कृपा कटाक्ष मातु तव पाई | कैसोऊ जड़ चेतन होई जाई ||

जय जय मोह विनाशिनि अम्बे | जय जय जय जय श्री जगदम्बे ||
सुमिरत तुमहिं अम्ब मन माहीं | पाप ताप संताप नसाहीं ||

दैहिक दैविक भौतिक शूला | व्यापहिं नहिं जब तुम अनुकूला ||
जे तव चरन कमल नित नावईं | सुगति सुमति संपति फल पावईं ||

भव बंधन ते सो छुटि जावें | जो चित लाइ तुमहिं नित ध्यावें ||
कृपा प्रसाद पाव तव जोई | पारइ गोपद इव भव सोई ||

मातेश्वरी तुम होहु कृपाला | कृपहिं जथा गुरु दीन दयाला ||
रक्त बीज इमि इच्छा मोरी | हतऊं तदपि बाढ़ऊ बरजोरी ||

करई दिवस निसि सुत अपराधा | क्षमहुँ मातु तुम क्षमा अगाधा ||
मोरे हृदय करहु तुम वासा | सुरसरि इमि करि तामस नासा ||

काम उदधि तें मोहि उबारहु | लोभ मोह मद क्रोध निवारहु ||
रिद्धि सिद्धी करतल गत तोरे | मांगहूँ कृपा बिंदु कर जोरे ||

‘ कामेश्वरी’ मांगहूँ वर देहू | जनम जनम तव पद रति नेहू ||
‘ युगल चरन आश्रित ‘ मोहि जानी | आरति हरहु दीन जन जानी ||

दोहा –

प्रेम प्रतीतिहि जो भजे ,तुमहिं मान विस्वास | ते पारहिं भव सिंधु कह ,बिनुश्रम बिनहिं प्रयास ||
धन्य धन्य मैं मातु श्री ,अर्पण करि ये फूल | प्रेम प्रतीति स्वरुप धरे ,तव चरनन सुखमूल ||
(जय श्री सिद्धी मातु की जय)

 

देवी पूज्य पद कमल तुम्हारे
सुफल मनोरथ होय हमारे
देवी पूज्य पद कमल तुम्हारे
सुफल मनोरथ होय हमारे
जय श्री अंबे जय जगदंबे
जय श्री अंबे जय जगदंबे
श्री मां जय मां जय जय मां
श्री मां जय मां जय जय मां
जय श्री अंबे जय जगदंबे
जय श्री अंबे जय जगदंबे
श्री मां जय मां जय जय मां
श्री मां जय मां जय जय मां
श्री श्री सिद्धि चालीसा
सिद्धि चालीसा

 

 

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