जब भगवान श्री ब्रह्मा जी ने इस संसार की रचना की थी तो उस समय समस्त सृष्टि में किसी भी तरह की ध्वनि मौजूद नहीं थी | संसार का कोई भी प्राणी ना तो बोल सकता था और ना ही सुन सकता था |

पेड़-पौधों में भी कोई फल और फूल नहीं खिला करते थे | 

चारों तरफ का वातावरण एकदम शांत और नीरस था |

इसके बाद श्री ब्रह्मा भगवान जी ने सृष्टि की रचना को पूरा करने के लिए अपने कमंडलके जल को अभिमंत्रित करके धरती पर गिरा दिया |

इस प्रकार भगवान श्री ब्रह्मा जी की माया से माता श्री सरस्वती जी प्रकट हुईं |

कमल पुष्प पर विराजमान माता श्री सरस्वती जी अपनी एक हाथ में माला एक हाथ में ग्रंथ और दोनों हाथों में वीना धारण करके चतुर्भुज रुप मे अवतरित हुईं थीं |

भगवान श्री ब्रह्मा जी की आज्ञा से माता श्री सरस्वती जी ने समस्त चराचर जगत तथा प्राणियों में बोलने तथा सुनने की क्षमता उत्पन्न करने के लिए अपनी वीणा को बजाया |

इसके पश्चात सृष्टि के सभी मनुष्यों ,जीव-जंतुओं तथा पशु-पक्षियों में बोलने तथा सुनने की शक्ति उत्पन्न हुई |

श्री सरस्वती माता जी के जन्मदिन को बसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है |

इस दिन पीले वस्त्र धारण करना, नए कार्य का शुभारंभ करना, वृक्षारोपण और जीवों का संरक्षण करना अत्यंत कल्याणकारी माना गया है |